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आगामी विधानसभा चुनाव पर पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन का असर
देश में राजनीतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण माने जाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं. लगभग 8 महीने बाद चुनावी दंगल शुरू होगा और लगभग 4 बडी पार्टियां व अन्य कई पार्टियां अपने अपने समीकरण सैट करने में लगी हुई हैं. किसी भी चुनाव में सबसे बडी चुनौती सत्तासीन दल के सामने होती है अपनी सत्ता को बरकरार रखना. भारतीय जनता पार्टी की योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने सबसे बडी चुनौती तो यही है .
यह चुनौती उस समय और खतरनाक हो जाती है जब लगभग एक साल से किसान आंदोलन राज्य में बडी सफलता के साथ चल रहा हो. उत्तर प्रदेश का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका किसान बहुल, जाट बहुल, मुस्लिम बहुल माना जाता रहा है. मुसलमान तो परंपरा रूप से भाजपा के खिलाफ वोटिंग करते रहे हैं लेकिन जाट और किसानों का प्रबल समर्थन पिछले चुनाव में भाजपा को मिला था जिसकी बदौलत भाजपा प्रचंड बहुमत लेकर सरकार पर काबिज़ हो गई थी. इस बार की सबसे बड़ी चुनौती भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिलने वाली है जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विशेष महत्व रखने वाले किसान, जाट और मुसलमान भाजपा के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.
अकेले किसान आंदोलन के प्रभाव का भी अध्ययन करें ये बात सामने आती है कि किसान आंदोलन में जाट समाज और सिख समाज ने अहम भूमिका निभाई है. यदि उत्तर प्रदेश दिल्ली के बीच गाज़ीपुर बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में जाएंगे तो वहाँ भारतीय किसान यूनियन के लोग चौधरी राकेश टिकैत के नेतृत्व में तंबू गाड़े बैठे हैं जो जयादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं सिख समुदाय के लोग वो भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही आए हुए हैं. किसान आंदोलन वास्तव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों का आंदोलन नजर आता है. 26 जनवरी वाले दिन जिस प्रकार सरकार और किसान नेता टिकैत का टकराव हुआ और फिर राष्ट्रीय लोकदल के दिवंगत नेता चौधरी अजीत सिंह ने टिकैत का मनोबल बढ़ाया उससे दो बिंदु उभर कर सामने आए एक तो जाटों ने सरकार के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया और टिकैत के रोने को अपना अपमान समझा.
दूसरा ये कि राष्ट्रीय लोकदल को जाटों का भरपूर समर्थन मिलना शुरू हो गया और जाटों ने दोबारा चरण सिंह परिवार को अपना नेता मानना शुरू कर दिया. किसान आंदोलन का सबसे बड़ा असर जाट मुस्लिम एकता पर हुआ. मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए जाट मुस्लिम दंगे ने दोनों समुदायों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया था जिसकी वजह से जाटों का एकमुश्त वोट भाजपा को चला गया था. यहाँ तक कि अजीत सिंह और जयंत सिंह भी चुनाव हार गये थे. किसान आंदोलन ने कम से कम जाट मुस्लिम टकराव को बिलकुल खत्म करने में अहम भूमिका निभाई है. जाट मुस्लिम एकता का प्रभाव पंचायत के त्रिस्तरीय चुनाव में भी देखने को मिला जिसमें भाजपा बहुत बुरी तरह हारी.
ये और बात है कि सरकार की ताकत के आधार पर भाजपा सबसे जयादा जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख बनवाने में सफल रही है. जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख बनने में सत्तासीन पार्टी का बड़ा दखल रहता है. जिला पंचायत के सदस्यों और बीडीसी सदस्यों को दबाव में लेकर अपने अध्यक्ष और प्रमुख बनवाए जाते रहे हैं, पिछली सरकारों में ऐसा होता रहा है. भाजपा ने अपने अध्यक्ष और प्रमुख बनवाए जाने को बड़ी जीत करार दिया है लेकिन यह भी रिकार्ड रहा है कि सत्तासीन पार्टी अध्यक्ष और प्रमुख बनवाने में तो कामयाब रही हैं लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारती रही हैं.
भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी सफलता मिलती रही है लेकिन इस बार उसके लिए बहुत संकट हैं. किसान आंदोलन आंदोलन ने बहुत सारी समीकरणों को पलटा है, अब देखना है कि ये भाजपा विरोध कैसे मतों में परिवर्तित होता है.