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लोकसभा संग्राम 88– यूपी के चुनावी रण में मोदी की भाजपा की खिसकती सियासी ज़मीन
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में यूपी की आठ सीटों पर चुनावी रण की शुरूआत हो चुकी है। बसपा-सपा और राष्ट्रीय लोकदल ,मोदी की भाजपा व कांग्रेस की सेना ने चुनावी माहौल को अपने-अपने पक्ष में करने के लिए चुनावी मैदान में करतब दिखाने शुरू कर दिए है।पश्चिम की इन आठ सीटों पर मोदी की भाजपा ने एक कैराना को छोड़कर किसी सीट पर प्रत्याशी नही बदला है ज़्यादातर सीटिंग सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा है वही अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे रालोद नेता छोटे चौधरी अजीत सिंह व उनके पुत्र अपने दादा पूर्व प्रधानमंत्री स्वं चरण सिंह के अक्श समझे जाने वाले जयंत चौधरी सहित क़ाज़ी रशीद मसूद परिवार का सियासी कैरियर दाँव पर लगा है।
पहले चरण की आठ सीटों में मोदी की भाजपा के सामने दलित-मुस्लिम व जाट के समीकरण से हार का सकट मँडरा रहा है इनमें ऐसी कोई सीट नही है जहाँ ये गठजोड़ असरदार नज़र नही लग रहा है हर सीट पर यह गठबंधन मोदी की भाजपा के लिए चुनावी सिरदर्द बना हुआ है और कही-कही आपसी गुटबाज़ी भी नुक़सान दे रही है।सबसे ज़्यादा काँटों भरी राह मुज़फ़्फ़रनगर , सहारनपुर , मेरठ , बागपत , बिजनौर , कैराना व गौतमबुद्धनगर के मोदी की भाजपा के प्रत्याशियों के सामने है इन सीटों पर जैसे-जैसे चुनाव की तारीख़ 11 अप्रैल की ओर बढ़ रही है वैसे-वैसे ही गठबंधन के प्रत्याशियों का चुनावी दबदबा बढ़ता जा रहा है मोदी की भाजपा के विरोधी वोटर का मत है कि गठबंधन के प्रत्याशियों के पास थोंक वोट है इस लिए हमारा वोट गठबंधन को ही जाएगा।
मुज़फ्फरनगर लोकसभा सीट से गठबंधन के प्रत्याशी चौधरी अजीत सिंह का चुनाव दलित-मुस्लिम में तो स्थिर खड़ा है न घट रहा है और न बढ़ रहा है वो वहाँ चुनाव से पूर्व एक समान खड़ा है लेकिन उनकी जाति जाट में चौधरी का चुनाव हरदिन मजबूत हो रहा है यही कारण मोदी की भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी बनती जा रही है हमने जाट जाति बाहुल्य गाँवों में जाकर देखा तो हमें लगा कि चौधरी अजीत सिंह का चुनाव जाटों में मजबूत हो रहा है एक दर्द को और महसूस किया जा रहा है कि 2013 में साम्प्रदायिक दंगा कराकर जो आपसी माहौल बिगाड़ा गया था उसको भी सामान्य बनाने की भरपूर्व कोशिश की जा रही है और इस कोशिश में जाट जाति के बड़े बुज़ुर्गों का बड़ा किरदार नज़र आ रहा है चौधरी अजय का कहना है कि बरसो से चले आ रहे प्यार को मिनटों में खतम कर दिया था जिसे हम दुबारा क़ायम करेंगे अगर जाटों के बुज़ुर्गों की इस मुहिम ने अपना काम किया तो अजीत सिंह सबसे ज़्यादा वोटो से जीतने वाले प्रत्याशी होगे क्योंकि यहाँ छह लाख से अधिक मुस्लिम, तीन लाख तीस हज़ार जाट व तीन लाख से अधिक दलित वोट है जिनको जोड़ते है तो ये कुल सत्रह लाख वाली लोकसभा में 12 लाख पचास हज़ार बैठते है इस हिसाब से तो चौधरी अजीत सिंह को जीतने से कोई नही रोक सकता है वही मोदी की भाजपा के प्रत्याशी डाक्टर संजीव बालियान अपनी हार को रोकने के लिए मुसलमानों में वोट माँगते देखे जा रहे है जबकि 2014 में उनकी जीत का कारण दंगा बना था वो मुसलमानों में कह रहे है कि हमें वोट क्यों नही देते हमारी सरकार और हमारे से शिकायत क्या है इस बात के जवाब तो है और मिल भी रहे है लेकिन सवाल ये उठता है कि वो ये बात कह किस मुँह से रहे है ख़ैर उनकी कोई सियासी पहचान नही थी दंगों की वजह से जीत गए थे इससे साफ पता चलता है कि मुज़फ़्फ़रनगर लोकसभा सीट पर गठबंधन ही भारी है वैसे यहाँ एक बात और है जो गठबंधन को मज़बूती प्रदान कर रहा है कोई भी सेकुलर नेता अजीत के खिलाफ नही है।
सहारनपुर में मोदी की भाजपा ने अपने पुराने नेता एवं सांसद राघव लखनपाल शर्मा पर ही दाँव लगाया है तो गठबंधन ने सहारनपुर नगर निगम के चुनाव में सहारनपुर की सियासत में अपने आपको सिकंदर समझने वालों की कूटनीतिक चालों से हारे हाजी फजलर्रहमान को प्रत्याशी बनाया है जहाँ उनको नगर निगम के चुनाव में एक षड्यंत्र के तहत मिली हार का फ़ायदा मिल रहा है हालाँकि इस बार षड्यंत्र कारी खुद भी मैदान में है एक और षड्यंत्र के लिए ताकि मोदी की भाजपा जीत जाए लेकिन जनता इस बार उनको आइना दिखाने जा रही है इस लिए यहाँ मुक़ाबला गठबंधन और मोदी की भाजपा में होता दिखाई दे रहा है क्योंकि यहाँ मुसलमानों व दलितों की संख्या नौ लाख से ज़्यादा है मोदी की भाजपा विरोधी वोट साढ़े सात लाख पड़ने की संभावना है और मोदी की भाजपा को पसंद करने वालों के साढ़े चार लाख वोट पड़ने की संभावना है कुल मिला कर मोदी विरोधी वोट अगर गठबंधन से हटकर जाता है तभी मोदी की भाजपा जीत सकती है नही तो यहाँ किसी सूरत में नही लग रहा कि सहारनपुर की सीट मोदी की भाजपा जीत रही है यहाँ गठबंधन आराम से जीतता दिखाई दे रहा है।
यही हाल कैराना की लोकसभा सीट पर नज़र आ रहा है वैसे माना जा रहा था कि अगर स्वं हुकुम सिंह की बेटी मंगृाका सिंह का टिकट होता तो मोदी की भाजपा गठबंधन की प्रत्याशी के सामने काफ़ी मुश्किल खड़ी कर सकती थी लेकिन उनका टिकट कट जाने से कैराना में समीकरण गठबंधन के पक्ष में लग रहे है क्योंकि गंगोह विधायक प्रदीप चौधरी को उनके मुक़ाबले हल्का माना जा रहा है। कांग्रेस ने जाट नेता हरेन्द्र मलिक को मैदान में उतारा है जो चुनाव को त्रिकोणीय बनाने का भरपूर प्रयास करेगे।
बिजनौर लोकसभा सीट पर मोदी की भाजपा ने वर्तमान सांसद भारतेंदु सिंह पर ही भरोसा जताया है और गठबंधन ने गुर्जर जाति के मलूक नागर को ही एक बार फिर प्रत्याशी बनाया है गठबंधन में यह सीट बसपा के कोटे में है बसपा ने काफ़ी ज़ोर आज़माइश करके प्रत्याशी का चयन किया है क्योंकि इससे पहले उसने दो नामो पर विचार किया जिसमें रूचि वीरा और चाँदपुर विधानसभा से दो बार बसपा से विधायक रहे हाजी इक़बाल लेकिन आख़िरकार मलूक नागर के नाम पर मोहर लगाई गई वही कांग्रेस ने इस सीट पर त्रिकोणीय मुक़ाबला बनाने की कोशिश की नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को प्रत्याशी बनाकर लेकिन क्या मुसलमान कांग्रेस की सियासी गुगली में फँसेगा इसके कम ही चांस लग रहे है।
मेरठ लोकसभा सीट पर भी मोदी की भाजपा के प्रत्याशी राजेन्द्र अग्रवाल अपनी हैट्रिक लगाने की भरपूर कोशिश में है मगर यहाँ कांग्रेस ने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता के पुत्र हरेन्द्र अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया है इस लिए मोदी की भाजपा को अपने परम्परागत वोट वैश्य को रोकने की चुनौती होगी और गठबंधन प्रत्याशी हाजी याकूब गठबंधन के वोट दलित मुसलमान व जाटों में मज़बूती से खड़े होकर अपने चुनाव को जीत की दहलीज़ पर ले जाने की रणनीति पर चल रहे है यहाँ भी गठबंधन मज़बूती से जीतने वाला चुनाव लड़ रहा है।
बागपत लोकसभा सीट पर गठबंधन ने जाटों के सिरमौर कहे जाने वाले स्वं चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी को मैदान में उतारा है यहाँ भी कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी नही उतारा है और मोदी की भाजपा ने नौकरशाह से नेता बने सतपाल सिंह को ही प्रत्याशी बनाया है लोगों की बैठकों और चौपालो पर यह सवाल आम है कि क्या सतपाल इस बार भी जाटो का वोट ले पाएँगे जैसे 2014 में साम्प्रदायिक ज़हर के चलते लेने में कामयाब रहे थे जबकि लोग कह रहे है कि जाटों के सपने में चरण सिंह आ रहे है कि पिछली बार की गई ग़लती इस बार नही करना और मेरे पौत्र को बागपत से लोकसभा भेज देना बागपत की चौपालो पर यह बात मतदाता ठहके लगाते हुए कहते सुनाई दे रहे है कहते है बस बहुत हो चुका हिन्दु-मुसलमान अब तो अपने नेता को मजबूत करना है।
गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट पर मोदी की भाजपा ने अपने सांसद पर ही भरोसा जताया है और कांग्रेस ने पूर्व बसपा नेता और अब मोदी की भाजपा के नेता ठाकुर जयवीर सिंह के पुत्र पर विश्वास किया है हालाँकि उनके पिता जयवीर सिंह ने अपने पुत्र के साथ नही होने की बात कहकर कांग्रेस के प्रत्याशी के चुनाव को हल्का करने की कोशिश की है तो गठबंधन ने गुर्जर जाति के नेता सतबीर नागर पर दाँव लगाया है इस सीट पर गुर्जर जाति के मतों की संख्या चार लाख से अधिक है अगर गुर्जर जाति का जाति प्रेम जागा तो यहाँ भी गठबंधन का प्रत्याशी दलित-मुस्लिम के वोटबैंक के सहारे जीत की गाड़ी गठबंधन के पक्ष में चला सकते है।
ग़ाज़ियाबाद लोकसभा सीट पर मोदी की भाजपा ने केन्द्रीय राज्य मंत्री ठाकुर वी के सिंह को ही प्रत्याशी बनाया है जो पूरे पाँच साल में अपने संसदीय क्षेत्र में मात्र दो सौ बार ही आ पाए है यह बात उनके विरूद्ध माहौल बनने में कारगर साबित हो रही है कांग्रेस ने नगर निगम चुनाव में अच्छा चुनाव लड़ी डोली शर्मा पर भरोसा जताया है और गठबंधन ने पूर्व विधायक सुरेश बंसल को प्रत्याशी बनाकर ग़ाज़ियाबाद के चुनाव को रोचक बनाने की कोशिश की क्योंकि सुरेश बंसल ग़ाज़ियाबाद में एक साफ सुथरी छवि के नेताओं में शुमार है इस लिए यहाँ भी गठबंधन मोदी की भाजपा के नाक में दम किए हुए है। कुल मिलाकर पहले चरण की आठों लोकसभाओं में गठबंधन कम से कम सात सीट जीतता दिख रहा है वैसे असल पता तो 11 अप्रैल को मतदान के बाद ही चलेगा लेकिन दलित-मुस्लिम व जाट वोट की जुगलबंदी से मोदी की भाजपा की सियासी ज़मीन खिसकती नज़र आ रही है।