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लोकसभा संग्राम 58– 112 लोकसभा सीटों में से 109 जीतने वाली मोदी की भाजपा को प्रियंका रूलाएगी ख़ून के आँसू

Special Coverage News
28 Jan 2019 1:52 AM GMT
लोकसभा संग्राम 58– 112 लोकसभा सीटों में से 109 जीतने वाली मोदी की भाजपा को प्रियंका रूलाएगी ख़ून के आँसू
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लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। लोकसभा संग्राम में अब सियासी दलों का महासंग्राम शुरू हो चुका है हालाँकि अभी चुनाव आयोग ने चुनावी रणभेरी बजाने का ऐलान नही किया है उम्मीद की जा रही है कि संभवत:मार्च के महीने में चुनावी रणभेरी का ऐलान किया जाए लेकिन सियासत की बिसातों ने अपना काम शुरू कर दिया है विपक्षी दल मोदी की भाजपा को घेरने का कोई मौक़ा नही छोड़ना चाहते है पहले हम बात करते है कुछ ऐसी सीटों की जहाँ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की मोदी की भाजपा से सीधी लडाई है ऐसी सीटों की संख्या 112 है जिसमें से मोदी की भाजपा के पास 2014 के चुनाव में 109 सीटें मोदी की सूनामी में आई थी भाजपा के पास मात्र तीन सीट कांग्रेस के पास रही थी।


राज्यों वार अगर हम देखे तो इस बार कांग्रेस आधे से ज़्यादा सीटों में वह खड़ी दिखाई दे रही है क्योंकि मोदी की सूनामी का खेल अब खतम हो गया है। जिस लिए मोदी को लोगों ने पसंद किया था उसमें मोदी फेल रहे है। यही वजह है कि कांग्रेस मज़बूत होती जा रही है जैसे मध्य प्रदेश में कुल 29 सीटों में से 27 सीटें मोदी की भाजपा के खाते में गई थी। मात्र दो सीट कांग्रेस के वर्तमान में राज्य के CM कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंधिया ही जीतने में सफल हो पाए थे गुजरात की 26 में से 26 मोदी की सूनामी जीतने में कामयाब रही थी। राजस्थान की 25 में से 25 , छत्तीसगढ़ की 11 में से 11 ,नई दिल्ली की 7 में से 7, उत्तराखंड की 5 में से 5 , गोवा की दो अंडमान निकोबार की एक, दादर नगर हवेली व दमन दीव की एक सीट शामिल है। जहाँ मोदी की भाजपा ने कांग्रेस को चारों खाने चित किया था।


लेकिन लगता है इस बार यहाँ कांग्रेस बहुत ही शक्तिशाली होकर मोदी की भाजपा को आइना दिखा रही है 2014 के चुनाव के बाद मोदी की भाजपा ने चाहे कुछ किया झूट से अपने लच्छेदार भाषणों से चाहे उसमें कुछ था या नही था लेकिन कांग्रेस को उठने नही दिया परन्तु कांग्रेस लगातार संघर्ष करती रही और आख़िरकार कांग्रेस एक शक्ति के रूप में मोदी की भाजपा के सामने खड़ी हो ही गई है अब तक कांग्रेस को और उसके नेताओं को असभ्य भाषा का प्रयोग कर संभोधित करने वाले मोदी व उनके स्वयंभू चाणक्य अमित भी की भाषा में बहुत फ़र्क़ देखा जा रहा है पहले कहा जाता था कि पप्पू हमारे लिए वर्ददान साबित होता है लेकिन अब वही पप्पू मोदी की भाजपा के लिए अभिशाप बनाता जा रहा है।


मोदी एण्ड शाह के गृह राज्य गुजरात से चला पप्पू का जादू कर्नाटक, मध्य प्रदेश , राजस्थान व छत्तीसगढ़ में ऐसा चला कि मोदी की भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है यही वजह है कि इन राज्यों के परिणामों से पूर्व जिन भाजपा नेताओं को बर्फ़ में लगा दिया गया था आज उनसे कहा जा रहा है कि अगर वह चाहे तो चुनाव लड़ सकते है नही तो बेचारे मार्गदर्शक मंडली में डाल दिए गए थे एल के आडवाणी की फ़ेस रिडिंग से बहुत कुछ पता चलता है वह अपनी ख़ामोशी के फ़ोटो प्रदर्शित करा कर बहुत कुछ कह जाते है उनकी यह बेचारगी वाली फ़ोटो भीगो-भीगो कर इतनी मार लगाती है जिसका अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है अगर कोई शर्मदार हो तो वही उनके चर्णो में पड़कर माफ़ी माँग ले ख़ैर शर्म इनको कहाँ आती है अगर होती तो शायद यहाँ तक नही पहुँचते।


जहाँ कांग्रेस एक ओर खुद से खड़ी हो रही है वही राहुल गांधी के प्रयास भी शामिल है कांग्रेस की और से प्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में प्रवेश कराना मोदी की भाजपा के लिए सिर का दर्द साबित हो रहा है।माना जा रहा है जब भी कांग्रेस कमज़ोर हुई तो उसे दक्षिण भारत ने मज़बूत किया है प्रियंका गांधी का असर दक्षिण भारत में भी होने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है।

स्व इंदिरा गांधी को भी दक्षिण भारत से मज़बूती मिलती थी 1977 में जनता लहर के चलते आर्यन लेडी इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई थी उसके बाद इंदिरा ने कर्नाटका की चिकमंगलूर लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुँची थी 1980 में भी इंदिरा ने आन्ध्र प्रदेश की मेंढक व यूपी की उनकी परम्परागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ा और वह दोनों जगह से जीती लेकिन उन्होने मेंढक लोकसभा सीट को अपने पास रखा।

सोनिया गांधी ने भी कर्नाटका की बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब रही।दक्षिण राज्य कांग्रेस की कमज़ोर हालत में मदद करते है फिर अच्छे दिन पूरे देश में आ जाते है और कांग्रेस मज़बूत होकर उभरती है ऐसे ही संकेत पिछले सियासी गुणाभाग इसारा करते है।


मोदी की भाजपा के पास नरेन्द्र मोदी के झूट के खोखले वादों के अलावा कुछ नही है जिसकी बुनियाद पर कहा जा सके कि मोदी चुनाव जिताकर एक बार फिर सत्ता के दरवाज़े पहुँच जाएँगे।सबकुछ लूट कर अब बुज़ुर्गों के पायदान पर जाना कहा तक उचित है क्या यह बात वह बुज़ुर्गं नेता या जनता समझ नही रही कि पहले कैसे ज़लील किया और अब सत्ता में वापिस होने के लिए उन्हें सम्मान दिया जा रहा है।

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