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सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) का महिला सामख्या के संघर्ष को समर्थन
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31 वर्षों से चल रहे महिला सामख्या, जो प्रदेश के 19 जिलों - वाराणसी, चित्रकूट, सहारनपुर, इलाहाबाद, सीतापुर, औरैया, गोरखपुर, मुजफ्फरपुर, मऊ, मथुरा, प्रतापगढ़, जौनपुर, बुलंदशहर, श्रावस्ती, बलरामपुर, बहराइच, चंदौली, कौशाम्बी, शामली - में महिला सशक्तिकरण हेतु महत्वपूर्ण कार्य कर रही थी की 800 कार्यकर्तियों का पैसा रोक कर उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना महिला विरोघी चरित्र उजागर किया है क्यों यह सिर्फ इन 800 महिला साथियों की आजीविका का सवाल नहीं है, इन महिलाओं से लाखों महिलाएं विपरीत परिस्थितियों में लड़ने का हौसला पाती थीं। सरकार की यह कार्यवाही महिला सशक्तिकरण पर कुठाराघात है।
बिलकिस बानो के बलात्कारियों एवं उसके परिवार के सदस्य के हत्यारों की समय से पहले रिहाई, महिला पहलवानों का बृज भूषण शरण सिंह द्वारा यौन शोषण के बाद भी उन्हें न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर होना और हाल ही में मणिपुर में महिलाओं के साथ मानव जाति को शर्मसार करने वाली दुर्घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ लोगों को भ्रमित करने के लिए महज एक नारा है। हिन्दुत्व की राजनीति में महिलाओं का कोई स्थान नहीं है। उसकी सोच पूरी तरह से पितृसत्तातमक है जिसमें महिला को बराबरी तो छोड़िए, न्याय की कोई गारंटी नहीं।
हम बड़ी बहादुरी से अपनी लड़ाई लड़ रही महिला सामख्या की साथियों का समर्थन करते हैं और उनकी लड़ाई में साथ खड़े हैं। दुर्भाग्य यह है कि वर्तमान सरकार का लोकतंत्र या संवाद में कोई विश्वास नहीं अतः ये लड़ाई बहुत कठिन है। यदि सरकार अपना रवैया नहीं बदलती तो लोग सरकार बदलने के लिए मजबूर होंगे।
हम खासकर जो साथी अनशन पर बैठी हैं - मथुरा से सुनीता व शर्मिला, चित्रकूट से पुष्पा, औरैया से लक्ष्मी, बुलंदशहर से कंचन, प्रतापगढ़ से ऊषा, कौशाम्बी से मिथिलेश, प्रयागराज से वर्षा, श्रावस्ती से अनामिका, सहारनपरु से बीना - उनकी हिम्मत की दाद देते हैं कि ऐसी संवेदनहीन सरकार के सामने उन्होंने लड़ने का जज्बा कायम रखा है। अंत में तो महिलाओं के संघर्ष को सफलता मिलनी ही है क्योंकि यह न्याय की लड़ाई है, यह महिला के बराबरी के अधिकार की लड़ाई है और महिला के सम्मान की लड़ाई है।
सोशलिस्ट महिला सभा भी एक दिन महिला सामख्या की साथियों के साथ धरने पर बैठेगी।