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- योगी को हटाने की...
अरुण दीक्षित
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जन्मदिन पर शुभकामनाओं की "चहचहाअट" को लेकर देश के सियासी हलकों में जो शोर मचा हुआ है वह वेमानी है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,गृहमंत्री अमित शाह और उनके सिपहसालार जगतप्रकाश नड्डा ने योगी को जन्मदिन पर वधाई भले ही न दी हो पर उनमें इतना साहस नही है कि वे उत्तराखंड का प्रयोग उत्तरप्रदेश में कर सकें।न ही मातृ संगठन इस तरह की सलाह दे पायेगा! क्योंकि उत्तराखंड की स्थिति उत्तरप्रदेश के सामने ठीक वैसी है जैसी कि बेटे की बाप के सामने होती है।उत्तराखंड खण्ड के त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भले ही दिल्ली के हुकुम पर कुर्सी छोड़ दी हो पर उत्तरप्रदेश के अजय सिंह विष्ट ऐसा नही करेंगे।अगर उन पर दबाव बनाया गया तो फिर भाजपा के लिए उत्तरप्रदेश बचाना मुश्किल हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि कोरोना काल में गंगा में बही लाशों की बजह से मोदी की बहुत बदनामी हुई है।पूरी दुनियां में गंगा में बह रही लाशों और उसके फांट में बनी कब्रों की तस्वीरें तैरती रही हैं।माना गया कि इनकी बजह से नरेंद्र मोदी की पूरी दुनिया में भारी बदनामी हुई है।
इसके साथ ही यह चर्चा भी शुरू हुई कि मोदी योगी से खुश नही हैं।वह उन्हें हटाना चाहते हैं।इसकी बजह भी है।योगी भले ही मुख्यमंत्री हों पर मोदी प्रधानमंत्री हैं।वह 2014 में प्रधानमंत्री बनने के लिए ही "गंगा मां" के कथित बुलावे पर बनारस गए थे।उनके लिए दिल्ली का रास्ता बनारस से खुला था।2019 में भी यही रास्ता था औऱ आगे भी इसी रास्ते के जरिये वह दिल्ली पहुंच पाएंगे।अगर गंगा और उत्तरप्रदेश ने साथ नही दिया तो मोदी का राजमार्ग अवरुद्ध हो जाएगा।
यही बजह है कि उत्तरप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें चल रही हैं।इन अटकलों को गति तब और मिली जब दो दिन पहले योगी के जन्मदिन पर मोदी और शाह के ट्विटर से योगी के लिये वधाई संदेश नही आया। पार्टी के भीतर योगी के विरोधियों ने इसे आधार बना कर पिछले 48 घंटे में इतना रायता फैला दिया है कि उसे बटोर पाना किसी के लिये भी मुश्किल होगा।मात्र एक "संदेश" न आना बहुत बड़ा "संदेश" दे गया है।
इस बीच दिल्ली में जो कुछ चल रहा है उससे अटकलों को और हवा मिली है।रविवार को पार्टी के उत्तरप्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह की लखनऊ यात्रा से अटकलों ने और गति पकड़ी है।हालांकि राधा मोहन ने मीडिया से यही कहा है कि सरकार और संगठन बढ़िया काम कर रहे हैं पर राज्यपाल से उनकी मुलाकात ने लोगों के कान खड़े कर दिए हैं।
इस पर बात करने से पहले जरा हालात पर नजर डालते हैं।2017 के विधानसभा में भाजपा मोदी के नाम पर चुनाव लड़ी थी।तब पार्टी ने मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा आगे नही किया था।गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ तब प्रदेश की राजनीति से भी दूर थे।लेकिन भाजपा की जीत के बाद सूबे की गद्दी उन्हें ही मिली।इसकी क्या बजह थी?क्या संघ ने कट्टर छवि के चलते योगी को गद्दी दिलवाई!या मोदी की यह मजबूरी बन गयी कि उन्हें नौसिखिया योगी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा क्योंकि वे राजनीति के घाघ राजनाथ सिंह को लखनऊ से दूर अपनी आंखों के सामने रखना चाहते थे!इन सवालों पर बात न करके आज के हालात देखें।
उत्तरप्रदेश में आठ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं।पिछले सवा चार साल में योगी ने उत्तरप्रदेश में अपने ढंग से राज किया है।उन्होंने अपनी छवि अपने वस्त्रों के अनुरूप बनाई है।प्रादेशिक नेताओ के आंतरिक विरोध के बाद भी "अजय सिंह विष्ट" अपने नाम के अनुरूप "अजेय" रहे हैं।यही नही उनका कद बहुत बढ़ गया है।इस अवधि में पूरे देश में जहाँ भी चुनाव हुए हैं,योगी स्टार प्रचारक बन कर भाजपा का प्रचार करने गए हैं।
कहा यह भी जाता है कि संघ उन्हें मोदी के विकल्प के तौर पर तैयार कर रहा है।शायद यही बजह है कि जब भी मोदी के विकल्प की बात आई तो किसी अन्य नाम से पहले स्वाभाविक रूप से योगी का नाम आया।
पिछले दिनों जब मोदी ने अपने एक करीबी नौकरशाह को इस्तीफा दिलाकर उत्तरप्रदेश भेजा तब यह माना गया कि वह योगी की लगाम कसना चाहते हैं।बाद में उस अधिकारी को विधान परिषद सदस्य बनाये जाने पर इस चर्चा ने जोर पकड़ा कि मोदी उसे सरकार में शामिल करके योगी की सड़क पर स्पीड ब्रेकर बनाना चाहते हैं।यह अटकलें अभी भी चल रही हैं।मोदी अभी तक कुछ कर नही पाए हैं।
भाजपा के पुराने नेता यह मानते हैं कि योगी को हटाना मोदी के लिए आसान नही है। न ही वह लखनऊ में सत्ता के दो केंद्र बना सकते हैं।क्योंकि उत्तरप्रदेश में योगी ने अपनी जो कट्टर मुस्लिम विरोधी छवि बनाई है वह उनकी ढाल बनी हुई है। आजम खान से लेकर मुख्तार अंसारी तक को उन्होंने कस दिया है।विकास दुबे और मुन्ना बजरंगी का हश्र भी सबने देखा है।सभी राजनीतिक विरोधियों की लगाम योगी ने कस रखी है।यह भी सच है कि मोदी का अनुसरण करते हुए योगी ने अपनी सरकार में भी सभी को बौना कर दिया है।
ऐसे में अगर अब योगी को हटाया जाता है तो पार्टी के लिए उत्तरप्रदेश में सरकार बचाये रखना मुश्किल होगा। हालांकि राज्य में समायाएँ बहुत हैं।लेकिन योगी को हटाने से वह हल नही होंगी।हां बढ़ जरूर सकती हैं।
फिलहाल प्रदेश संगठन में बदलाव हो सकता है।प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की जगह किसी आक्रामक छवि वाले नेता को उत्तरप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया जा सकता है।यह कडबा सच है कि योगी के सामने सब नेता बौने हो गए हैं ऐसे में संगठन के लिए भी तेजतर्रार नेता खोज पाना संघ और भाजपा के लिए बहुत ही कठिन होगा।
कहा यह भी जा रहा है कि जो नेतृत्व कर्नाटक में येदुरप्पा को नियंत्रित नही कर पा रहा है वह उत्तरप्रदेश में योगी को कैसे नियंत्रित कर पायेगा।येदुरप्पा तो दूर कर्नाटक में बैठे हैं।यहां योगी तो दिल्ली के दरबाजे पर खड़े हैं।
अतः उठापटक चाहे जितनी हो योगी आदित्यनाथ की गद्दी पर आंच नही आएगी!और यदि मोदी महत्वाकांछा ने उत्तरप्रदेश की सत्ता को दांव पर लगाने का मन बना लिया तो कुछ भी हो सकता है।क्योंकि उनके आगे सब नतमस्तक है!चाहे संघ हो या संघटन!
फिलहाल तो आप तेल देखिये और तेल की धार देखिये।