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- कांग्रेस बीजेपी की...
कांग्रेस बीजेपी की जूतमपैजार तेरी बस मेरी बस, लेकिन मजदूर हुआ बे'बस'?
बॉर्डर पर बस, मजदूरों को इंतजार?
'बस घोटाले' पर योगी की 'स्ट्राइक'?
बस के चक्कर में 'बंट' गई कांग्रेस?
तेरी बस... मेरी बस, मजदूर बे'बस'?
जिस वक्त मजदूरों को काम पर वापस लौटना था उस वक्त वे अपने गाँव अपने घरों मे जाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. साथ ही वो ये भी कह रहे हैं कि हम वापस नही आएंगे.आपको नही लगता कि मोदी सरकार कोरोना पर, लॉक डाउन पर दूरदर्शिता पूर्ण नीति से काम लेती तो इन परिस्थितियों से बचा जा सकता था?
इन तीनों मजबूर लोगों के दुख का अगर एक कारण बताना होगा तो वह एक आदमी की अदूरदर्शिता ही हो सकती है और संयोग ऐसा कि वह आदमी लगातार तरक्की कर रहा है और लोकप्रिय भी हो रहा है। अगर भारत देश में लोग इस उच्च स्तर का प्रयोग कर रहे हैं तो कुछ गिनी पिग भी बनेंगे। देखते रहिए प्रयोग का संयोग कब तक चलता है।
नेता जब मनमानी करता है, चाहता है कि अधिकारी वही करें जो कहा जाए तो बहुत सारे अधिकारी वही करते हैं जो कहा जाता है। प्रियंका गांधी की 1000 बसों की सूची जांचने वाले परिवहन विभाग के अधिकारियों को क्या इस पत्र की जानकारी नहीं रही होगी। इस पत्र का जो शाब्दिक मतलब है उससे अलग यह मतलब तो है ही कि इन दिनों कायदे कानूनों के चक्कर में न पड़ा जाए काम चलने दिया जाए। इस पत्र का मतलब यह भी है कि इन दिनों फिटनेस और लाइसेंस चेक करने की जगह कोई मतलब का काम किया जाए। वैसे भी, जब बसें उत्तर प्रदेश में चलाई जा रही थीं, मुफ्त मिल रही थीं तो प्रदेश के लिए नियमों को शिथिल करना भी राज्य सरकार का ही अधिकार (काम) था।
अव्वल तो जो बसें फिट थीं उनका समय पर उपयोग नहीं होने से ही मामला साफ हो गया है। पर यह दस्तावेज भी बताता है कि राज्य सरकार गाड़ियों के फिटनेस के चक्कर में बेकार पड़ी थी। यह अलग बात है कि लोग कंक्रीट मिक्सर में और ट्रकों पर यात्रा कर रहे थे तो फोटोग्राफरों को अच्छी तस्वीरें मिल रही थीं और देश-विदेश में भारत के प्रधान सेवक की कार्यकुशलता और दूरदर्शिता दिख रही थी। उसे रोकना भी जरूरी था और उत्तर प्रदेश सरकार ने सख्ती कर दी तो काम नियमानुसार ही होने थे। तारीख पर ओवर राइटिंग के कारण इस पत्र की सत्यता पर संदेह न करें। यह पत्र सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साइट पर उपलब्ध है।
सेवादल छोड़कर सेवक संघ में शामिल होइए
अगर आपको सेवा करनी है, कुछ लोगों को गांव जाने में सहायता करना चाहते हैं तो पहले उनका नाम, पता, आधार कार्ड, फोन नंबर आदि के साथ एक लिस्ट बनाइए। फिर उनकी संख्या के आधार पर तय कीजिए कि आप उन्हें कैसे भेजेंगे। बस से, ट्रेन से हवाई जहाज से। फिर इतनी बसें, ट्रेन या हवाई जहाज किराए पर लीजिए। उसकी सूची बनाइए। रजिस्ट्रेशन, फिटनेस, डाइवर परिचालक के नाम आदि के साथ वाहनों की जांच कराइए। जब सब हो जाए तो ड्राइवर के कोरोना निगेटिव होने का सर्टिफिकेट मांगा जाएगा।
और ये सब होने में एक हफ्ता तो कम से कम लगेगा। खड़ी बसों का किराया आप दीजिए। स्टाफ की सैलरी आप दीजिए। सब हो जाए तो उस राज्य से पूछिए जहां आपको मजदूरों को भेजना है। इसे परेशानी नहीं, सेवा समझिए। परेशान आप होइए क्योंकि आप सेवा करने के शौकीन हैं। अगर कोरोना के समय में सेवा करने के रोगी है। डबल इंजन वाले देश में रहते हैं तो आसान उपाय है कि सेवा दल छोडकर सेवक संघ में शामिल हो जाइए। राजा महाराजा कॉरपोरेट ऐसा ही कर रहे हैं।
यह एक काल्पनिक देश की कहानी है। पहले वहां सेवादल होता था अब सेवक संघ है। सेवक संघ अब काम नहीं करता है सेवा करने वालों को अनुमति देता है। इसे आप दल और संघ का अंतर मत समझिएगा। यह एक मुश्किल देश के मुश्किल समय की कहानी है।