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लोकसभा संग्राम 54– वाह-रे मुसलमान, वोट तुम्हारा और तुम्हें सियासी तौर पर बेच रहा है यादव परिवार
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में सियासी नज़रिये से बहुत ही कमज़ोर माने जाने वाले मुसलमान के फ़ैसलों पर रोना ही आता है हालाँकि यूपी में मुसलमानों की आबादी 20% से ज़्यादा है लेकिन उसकी सियासी हैसियत एक बँधवा मज़दूर की बनी हुई है यही वजह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उसका एक भी प्रत्याशी लोकसभा नही पहुँच पाया था इसके बावजूद भी मुसलमान अपने रूख में कोई बदलाव लाने की कोशिश नही कर रहा क्या यही हाल अब लोकसभा चुनाव 2019 में भी होने जा रहे है ? कई सियासी मुस्लिम लोगों से बात करने के बाद यह दर्द निकलकर आया कि हम इसी तरह बेचे जाते है और हम ख़ुश है असल में सपा कंपनी के सियासी मैदान में आने से पहले हमें कांग्रेस इस्तेमाल करती आई और अब हम सपा कंपनी के बँधवा मज़दूर बने चले आ रहे है बसपा और सपा कंपनी के बीच हुए सियासी गठजोड़ में जो बात निकल कर सामने आई कि बसपा ने तो अपने दलित वोटों को आधार बनाकर समझौता करने कि पहल की परन्तु सपा ने किस आधार पर बसपा से समझौता किया है क्या मात्र 8% यादव को आधार बनाकर 22% दलितों वाली पार्टी बसपा से समझौता किया है,बसपा की समझौता करने की बात तो समझमें आती है कि उसका अपना वोटबैंक है उसे हक़ भी है परन्तु सपा ने अपने बँधवा मज़दूर मुसलमानों को ही आधार बनाया है बसपा ने भी मुसलमानों की वजह से सपा से समझौता किया है नही तो शायद ही बसपा सपा से समझौता करती।
इस पर यही कहा जा सकता है कि वा-रे मुसलमान वोट तुम्हारा और तुम्हें सियासी तौर पर बेचने का काम सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश यादव कर रहे है या यूँ कहे कि काफ़ी दिनों से तुम्हें यादव परिवार ही बेचता आ रहा है और आप बिक रहे हो।बेच रहे है इसमें कोई ख़ासबात नही है परन्तु उनसे अपने बिकने का हिसाब किताब तो माँग ही सकते है लेकिन नही मुसलमान ने या उनके स्वयंभू नेताओं ने सपा या कांग्रेस से कभी यह मालूम करने की जुरूरत महसूस नही समझी या जानबूझकर नही लिया यह तो वही सही जानते होगे कि उन्होंने क्यों नही किया ? क्या मुसलमानों की दर्दनाक दुर्दशा के लिए उनके स्वयंभू नेता ही ज़िम्मेदार है ?
रंगनाथ मिश्रा आयोग व राजेन्द्र सच्चर कमैटी की रिपोर्ट इसकी दलील है कि मुसलमान किस दशा में पहुँच गया है यह बात किसी से छिपी नही है फिर भी मुसलमान या उसके नेता समझने या समझाने को तैयार नही है।मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण ज़्यादातर गठबंधन के पक्ष में होने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता परन्तु अगर मुसलमान बँधवा मज़दूर बनना बंद कर दे तो शायद उसके हालात सुधर जाए लेकिन उसको आदत हो गई है इसी तरह रहने और सहने की , उसके लिए कोई कुछ नही कर सकता जो अपने विकास की खुद नही सोचता है।
यूपी में मुसलमान बहुत ही भारी तादाद में है उसके बाद भी उसका सियासी कोई वजूद नही है यह बड़ी शर्म की बात है मुसलमानों के लिए भी और उसके नेताओं के लिए भी उसकी सोच बस थाने पुलिस तक महदूद कर दी गई है न उसके लिए अच्छी शिक्षा की बात होती है न रोज़गार की बात होती है न उसके लिए अच्छी चिकित्सा की बात होती है हाँ अगर बात होती है तो थाने और पुलिस की बात होती है यहाँ यह सवाल भी उठता है कि क्या सारा मुसलमान ग़लत धन्धों में संलिप्त है ऐसा भी नही है कुछ लोग है जो ग़लत कामों को करते है बस उनके लिए पूरे मुसलमानों को मँझधार में छोड दिया जाए यह बिलकुल ग़लत है यहाँ यह भी बताना उचित है कि जो लोग सही है वह उन कुछ लोगों की ख़ातिर अपनी क़ुर्बानी दे रहे है वह अपने आपको पीछे कर लेते है जिससे मुसलमानों का विकास बाधित हो रहा है मुसलमानों को चाहिए कि जो लोग ग़लत है उनको पीछे कर अपने लिए टेबल टोक करे कि हमारे विकास के लिए आपका क्या एजेंडा है ?
जब आप उनके एजेंडे से सहमत हो तो उनको वोट करे समय-समय पर समीक्षा भी करे कि क्या वह दल या नेता उस दिशा में काम कर रहा है जो उसने हमसे वायदे किए थे तो ठीक और अगर कर नही रहा तो उसको सबक़ सिखाओ तब वह सही हो जाएँगे कि अब पहले की तरह काम नही चलेगा जो कहा वह करना पड़ेगा।रही बात उन लोगों की जो ग़लत दिशा में चलते है या थे वह भी सही हो जाएँगे जब उन्हें लगेगा कि अब नही चलेगा सही होना ही पड़ेगा ?
लेकिन हो उसका उलटा रहा है मुसलमानों की कयादत वो ही लोग कर रहे है जो ग़लत कार्यों में संलिप्त है वह लोग शोर शराबा कर चुनाव में उस नेता को ज़ोर शोर से उठा देते है जो ग़लत कार्यों में उनकी मदद करता है और पूरा मुसलमान भी भेड़-बकरियों की तरह उनके साथ खड़ा हो जाता है और दलील देते है कि यह नेता मुसलमानों के दुख दर्द में खड़ा रहता है कमाल की बात यह है कि कोई यह नही पूछता कि इसने मुस्लिमों के लिए क्या किया है वो स्कूल कहाँ है जो इसने बनवाए जहाँ बच्चे अच्छी शिक्षा लेकर देश के विकास में अपना योगदान दे सके या अपना भविष्य सुरक्षित कर सके ? सब यही कहते हुए दिखाई देते है हाँ ये काम तो बहुत करता है चलो मान लिया अगर मुसलमान उसको ही अपने लिए काम मानता है कि यह 24 घन्टे मौजूद रहता है पर कोई यह बताने के लिए तैयार नही होता कि इसने मुसलमानों के लिए काम क्या किया है ?
इसका किसी के पास जवाब नही रहता क्या यही काम है कि मुसलमानों के नाम पर जज़्बाती बातें करना और अपना उल्लू सीधा करना तो उसका कोई कुछ नही कर सकता ये बेचारे तो यह भी नही जानते कि यह सियासत उस नेता का कारोबार है न कि जनसेवा फिर तो उसको सपा परिवार बेचे या कोई और इसका अफ़सोस नही होना चाहिए लेकिन अगर वास्तव में ही मुसलमानों की दूरदर्शा को दूर या खतम करनी है तो 99% मुसलमान जो सही है उसे जागना होगा और अपनी तरक़्क़ी के लिए सवाल उठाने होगे तभी जाकर कुछ हो पाएगा नही तो इससे भी बत्तर हालात के लिए मुसलमानों को तैयार हो जाना चाहिए।सवाल यह भी उठता है कि क्या सारे मुसलमानों के थाने पुलिस के मामले पड़ते है ऐसा भी नही है ज़्यादातर मुस्लिमों की कई नश्ले खतम हो गई होगी जिन्होंने थाने या पुलिस की शक्ल भी नही देखी होगी फिर क्यों यह बात होती है कि थाने पुलिस में यह नेता हमारी मदद करता है ? 1% मुसलमानों के लिए पूरे मुसलमानों को अपने अच्छे भविष्य के लिए क्या क़ुर्बानी देनी चाहिए ?
प्रदेश की ऐसी पच्चीस सीट लोकसभा की है जहाँ मुसलमान सही फ़ैसला कर चुनाव जिता सकता है लेकिन इस बार मुसलमान गठबंधन को ही पसंद करेगा ऐसा ही लगता है ? जब बसपा का सहारा ही लेना था तो सीधे क्यों नही गए सपा को क्यों बेचने का मौक़ा दिया है जब मुसलमानों के यह बात समझमें आ रही है कि बिना बसपा के काम नही चल सकता तो सीधे बसपा में क्यों नही गए? सपा को क्यों बिचौलियां बनाया ? 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को मिली हार के बाद सपा ने मुसलमानों के लिए कौन सी आवाज बुलंद की चाहे पशुवधशालाओं को बंद करने का मामला हो या मोदी की भाजपा का सियासी हथियार तलाक का मामला हो या प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर रहे हो किसी भी इश्यू पर मुखर होकर आवाज उठाई हो ऐसा कुछ नही किया हाँ कुछ यादव सिपाहियों के तबादलों पर चिख निकल गई थी और ज़ोर शोर से यह आवाज उठाई थी कि जाति विशेष के सिपाहियों पर ज़ुल्म हो रहा है।
अरे वाह क्या बात है जिसका इतना बड़ा वोटबैंक आपके साथ है उस पर ज़ुल्म हो वह आपको नज़र नही आता और आपकी जाति के सिपाहियों का तबादला भी हो जाए तो ज़ुल्म मान लेते हो इसका क्या मतलब हुआ कि मुसलमान सिर्फ़ उसके लिए एक वोट की हैसियत रखता है इससे ज़्यादा कुछ नही यह तो सिर्फ़ बानगी है ऐसे और भी वाक्य है जो लिख दिए जाए तो मुस्लिम हिल कर रह जाए जिनका ज़मीर ज़िन्दा है और जिनका मर जाए उनकी तो बात ही करनी बेकार है।फिलहाल के सियासी हालात पर ग़ौर करने के बाद तो यही लगता है कि गठबंधन के प्रत्याशियों को ही जिताना अक़्लमंदी है लेकिन सपा द्वारा कराएँ गए मुज़फ्फरनगर के दंगों का बदला लिया जा सकता है जहाँ बसपा का उम्मीदवार हो वहाँ गठबंधन के उम्मीदवार को अपना वोट दे और जहाँ सपा का हो वहाँ जो मोदी की भाजपा को हरा रहा हो उस पर जाए क्या ऐसा भी कर सकता है मुसलमान ? इससे यह भी पता चल जाएगा सपा कंपनी को कि हमें बेचकर भी क्या लाभ हुआ अब यह बात अलग है कि मुसलमानों को बेचा चाहे किसी ने भी है एक बार फिर बिक गया।
जिन्होंने थाने या पुलिस की शक्ल भी नही देखी होगी फिर क्यों यह बात होती है कि थाने पुलिस में यह नेता हमारी मदद करता है ? 1% मुसलमानों के लिए पूरे मुसलमानों को अपने अच्छे भविष्य के लिए क्या क़ुर्बानी देनी चाहिए ? प्रदेश की ऐसी पच्चीस सीट लोकसभा की है जहाँ मुसलमान सही फ़ैसला कर चुनाव जिता सकता है लेकिन इस बार मुसलमान गठबंधन को ही पसंद करेगा ऐसा ही लगता है ? जब बसपा का सहारा ही लेना था तो सीधे क्यों नही गए सपा को क्यों बेचने का मौक़ा दिया है जब मुसलमानों के यह बात समझमें आ रही है कि बिना बसपा के काम नही चल सकता तो सीधे बसपा में क्यों नही गए? सपा को क्यों बिचौलियां बनाया ?
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को मिली हार के बाद सपा ने मुसलमानों के लिए कौन सी आवाज बुलंद की चाहे पशुवधशालाओं को बंद करने का मामला हो या मोदी की भाजपा का सियासी हथियार तलाक का मामला हो या प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर रहे हो किसी भी इश्यू पर मुखर होकर आवाज उठाई हो ऐसा कुछ नही किया हाँ कुछ यादव सिपाहियों के तबादलों पर चिख निकल गई थी और ज़ोर शोर से यह आवाज उठाई थी कि जाति विशेष के सिपाहियों पर ज़ुल्म हो रहा है।अरे वाह क्या बात है जिसका इतना बड़ा वोटबैंक आपके साथ है उस पर ज़ुल्म हो वह आपको नज़र नही आता और आपकी जाति के सिपाहियों का तबादला भी हो जाए तो ज़ुल्म मान लेते हो इसका क्या मतलब हुआ कि मुसलमान सिर्फ़ उसके लिए एक वोट की हैसियत रखता है इससे ज़्यादा कुछ नही यह तो सिर्फ़ बानगी है ऐसे और भी वाक्य है जो लिख दिए जाए तो मुस्लिम हिल कर रह जाए जिनका ज़मीर ज़िन्दा है और जिनका मर जाए उनकी तो बात ही करनी बेकार है।
फिलहाल के सियासी हालात पर ग़ौर करने के बाद तो यही लगता है कि गठबंधन के प्रत्याशियों को ही जिताना अक़्लमंदी है लेकिन सपा द्वारा कराएँ गए मुज़फ्फरनगर के दंगों का बदला लिया जा सकता है जहाँ बसपा का उम्मीदवार हो वहाँ गठबंधन के उम्मीदवार को अपना वोट दे और जहाँ सपा का हो वहाँ जो मोदी की भाजपा को हरा रहा हो उस पर जाए क्या ऐसा भी कर सकता है मुसलमान ? इससे यह भी पता चल जाएगा सपा कंपनी को कि हमें बेचकर भी क्या लाभ हुआ अब यह बात अलग है कि मुसलमानों को बेचा चाहे किसी ने भी है एक बार फिर बिक गया।