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मुलायम ने फिर बदला पाला, शिवपाल के उड़े होश और अखिलेश के संग जाकर खोला ऑफिस का ताला

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव इस समय बड़ी दुविधा में फंसे हुए है. हमेशा अपने धोवी पछाड़ दांव से सबको चित करने वाले मुलायम इस बार भाई और बेटे की लड़ाई में बीते दो साल से चित पड़े है. उनके सामने सबसे प्रबल समस्या है कि इस समय वो किसका साथ दें. क्योंकि बेटे अखिलेश के साथ भाई शिवपाल ने भी कभी उनकी एसी कोई बात नहीं है जो नहीं मानी हो जबकि कई बातें उनके बेटे अखिलेश ने नहीं मानी.
मुलायम सिंह यादव का राजनीति में परिवार वाद की राजनीत करने वाला नेता बताया जाता. राजनीत में एक ही परिवार में सैफई परिवार का नाम आता है. अब इस परिवार में त्रिशंकु की हालत बनी हुई है. इसके जिम्मेदार कौन है? अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष बन चुके हैतो शिवपाल अपना समाजवादी सेकुलर मोर्चा बना चुके है. मुलायम कभी अखिलेश के मंच पर तो कभी शिवपाल के मंच पर जाते है इससे इस लड़ाई को आगे बढने का मौका मिलता है.
जब विरोध शुरू हुआ पहली बार तो मुलायम शिवपाल के साथ खड़े नजर आये जबकि कुछ देर बाद ही वो अखिलेश के साथ प्रेस कांफ्रेंस भी करते नजर आये और कहा कि अब यादव परिवार में कोई लड़ाई नहीं है. जबकि ऐसा नहीं है जब से इस परिवार में आग लगी है तबसे बुझने का नाम नहीं ले रही है धीरे धीरे सुलगते सुलगते अब लौ फुट चुकी है. जो अब मुलायम के कब्जे से बाहर होती नजर आ रही है.
आपको बता दें कि अजब मुलायम सिंह यादव की पत्नी की असामयिक मौत हो गई थी तब अखिलेश को सहारा शिवपाल और उनकी पत्नी ने दिया था. उस अहसान के तले मुलायम दबकर आज भी शिवपाल के खिलाफ कुछ नहीं बोलते है और न हीं शिवपाल उनके खिलाफ कभी मुखर होते है हमेशा कहते है कि आज जो कुछ हूँ नेताजी की बदौलत हूँ. इस जंग में अब सबसे कमजोर मोहरा मुलायम सिंह यादव है जो न चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे है.
पिछले दिनों सपा की साईकिल रैली के समापन में अखिलेश के साथ जंतर मंतर के मंच पर मुलायम सिंह ने पहुंचकर क्या संदेश देने की कोशिश की कोई नहीं समझ पाया जब अगले कुछ दिन बाद लोहिया जी की जयंती पर शिवपाल को मंच पर जाकर आशीर्वाद दे दिया और कुछ अपने प्रबल समर्थक रहे लोग मोर्चा में उनके सामने शामिल हो गये. इस बात का अखिलेश को मलाल जरुर हुआ होगा. उसके कुछ दिन बाद मेरठ से सपा के बड़े मुस्लिम चेहरा आज़म खान को शिवपाल की पार्टी में शामिल होने की खबर वायरल हो गई.
लेकिन आज अचानक अखिलेश के साथ नेताजी के कार्यालय पहुंचने की खबर ने सपाइयों के चेहरे की रौनक लौटा दी तो वहीँ शिवपाल खेमें में मायूसी छा गई. अब उनके इस तरह सपा कार्यालय में बैठकर आम आदमी की समस्या सुनना क्या संदेश दे रहा है यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन यदि इस खेल को विधानसभा चुनाव की तरह ही खेला गया तो इस बार सपा भी बसपा वाली हालत में पहुँच जाय तो कोई नई बात नहीं होगी.