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सिविल जज अर्पिता साहू के पत्र पर एक्शन में सुप्रीम कोर्ट, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले का लिया संज्ञान
उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद में तैनात सिविल जज अर्पिता साहू का लेटर वायरल होने के बाद न्यायिक व्यवस्था में हड़कंप मच गया। आनन फानन में सुप्रीमकोर्ट की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले का संज्ञान लिया है।
महिला जज के पत्र पर एक्शन में सुप्रीम कोर्ट दिखा जहां सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले का संज्ञान लिया है। सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। बांदा में तैनात सिविल जज अर्पिता साहू ने पत्र लिखा था कि बाराबंकी तैनाती के दौरान जिला जज मेरी प्रताड़ना की।
महिला जज ने लगाया था आरोप
जज अर्पिता साहू ने लिखा, “अपनी सेवा के थोड़े से समय में मुझे खुली अदालत में डायस पर दुर्व्यवहार सहने का दुर्लभ सम्मान मिला है। मेरे साथ हद दर्जे तक यौन उत्पीड़न किया गया, बिल्कुल दोयम दर्जे जैसा व्यवहार किया गया। मैं भारत की सभी कामकाजी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि वह यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीखें। यह हमारे जीवन का सत्य है। POSH ACT हमसे बोला गया एक बड़ा झूठ है। कोई सुनता नहीं, शिकायत करोगी तो प्रताड़ित किया जाएगा। आपको 8 सेकंड की सुनवाई में अपमान और जुर्माना लगाने की धमकी मिलेगी।”
अर्पिता साहू ने कहा, “अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेंगे तो मैं आपको बता दूं कि मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं जज हूं। न्याय तो दूर, मैं अपने लिए भी निष्पक्ष जांच नहीं करा सकी। मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वे खिलौना या निर्जीव वस्तु बनना सीखें। एक विशेष जिला न्यायाधीश और उनके सहयोगियों द्वारा मेरा यौन उत्पीड़न किया गया है। मुझे रात में जिला जज से मिलने को कहा गया।”
रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने पत्र में यह भी कहा, 'मैं दूसरों को क्या न्याय दिलाऊंगी, जब मुझे ही कोई उम्मीद नहीं है। मुझे लगा था कि शीर्ष न्यायालय मेरी प्रार्थना सुनेगा, लेकिन में रिट याचिका 8 सेकंड में ही बगैर मेरी प्रार्थना सुने और विचार किए खारिज हो गई। मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी, मेरा सम्मान और मेरी आत्मा को भी खारिज कर दिया गया है। यह निजी अपमान की तरह लग रहा है।'
उन्होंने लिखा, 'मेरी और जीने की इच्छा नहीं है। बीते डेढ़ सालों में मुझे चलती फिरती लाश बना दिया गया है। बगैर आत्मा और बेजान शरीर को लेकर और घूमने का कोई मतलब नहीं है।'
साल 2022 में बाराबंकी में पदस्थ रहने के दौरान जज साहू ने रीतेश मिश्रा और मोहन सिंह नाम के दो वकीलों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई थी। उनके आरोप थे कि वकीलों ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है। जुलाई में ही इलाहबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए सीसीटीवी फुटेज खंगालने के आदेश दिए थे।
मैंने हाईकोर्ट में भी शिकायत की
महिला जज ने लिखा, “मैंने साल-2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से शिकायत की। आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। किसी ने भी मुझसे यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि क्या हुआ, आप परेशान क्यों हैं? मैंने जुलाई-2023 में हाईकोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति से शिकायत की। जांच शुरू करने में ही 6 महीने और एक हजार ईमेल लग गए। जो जांच प्रस्तावित जांच भी है, वह एक दिखावा है। पूछताछ में गवाह जिला न्यायाधीश के तत्काल अधीनस्थ हैं। समिति कैसे गवाहों से अपने बॉस के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह मेरी समझ से परे है। यह बहुत बुनियादी बात है कि निष्पक्ष जांच के लिए गवाह को प्रतिवादी (अभियुक्त) के प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं होना चाहिए।”
जज अर्पिता साहू ने कहा, “मैंने केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान जिला न्यायाधीश का स्थानांतरण कर दिया जाए, लेकिन मेरी प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दिया गया। ऐसा नहीं है कि मैंने जिला जज के तबादले की प्रार्थना यूं ही कर दी थी। माननीय उच्च न्यायालय पहले ही न्यायिक पक्ष में यह निष्कर्ष दे चुका है कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी शिकायतों और बयान को मौलिक सत्य के रूप में लिया जाएगा। मैं बस एक निष्पक्ष जांच की कामना करती थी। जांच अब सभी गवाहों के नियंत्रण में जिला न्यायाधीश के अधीन होगी। हम सभी जानते हैं कि ऐसी जांच का क्या हश्र होता है। जब मैं स्वयं निराश हो जाऊंगी तो दूसरों को क्या न्याय दूंगी? मुझे अब जीने की कोई इच्छा नहीं है। पिछले डेढ़ साल में मुझे एक चलती-फिरती लाश बना दिया गया है। मेरी जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा है। कृपया मुझे अपना जीवन सम्मानजनक तरीके से समाप्त करने की अनुमति दें।