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लोकसभा संग्राम 60– ममता-मोदी की सियासी जंग में जाँच एजेंसी सीबीआई (सरकारी तोता) बना हथियार
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। सीबीआई (सरकारी तोता)तो एक बहाना है असल मक़सद 2019 में होने वाले सियासी महासंग्राम को किसी तरह फ़तह करने का इरादा है अब उस इरादे को सफल बनाने के लिए चाहे सरकारी तोते का या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का ही क्यों न दुरूपयोग किया जाए। चिटफ़ंड घोटाले की जाँच के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में किए थे लेकिन जबसे लेकर अब तक कहाँ था सरकारी तोता क्यों नही इतनी तेज़ी दिखाई अभी क्यों तेज़ी दिखाई जा रही है।
क्या तब इनके सियासी आका इस कार्रवाई के लिए तैयार नही थे ? क्या अब सियासी आकाओ का हुक्म बजा रही ? पिछले महीने से जिस तरह सरकारी तोता ज़लील हो रहा सरकार के संरक्षण में नही तो स्वतंत्र जाँच एजेंसी के नाम मात्र से ही पैंट गीली हो जाती है लेकिन उसके लिए उसमें कार्यरत अधिकारियों को सिर्फ़ अधिकारी होना पड़ता है सरकार के पालतू नही अगर पालतू रहेंगे तो हाल यही रहने या इससे भी बुरे होने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता।
सीबीआई हमेशा से विपक्ष के निशाने पर रहती है सरकार किसी की भी रही हो यह बात अलग है कोई सरकार ज़्यादा तो कोई कम परन्तु इस्तेमाल सब करते आए है यह भी सच है।यह कहना भी उचित नही है कि सीबीआई सरकारी तोता जो भी जाँच करती है वह सब ही राजनीति से प्रेरित होती है देखने में आया है कि आरोपी इसका लाभ उठाकर बचने में कामयाब ज़रूर हो जाते है जैसे आज तक नेता बचते आ रहे चाहे सपा कंपनी हो या बसपा से जुड़े लोगों की जाँचो में आज तक कुछ नही होना इसका प्रमाण है क्योंकि एक दो रेड डालने के बाद वह नेता जो केन्द्र सरकार कराना या करना चाहती है वह उसको कर देते है बस फिर सरकारी तोता पिंजरे में चला जाता है और तब तक बाहर नहीं निकलता जब तक उसके आकाओ का हुक्म नहीं होता इसी लिए स्वतंत्र जाँच एजेंसी की यह दुर्गति हो रही है उसके लिए केन्द्र में बैठी मोदी की भाजपा सरकार ज़िम्मेदार है यही सच है कहने को को तो वह निष्पक्ष मानी जाती है और है भी लेकिन उसका इस्तेमाल होता है केन्द्र की सरकार पर क़ाबिज़ सियासी पार्टी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए इसी लिए बेचारी सीबीआई को इस तरह के आरोपो का सामना करना पड़ता है।
केन्द्र में बनी सरकारें इसका निदेशक नियुक्त करते वक़्त यह नहीं देखते कि निदेशक निष्पक्ष हो इमानदार हो सीबीआई के कामकाज से परिचित हो यह ख़ूबियाँ होने वाले अफ़सर पर ग़ौर नहीं किया जाएगा कोई ऐसा पालतू तलाश कर लाया जाएगा जो उनके कहे के अनुसार कार्य कर सके उसी को नियुक्त कर दिया जाता है जैसा अभी हुआ भी है सीबीआई में 13 साल कार्य करने वाले यूपी कैडर के 1984 बैच के आईपीएस सैयद जावीद अहमद, यूपी कैडर के ही राजीव राय भटनागर व तमिलनाडु कैडर के 1984 बैच के सुदीप लखटकिया यह तीनों अफ़सरों को सीबीआई में काम करने का अनुभव है इनमें सबसे ज़्यादा सैयद जावीद अहमद को सबसे सीनियर माना गया और इमानदारी में भी अपनी साख बनाए हुए है कोई दाग नहीं लेकिन पालतू नहीं इस लिए इनके नाम पर मोहर नहीं लगी किसको नियुक्त किया गया जिसके पास सीबीआई की जाँचो के करने का तरीका भी मालूम नहीं मध्य प्रदेश कैडर के आईपीएस ऋषि कुमार शुख्ला को निदेशक बनाया गया है उनमें ख़ूबी बतायी जा रही है कि वह मोदी के बहुत ख़ास है इस लिए उनकी नियुक्ति हुई क्योंकि वह बड़ी आसानी से मोदी सरकार के इसारो पर चलते रहेंगे और सीबीआई की इसी तरह फ़ज़ीहत कराते रहेंगे यह कहना है तीन सदस्य समिति के सदस्य व कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का।
मोदी को किसी भी सूरत में लोकसभा चुनाव के महासंग्राम को जीतना है अब सीबीआई की फ़ज़ीहत हो या किसी और की इससे इनको क्या लेना देना।नरेन्द्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच हो रही सियासी जंग में जाँच एजेंसी सीबीआई (सरकारी तोता)बना हथियार अब देखना यह है कि इस सियासी पिच पर हो रहे मैच में किसकी जीत होगी यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन हार सरकारी तोते की होगी यह साफ़ दिखाई दे रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई से साफ कहा कि पहले सबूत दो कि पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक ने जाँच के सबूतों से छेड़ छाँड की तभी सुनवाई होगी अब सीबीआई के सामने यह स्थिति बन गई है कि जो वह कह रही है कि बंगाल के डीजीपी ने शारदा चिटफ़ंड घोटाले से जुड़े दस्तावेज़ों को खुर्दबुर्द किया है वह इसके ठोस सबूत दे नही तो और अपनी फ़ज़ीहत कराने के लिए तैयार रहे।और अगर सीबीआई जो कह रही है वह उसके सबूत देने में कामयाब हो गई और कोर्ट ने उसके सबूत मान लिए तो कोर्ट के फिर डीजीपी के खिलाफ बहुत सख़्त आदेश पारित कर सकता है यह भी एक सच्चाई है।