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- विधानपरिषद में मुस्लिम...
विधानपरिषद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व में बीजेपी ने सपा को पीछे छोड़ा, बीजेपी से सर्वाधिक मुस्लिम एमएलसी
यूपी विधान परिषद् में भाजपा के अब 4 मुस्लिम सदस्य हो गए है। इन सदस्यों में पूर्व राज्यमंत्री मोहसिन रजा , योगी सरकार में मंत्री दानिश आजाद अंसारी , बुक्कल नवाब और अभी इस सप्ताह मनोनीत किए गए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के तारिक मंसूर शामिल है। संभवतः विधान परिषद् में भाजपा के खाते से मुस्लिम सदस्यों की सर्वाधिक संख्या है।
परिषद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व में सपा से आगे निकली भाजपा
विधान परिषद में मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व देने में भाजपा अब सपा से आगे निकल गई है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया था लेकिन विधान परिषद में अब भाजपा के चार मुस्लिम सदस्य हो जाएंगे। वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मोहसिन रजा, बुक्कल नवाब, राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी और प्रो. तारिक मंसूर अब परिषद में भाजपा की ओर से मुस्लिम समाज की नुमाइंदगी करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि मुस्लिम वोट बैंक सपा की राजनीति का प्रमुख आधार है लेकिन परिषद में सपा के नौ में से सिर्फ दो मुस्लिम एमएलसी शाहनवाज खान और मोहम्मद जासमीर अंसारी हैं।
भाजपा ने नगरीय निकाय व लोकसभा चुनाव से पहले विधान परिषद में छह सदस्यों के मनोनयन का प्रस्ताव राजभवन भेजकर एक साथ तीन संदेश दिए हैं। पहला, पार्टी को अपने परंपरागत आधार वोटबैंक का पूरा ख्याल है, जिससे मनोनयन के लिए पांच नाम दिए गए हैं।
दूसरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्तर से मुस्लिम पसमांदा समाज को भाजपा से जोड़ने की लगातार की जा रही बात सिर्फ जुबानी जमा खर्च नहीं है, बल्कि पार्टी इस समाज के प्रति गंभीर है। तीसरा, ''सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास व सबका प्रयास'' की जो बात की जा रही है, वह पार्टी की योजनाओं व नीतियों के साथ-साथ राजनीतिक भागीदारी में भी इसे हरसंभव स्थान देने की कोशिश है।
भाजपा ने विधान परिषद में मनोनयन के लिए भेजे गए छह सदस्यों में एक ब्राह्मण, एक वैश्य, एक अनुसूचित जाति, दो पिछड़े वर्ग के साथ एक मुस्लिम समाज से हैं। इसमें पार्टी ने नगर निकाय चुनाव में सर्वाधिक चर्चा में आए पिछड़े समाज को सर्वाधिक दो स्थान दिया है।
इसके बाद अगड़े समाज से ब्राह्मण के साथ दलित व अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। पार्टी ने सामाजिक समीकरण पर ध्यान देते हुए उन जातियों मौका दिया है, जिनका विधान परिषद में पार्टी की ओर से अब तक या तो प्रतिनिधित्व नहीं था या उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने की जरूरत थी।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम AMU के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर
मनोनयन के लिए भेजे जाने वाले नामों में सर्वाधिक चौंकाने वाला नाम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर का है। लोगों को उम्मीद नहीं थी कि पार्टी पसमांदा समाज के दानिश आजाद अंसारी को सरकार में मंत्री बनाने के बाद जल्दी ही इस समाज को परिषद में मनोनयन के जरिए आगे बढ़ाने जैसा बड़ा कदम फिर उठाएगी।
पसमांदा समाज कई जगह निर्णायक भूमिका में
जानकार बताते हैं कि नगर निगमों में भाजपा की स्थिति जरूर मजबूत है लेकिन नगर पालिका व पंचायत जैसे छोटे शहरों में अभी भी सफलता ठीक से नहीं मिल पा रही है। पिछले चुनाव तक छोटे शहरों में सपा का दबदबा सामने आया था। भाजपा तमाम सीटें बहुत कम अंतर से हार गई थी। शहरों में पसमांदा समाज कई जगह निर्णायक भूमिका अदा करता है। भाजपा को उम्मीद है कि पार्टी से पसमांदा समाज को लगातार आगे बढ़ाने का संदेश जाने से मुस्लिमों का यह तबका साथ आ सकता है। निकाय चुनाव इसके लिए कसौटी बनने जा रहा है।
प्रो. तारिक के कुलपति कार्यकाल में ही एएमयू के इतिहास में करीब 64 साल बाद किसी प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने संबोधित किया था। इससे पहले वर्ष 2018 में उन्हीं के कार्यकाल में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था। ऐसा माना जाता है कि एएमयू से अक्सर भाजपा, आरएसएस और मोदी सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाज को शांत करने में प्रो. तारिक की बड़ी भूमिका रही है।
राजभर समाज को भाजपा प्रदेश टीम में जगह न मिलने की कमी पूरी
भाजपा की प्रदेश टीम में राजभर समाज के एक भी व्यक्ति को जगह नहीं मिली है। पूर्वांचल में कई लोकसभा सीटों पर राजभर समाज निर्णायक भूमिका अदा करता है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर जिले सहित पूर्वांचल की कई सीटों पर भाजपा को राजभर समाज का वोट नहीं मिलने के कारण नुकसान उठाना पड़ा था। पार्टी ने राजभर समाज में पकड़ मजबूत बनाने के लिए आजमगढ़ से रामसूरत राजभर को एमएलसी बनाने का दांव चलकर इस समाज को संदेश देने की कोशिश की है। पेशे से वकील रामसूरत का क्षेत्र के राजभर समाज में अच्छी पकड़ है। ''अमर उजाला'' ने प्रदेश टीम में इस समाज को प्रतिनिधित्व न मिलने का मुद्दा उठाया था।
वैश्य समाज को भी साधा
भाजपा इससे पहले गोरखपुर क्षेत्र के पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष धर्मेंद्र सैंथवार को एमएलसी बना चुकी है। ऐसे में मनोनीत कोटे से किसी एक या दो पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष को एमएलसी बनाया जाना तय माना जा रहा था। इनमें ब्रज के पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष रजनीकांत माहेश्वरी और काशी के पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष महेशचंद्र श्रीवास्तव का नाम प्रमुख था। पार्टी ने हाल ही में घोषित 45 सदस्यीय प्रदेश टीम में किसी वैश्य को जगह नहीं दी है। जबकि वैश्य समाज को भाजपा का सबसे पुराना परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। वैश्य समाज में इसको लेकर नाराजगी भी उठने लगी थी। पार्टी ने रजनीकांत माहेश्वरी को एमएलसी मनोनीत कर वैश्य समाज की नाराजगी दूर की है। साथ ही परिषद में वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है।
अवध में ब्राह्मणों को संदेश
पिछले दिनों पूर्वांचल से पूर्व केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला को राज्यपाल बनाए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा के बेटे साकेत मिश्रा को एमएलसी बनाने का दांव चलकर भाजपा ने अवध व पूर्वांचल के ब्राह्मण वोट बैंक को संदेश देने की कोशिश की है। साकेत बीते पांच-छह साल से भाजपा की राजनीति में सक्रिय हैं। वर्ष 2019 में श्रावस्ती से चुनाव लड़ाने की चर्चा भी चली थी। साकेत अक्सर अंग्रेजी और बिजनेस न्यूज चैनल पर वित्तीय मामलों में मोदी सरकार की पैरवी भी करते नजर आते हैं।
पिछड़ों पर ध्यान, काडर को इनाम
वाराणसी के भाजपा जिलाध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा को एमएलसी बनाकर पार्टी ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। विश्वकर्मा बढ़ई समाज से आते हैं। पश्चिम से पूर्वांचल तक ओबीसी में बढ़ई समाज बड़ा वोट बैंक है। इससे एक ओर जहां पार्टी के कार्यकर्ता को सम्मान देने का संदेश दिया है, वहीं एक बड़ी जाति को संतुष्ट भी किया है। विश्वकर्मा के मनोनयन को पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में संगठनात्मक कार्यक्रमों को सही ढंग से चलाने के इनाम के रूप में भी देखा जा रहा है।
लालजी निर्मल पढ़े-लिखे दलितों में बढ़ाएंगे आधार
विधान परिषद में अब तक 100 में से 92 सदस्य थे। इनमें भाजपा के 74 सदस्य हैं। 74 में से अनुसूचित जाति के सदस्यों की संख्या दहाई में भी नहीं है। परिषद में दलितों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के साथ लोकसभा चुनाव से पहले दलित वोट बैंक को साधने के लिए पार्टी ने लालजी निर्मल को एमएलसी मनोनीत किया है। लालजी धरकार जाति से हैं। बांस के कामकाज से जुड़ी इस जाति का अभी तक विधानसभा या विधान परिषद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। पढ़े-लिखे दलित वर्ग में लगातार सक्रिय रहने वाले लालजी निर्मल के मनोनयन से पार्टी को दलित वर्ग के बीच फायदा की उम्मीद है।