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- लोकसभा संग्राम 57– बुआ...
लोकसभा संग्राम 57– बुआ और बबुआ के गठबंधन को हल्का करने के लिए प्रियंका की एंट्री कांग्रेस की रणनीति
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। सियासत में कब क्या हो जाए कुछ नही कहा जा सकता किसको यक़ीन था कि कांग्रेस इतना बड़ा निर्णय ले लेगी।अब इस पर बहस शुरू हो गई कि कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बनाकर यूपी जैसे राज्य की प्रभारी बनाई गई है प्रियंका गांधी से कांग्रेस को क्या लाभ होगा ? यूपी में बुआ और बबुआ के गठबंधन को क्या नुक़सान होगा ? क्या बदल जाएगा सूबे की सियासत का सियासी गुणा भाग ? प्रियंका में जनता इंदिरा के अक्स को देखती है कांग्रेस को इस बात का भरोसा है कि प्रियंका यूपी की सियासत का गेम बदल सकती है ? यह बात तो यक़ीन के साथ कही जा सकती है कि गठबंधन को नुक़सान और मोदी की भाजपा को लाभ होने से नही रोका जा सकेगा।
कांग्रेस ने अब तक का अपना सबसे बड़ा सियासी दाँव चला है कांग्रेस की स्टार प्रियंका गांधी का सियासत में आना गठबंधन का खेल बिगाड़ना है न कि पार्टी को फ़ायदा पहुँचाना क्योंकि कांग्रेस भी उन्हीं वोटों पर दावेदारी करती है जो वोट गठबंधन की तरफ़ माना जा रहा है प्रियंका गांधी की स्ट्रेटेजी रहेगी कि किसी भी तरह गठबंधन को ऐसी हालत में आने से रोका जाए कि अगर केन्द्र में सरकार बनने की स्थिति बनती है तो बसपा की सुप्रीमो मायावती प्रधानमंत्री पद की दावेदारी न कर सके उनकी कम से कम सीट आए दूसरी यह रहेगी कि गठबंधन में कांग्रेस को हल्के में न ले उसे गठबंधन में शामिल कर लिया जाए और सम्माजनक सीटें मिल जाए ? कांग्रेस के नेताओं ने नारे भी बनाने शुरू कर दिये है कि अब "रण क्षेत्र में बज गया डंका आ गई बहन प्रियंका"।विगत एक दशक से अधिक समय से यूपी में कांग्रेस की क्या स्थिति है यह किसी से छिपी नही है।
प्रियंका गांधी पूर्वी यूपी की 34 सीटों पर तो ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिमी यूपी की 12 लोकसभा सीटों पर जोर आजमाइश करेंगे। राहुल की नजर उत्तर प्रदेश की 38 सीटों पर है।पिछले कई सालों से प्रियंका गांधी को सक्रिय करने पर ज़ोर दिया जा रहा था परन्तु बहन का भाई के प्रति इतना लगाव है कि प्रियंका गांधी नही चाहती थी कि भाई की राह का रोड़ा बन जाऊँ क्योंकि प्रियंका के सियासत में आते ही राहुल गांधी का सियासी क़द घट जाता ऐसा सियासी पण्डित मानते है अब सवाल उठता है कि क्या अब नही होगा तो इसका जवाब सियासी पण्डित देते है कि अब ऐसा नही हो सकता क्योंकि राहुल के नेतृत्व में तीन हिन्दी भाषी राज्य जीतने के बाद राहुल देश की सियासत में स्थापित हो गए है इस लिए कांग्रेस ने प्रियंका गांधी पर दाँव लगाया है और प्रियंका गांधी ने भी तभी अपनी रज़ामंदी दी है नही तो इसके लिए बहन प्रियंका भी तैयार नही हो सकती थी दोनों भाई बहन में बहुत ही प्यार है इससे इंकार नही किया जा सकता है।
अब प्रियंका गांधी की स्ट्रेटेजी रहेगी कि गठबंधन को हल्का किया जाए मतलब हराया जाए कांग्रेस को पता है कि वह जीतने की स्थिति में नही है परन्तु गठबंधन का वोट बाँटकर उसे हराने की स्थिति में तो लग रही है और अगर गठबंधन हारेगा और कांग्रेस भी नही जीतेगी तो उसका फ़ायदा सीधा-सीधा मोदी की भाजपा को होगा यह भी साफ दिखाई दे रहा है। कांग्रेस ने जो रणनीति बनाई है अगर हम उसपर ही फ़ोकस करे तो यही बात निकल कर आती है कि जहां कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में या तो कांग्रेस जीती थी या दूसरे नंबर पर थी। कांग्रेस का फोकस उन सीटों पर होगा जहां 2009 में जीत दर्ज की थी। फरवरी में प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में उतरेंगी। उनका पहला निशाना सपा और बसपा के वे असंतुष्ट नेता होंगे जो अब पार्टी में नहीं हैं या जिनके टिकट कटने की उम्मीद है।
ऐसे नेताओं में अखिलेश से नाराज होकर बसपा में गए पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी, बसपा की पूर्व सांसद कैसरजहां, बसपा से ही पूर्व विधायक रहे जसमीन अंसारी, राकेश सिंह राना, बसपा के ही पूर्व नेता रामहेतु भारती, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामलाल राही, मायावती के विश्वस्त रहे आरके चौधरी और सपा के असंतुष्ट पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा। इन बड़े नेताओं को फरवरी में कांग्रेस में शामिल कराकर प्रियंका गांधी चौकाने वाला काम करेंगी?। कहा तो यह भी जा रहा है कि यूपी के सियासी मौसम वैज्ञानिक के नाम से अपनी पहंचान बनाने वाले नरेश अग्रवाल भी भाजपा में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। वे भी एक बार दल बदलने के साथ प्रियंका की शरण में जा सकते हैं।
बसपा और सपा ने जिस तरह से कांग्रेस को गठबंधन से अलग कर अपना गठबंधन कर लिया है उसी के जवाब में कांग्रेस ने इतना बड़ा दाँव लगाया है हम नही तो तुम भी नही वाली स्ट्रेटेजी पर काम कर रही है जनता जो मोदी की भाजपा को हराने के लिए बेताब है उसकी कोई नही सोच रहा सब अपनी गोलियाँ फ़िट करने में लगे है अगर कही वोट बँटने का खतरा है लग रहा है तो वह मुसलमान है जहाँ सबसे ज़्यादा बँटवारा हो सकता है क्योंकि वही एक बँधवा मज़दूर की हैसियत रखता है उसी को बाँटने के लिए ज़ोर लगाया जा सकता है अगर हम मुसलमानों की बात करे उसे दिमाग़ से सोचना चाहिए कि हमें क्या करना चाहिए 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा के गठबंधन को मुसलमान ने वोट करके देख लिया है क्या स्थिति हुई कांग्रेस को हिन्दू वोट नही मिलता है ख़ाली मुसलमान की वोट से कुछ होने वाला नही है इस गठबंधन में और उस गठबंधन में बहुत फ़र्क़ है उसमें सिर्फ़ मुसलमान का वोट था सपा का यादव वोट भी भाग गया था मोदी की भाजपा के साथ लेकिन दलित वही खड़ा था बसपा के पाले में और मुसलमान के पाले में आज इस गठबंधन में दलित एकजुट होकर गठबंधन के साथ खड़ा है अगर इस गठबंधन को मुसलमान वोट करेगा तो जीतने के चांस ज़्यादा है और अगर इधर-उधर दिमाग़ दौड़ाया तो इसका सीधा फ़ायदा मोदी की भाजपा को होगा।
यही सत्य है इसको झूटलाया नही जा सकता है मुसलमान को वोट के मामले में किसी की नही सुननी चाहिए उसे सिर्फ़ गठबंधन पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखना होगा तभी यूपी और देश से मोदी को हटाने का उनका सपना पूरा होगा हाँ उसे बहकाने फुसलाने के लिए बहुत हमदर्द आएँगे कि हम यूँ है हम वो है हम चौबीस घंटे आपके पास रहते है आपके काम आते है तरह-तरह की बातें करेगे लेकिन अगर मुसलमान भटका तो मोदी की भाजपा को जीतने से नही रोका जा सकता है फिर वही नेता कहेंगे कि हार गए तो क्या हुआ हमने तो अपने वजूद की लडाई लड़ी यह काम तो जनता का था उसने हमे क्यों वोट दिया और पाक साफ हो जाएँगे ऐसे नेताओं को मुसलमानों को सेव करके चलते हुए कहना होगा कि इस बार नही अगली बार सोचेंगे आपके बारे में।कही मुसलमान अपने टारगेट से न भटक जाए इसी बात का खतरा बना रहेगा गठबंधन के नेताओं को बना रहेगा इससे इंकार नही किया जा सकता है।