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नरेन्द्र सिंह राणा
लिखा वहीं जाए जो पढ़ा जाए और किया वहीं जाए जिस पर लिखा व पढा जाए। अब अमेरिका व इजरायल की पुलिस तरह उत्तर प्रदेश में पुलिस कार्यवाही होती है। मेरा जवान मेरी शान, मेरी पहचान उसको यदि पहंुचाया नुकसान या पहंुचाने की जुर्रत की तो परिणाम तुरंत भुगतने को तैयार रहिए। माफिया को खुली जीप से व्हील चेयर व गुण्डो को गले में तख्ती टांगकर पुलिस मिमयाने तक ले आई योगी जी की पुलिस।
योगी जी की सरकार को अभी मात्र 4 वर्ष हुए है। 4 वर्ष पहले पुलिस का मनोबल काफी कम हो गया था क्योंकि उत्तर प्रदेश में माफियाओं का खुल्ला राज था। अपराधी, माफियाडॉन बड़ी शान से पुलिस को आंखे दिखाते थे जब चाहते थे तबादला करा देते थे। अवैध शराब, खनन, गौ तस्करी व नकली नोट तथा नकली दवाओं और मिलावटी खाने का सामान धड़ल्ले से बिकता था। हद तो तब हो गयी जब स्कूलों में गरीब बच्चों के मिडडे मील में भी मिलावट कर उनको बीमारियों के हवाले किया जाता था। सिंडिकेट का साम्राज्य स्थापित था। जब कोई मथुरा के जवाहरबाग में सुपरिडेंट ऑफ पुलिस की अन्य पुलिस कर्मियों सहित हत्या या प्रतापगढ़ के सीओ की हत्या को लेकर उसके खिलाफ आवाज उठती थी तब सरकार की और से जनता का ध्यान हटाने के लिये थानों में मुस्लिम वर्ग के दरोगा या सिपाही है कि नही इस प्रकार की जनता को चिढ़ाने वाली बातंे की जाती थी। मुजफ्फरनगर का दंगा व सैफई महोत्सव एक साथ चलते थे। दोनो भाइयों की निर्मम हत्या इस बात को लेकर की गई कि उन्होंने अपनी बहन से छेड़खानी करने वालो का विरोध किया था। इसके विरोध में नामजद अपराधियों को कड़ी सजा मिले इस बात को लेकर लोग लामबन्द हो गए थे। दोषियों को पुलिस ने पकड़ भी लिया था। हत्या में इस्तेमाल हथियार भी बरामद हो गए तब तक सब सामान्य चल रहा था । क्योंकि अपराधी एक विशेष वर्ग से थे अतः तत्कालीन सरकार के उसी समुदाय के कबीना मंत्री जी जो अब अपने किये की सजा भी काट रहे है उनका लखनऊ से मुजफ्फरनगर पुलिस को फोन पहुंचा की जिनको गिरफ्तार किया है बाइज्जत छोडिये। उनके आदेश को ना मानने का साहस उस समय के मुख्यमंत्री में भी नही था तब पुलिस की क्या हिम्मत। दोषियों को छोड़ने की बात जंगल मे आग की तरह फैल गयी। स्थानीय लोगो ने इसके विरोध में जनपद मुख्यालय पर पंचायत बुलाने की घोषणा कर दी। पंचायत में सभी समुदायों के लोग भारी संख्या में पहुंचे। लोगो का आक्रोश सातवें आसमान पर था। सरकार सैफई महोत्सव में मस्त थी। आक्रोशित लोग जब अपने गांवों व घरों को लौट रहे थे तब उन पर सुनियोजित ढंग से हमलों को अंजाम दिया गया। यह खबर जब लोगों को लगी तो गाँव-गाँव दंगे भड़क गए। लापरवाही के कारण बता कर जिले के पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों का तबादला किया गया। करे कोई भरे कोई की कार्रवाई शुरु हुई। भाजपा के स्थानीय विधायको व अन्य पदाधिकारियों के ऊपर झूठे मुकदमों की झड़ी लगा दी। देश व प्रदेशवासियों की आंखों में धूल झोंकने का तत्कालीन सरकार का दांव उल्टा उसी पर भारी पड़ा। अदालत ने लगभग सभी को जमानत दे दी। दूध का दूध और पानी का पानी सब सामने आ गया। लोकसभा के चुनाव में भाजपा की एकतरफा जीत हुई। खान साहब की भैंस चोरी की घटना और फिर पुलिस की बरामदगी पूरे देश मे चर्चा का विषय बनी। खान साहब का रुतबा इस बात से भी जाना व माना जाता था कि वह मुख्यमंत्री की कैबिनेट में भी याद कदा ही काफी मानमनोबल के बाद जाते थे। जब सरकार को ठेंगे पर रखते थे तब पुलिस की क्या हिम्मत की उनकी न सुने।ट्रेन से चलते थे तो TTE रेलवे के स्टाफ से बदसलूकी आमबात थी।
योगी जी पुलिस का मनोबल बढ़ाते हैं।विपक्षी मनोबल तोड़ते थे।कुछ प्रमुख घटनाओ के तथ्यात्मक उदाहरण यह सच्च बताने को काफी है। उदाहरण नम्बर 1 डिप्टी एसपी शैलेन्द्र सिंह जिनको इतना उत्पीड़ित किया उस समय की सरकार ने की उन्होने अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया। क्या कसूर था उसका हम सभी भली भांति जानते है। प्रमाणों के साथ माफिया डॉन को पकड़ना उनको महंगा पड़ा था। मिलना पुरस्कार प्रमोशन चाहिए था मिला तिरस्कार डिमोशन । क्या यह पुलिस का मनोबल गिराने वाली सरकारी कार्रवाई नही थी? अब उस मुलायम राज में पुलिस कठोर कैसे हो सकती थी। उदाहरण नम्बर दो तत्कालीन सरकार के नेता को पुलिस के रोके जाने पर भरे बाजार पुलिस अधिकारी को अपनी गाड़ी के बोनट पर डाल कर सरेआम घुमाना। कार्रवाई वही ढाक के तीन पात। उदाहरण नम्बर 3, अपनी जान की बाजी लगाकर आंतकवादियों को पकड़ना उन खूंखार आंतकियों को पुलिस कस्टडी में राजधानी लखनऊ की अदालत में पेश करते समय उनका भाग जाना किसी के गले नही उतरा था। पुलिस उनको पकड़ना तो दूर छू तक नही पायी थी। जनपद बाराबंकी में सिमी प्रमुख पर दर्ज मुकदमों को सरकार द्वारा वापिस लेना । क्या यह सब पुलिस का मनोबल गिराने वाला काम नही था? उदाहरण न. 4 प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बुद्ध, महाबीर की मूर्तियों को तोड़ना, राहगीरों से मारपीट, कवरेज कर रहे पत्रकारों पर हमला तथा भाजपा के प्रदेश कार्यालय पर तोड़-फोड़ करना यह दुष्साहस सब कई किलोमीटर तक कई घंटे तक चला। हैरान व शर्मसार करने वाली यह घटना पुलिस व प्रशासन के उच्च अधिकारियों यानी एसएसपी व जिलाधिकारी की मौजूदगी में हुई। पुलिस के जवान बड़ी संख्या में मौजूद थे लेकिन जिन अधिकारीयो को आदेश देना था वो उपद्रवियों के सामने हाथ जोड़ रहे थे। हाथों में हथियार लहराते हुए उपद्रवियों को आगे आगे चलकर रास्ता दे रहे थे। जब तक चाहा उपद्रवियों ने तांडव किया। पुलिस के जवान न कमजोर थे न संख्या में कम ही थे हा तत्कालीन सरकार के कारण कार्रवाई करने में असमर्थ जरूर थे। यह सब अमन की नमाज पढ़कर निकलने वालो में से सैकड़ो नमाजियों ने किया था। क्या यह पुलिस का मनोबल गिराने वाली घटना नही कही जाएगी। जनपद मऊ में नवरात्र के समय दुर्गापूजा के बाद मूर्तियों के विसर्जन के समय मुस्लिम समाज के लोगो द्वारा विरोध करने पर दंगा भड़क गया या यूं भी कहा जा सकता है कि पूर्वनियोजित दंगा भड़काया गया था। लोग मारे गए महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। पुलिस मूकदर्शक बनी रही क्योंकि ऊपर से कार्यवाही नही करने के सख्त आदेश थे। हद तो तब हुई जब पीड़ितों ने लखनऊ आकर सरकार से शिकायत कर कार्रवाई करने के लिये बाकायदा धरना दिया। सरकार ने साफ-साफ कह दिया कि वो मुस्लिमस पर चाह कर भी कार्यवाही नही कर सकते क्योंकि यही उनका वोटबैंक है। उल्टे पुलिस वालों को लापरवाही बरतने के कारण सस्पेंड व ट्रासफर कर दिया गया। क्या इसको पुलिस का मनोबल कमजोर करना नही माना गया था। परिवर्तन प्रकृति का नियम है यदि यह शुभ के लिये होता है तो आदर्श बनता है।
योगी आदित्यनाथ जी आदर्शवादी सरकार चला रहे है। देश के अन्य प्रांतों के लिये उदाहरण बन गए है। अब योगी जी की सरकार में उसी उत्तर प्रदेश की पुलिस की कार्रवाई देखिए। प्रदेश की राजधानी लखनऊ को पूर्ववर्ती धारणाओं के अनुसार उपद्रवियों ने फिर चुना लेकिन उनका मनसूबा इस बार योगी जी की पुलिस ने धरासायी कर दिया। उपद्रवियों का भारी संख्या में जमावड़ा हुआ। हिंसा के लिये सारा साजोसामान वे अपने साथ लेकर आये थे। छिटपुट हिंसा कर पाए वह भी मीडिया की गाड़ियां जो उनके कवरेज के लिए चल रही थी उनमें तोड़फोड़ व आगजनी की गई। कुछ सरकारी सम्पत्ति को भी नुकसान पहुंचाया गया। योगी जी ने सब उपद्रवियों की पहचान कर उनकी अविलम्ब गिरफ्तारी व उनसे छतिपूर्ति करने के सख्त आदेश पुलिस को दिये यही नही उपद्रवियों की फोटोज को चैराहों पर लगाया गया। पूरी दुनिया मे उपद्रवियों के खिलाफ इस प्रकार की करवाई उदाहरण बनी।
दूसरा उदाहरण कानपुर में पुलिस पर घात लगा कर हमला करने का है।योगी जी की पुलिस ने अपराधियें को चुन-चुन कर मौत के घाट उतार डाला। गाड़ी पलटने की बात तभी से मशहूर हो गईं। भारतीय सेना जैसी तुरन्त कार्रवाई पाकिस्तान के खिलाफ करती है वैसी ही उत्तर प्रदेश पुलिस अपराधियों के खिलाफ करती है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी पुलिस ने आजादी के बाद पहली बार जैसे को तैसा वाली कार्यवाही कर साफ शब्दों में कड़ा संदेश दिया। माफिया राज 100 प्रतिशत समाप्त किया। 135 खुंखार अपराधियों को मौत की नीद सुलाया, 16737 को गिरफ्तार कर जेल में डाला, अपराधियों की 9.33 अरब की सम्पति जब्त की। डर और दहशत के साम्राज्य पर योगी जी का बुलडोजर चला है। अन्त में यह बात कि ''दिखाई ना देती अंधेरों में यह ज्योति यदि तुम न होते योगी''
लेखक नरेन्द्र सिंह राणा प्रदेश प्रवक्ता भाजपा है