लखनऊ

चमगादड़ों की मौत पर भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली के निदेशक डॉ. आरके सिंह ने कही बड़ी बात

Shiv Kumar Mishra
29 May 2020 3:59 AM GMT
चमगादड़ों की मौत पर भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली के निदेशक डॉ. आरके सिंह ने कही बड़ी बात
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तो फिर क्यों हो रही चमगादड़ों की मौत?

बिहार के भोजपुर में दो दिन पहले कुछ सौ चमगादड़ मरे पाए गए थे। बातें चलीं किसिम किसिम की, तो चमगादड़ों के कान तक पहुंचीं। बैतूल में अचानक चमगादड़ मर गए। फिर कल गोरखपुर से खबर अाई कि घंटे भर में पचास से ज़्यादा चमगादड़ ढेर हो गए। फिर बलिया से चमगादड़ों के मरने की खबर अाई। एक नहीं, दस नहीं, सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ मर रहे हैं अचानक। मेरठ में भी चमगादड़ मरे पाए गए। कोई बत्ती जलाने या बुझाने वाला नहीं है इस धरती के लिए, कि एक दिन अचानक सब निपट जाएगा। मेरा एक दोस्त आज कह रहा था कि प्रलय की अवधारणा फर्जी है। सब धीरे धीरे डिलीट होगा।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के कई जिलों में हो रही चमगादड़ों की मौत से सनसनी फैल गई है। लोग इसे कोरोना वायरस से जोड़कर देख रहे हैं. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि पूर्वांचल में हुई चमगादड़ों की मौत से दहशत में आने की जरूरत नहीं है। इनकी मौत का कोरोना वायरस से कोई भी रिश्ता भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली ने खारिज कर दिया है।

जांच में चमगादड़ों में कोरोना वायरस नहीं मिला

गोरखपुर में दो दिन पहले 26 मई को दर्जनों की संख्या में चमगादड़ों की हुई मौत से सनसनी फैल गई थी। ये मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि पूर्वांचल के कुछ और जिलों से चमगादड़ों की मौत की खबरें आ गईं। इसे कोरोना वायरस से जोड़कर देखा जाने लगा. बर्ड फ्लू एक दूसरा कारण चर्चा में आ गया लेकिन, ये सभी चर्चाएं निर्मूल हैं।

IVRI बरेली के निदेशक डॉ. आरके सिंह ने बताया कि चमगादड़ों की मौत के पीछे कोरोना वायरस कारण नहीं है। चमगादड़ों के पोस्टमॉर्टम से इसका खुलासा हो गया है। चमगादड़ों में कोरोना वायरस नहीं पाया गया है। रेबीज की भी जांच की गई है लेकिन, पोस्टमॉर्टम में मौते के पीछे न तो कोरोना वायरस और ना ही रेबीज कारण पाया गया है।

तो फिर क्यों हो रही चमगादड़ों की मौत?

संस्थान के निदेशक डॉ. आरके सिंह ने बताया कि पोस्टमॉर्टम से साफ हो गया है कि चमगादड़ों की मौत ब्रेन हैमरेज के कारण हुई है। तेज गर्मी के कारण ऐसा हुआ होगा. पिछले दिनों पूर्वांचल में एकाएक तापमान 44 डिग्री सेल्सियस के पास पहुंच गया था. ऐसे में गर्मी के कारण ब्रेन हैमरेज होने से चमगादड़ों की मौत हुई होगी। फिलहाल और जांचें जारी हैं. इनकी मौत के पीछे बर्ड फ्लू की भी कोई संभावना नहीं है।

डॉ. आरके सिंह ने ये भी बताया कि चमगादड़ों की इम्यूनिटी (शरीर की प्रतिरोधक क्षमता) इतनी ज्यादा होती है कि उन्हें कोई पैथोजन (वायरस या बैक्टीरिया) मार नहीं सकता है. ये वायरस या बैक्टीरिया के कैरियर भले ही हो सकते हैं लेकिन, इनका खुद चमगादड़ों पर कोई असर नहीं होता है।

चूहों का मरना, चमगादड़ों का मरना, छिपकिली का गायब होना, आधी रात बिलौटे का रोना, कुत्तों का आकाश की ओर मुंह कर के कूंकना, ये सब डरने वाली बात होनी चाहिए। हम लोग बाद में आए हैं। ये सब काफी पहले। जो पहले आता है, उसका संकेतबोध तगड़ा होता है। जो अंत में आता है, वो विकसित बेशक होता है लेकिन उसकी शक्तियां सीमित होती हैं। अपनी सीमित शक्ति में वो गफलत पाल लेता है और इसमें लपटा रह जाता है।

माहौल को हल्के में मत लीजिए, अपने आसपास के संकेत पकड़िए। जीवों के प्रति थोड़ा उदार बनिए, सहिष्णु बनिए। सजातीय मनुष्यों को मनुष्य ही समझिए। दस अरब साल हमारे पीछे है और अभी हमारे वैज्ञानिक डार्क मैटर या डार्क एनर्जी का छटांक भी नहीं समझ सके हैं। हम ब्रह्माण्ड को भी पांच फीसदी जानते हैं और अपने शरीर को भी इतना ही। पंचानबे फीसद अज्ञानी हैं हम, लेकिन अहंकार दो हज़ार फीसद जाने कहां से भर आया है। डर को दूर करिए। घृणा को दूर करिए। महत्वाकांक्षा और अहम्मन्यता से निजात पाइए।

सबकी किस्मत अब सब से बंधी हुई है। कोई श्रेष्ठ नहीं, कोई हेय नहीं। हम सब एक ऐसी गाड़ी में बैठे हैं जिसमें ड्राइवर नदारद है और सभी इस गाड़ी को चलाना चाह रहे हैं अपने अपने तरीके से, जबकि सच ये है कि हमें न तो अपने बचे होने का तर्क पता है न मरने का ही कारण पता चल पाएगा। दरअसल, हम कुछ नहीं जानते हैं और सब जानने के मुगालते में हैं। मुगालते मत पालिए। नए मुगालते भी मत पालिए। चैन से रहिए। मनुष्य बनिए। मरते चमगादड़ों पर सोचिए जो आपसे ज़्यादा इस धरती को समझता था, फिर भी समूह में मारा जा रहा है।

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