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- सीवर की सफ़ाई में जान...
सीवर की सफ़ाई में जान गंवाने वाले की मौत नहीं हत्या होती है और इस हत्या की ज़िम्मेदारी सरकार किसकी तय करेगी ? -अनुपम मिश्रा
लखनऊ :टीम -आर एल डी के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम मिश्र ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर दिनांक 25 जुलाई, 2023 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री श्री रामदास आठवले द्वारा लोक सभा में जो सूचना दी गई उस पर अपना दु:ख व क्षोभ प्रगट करते हुर कहा किआज़ादी के इतने वर्षों के बाद विकास के तमाम कपोल कल्पित दावों के बाद आज़ादी के अमृत काल में भी यदि यह कुप्रथा जारी है तो विश्व के सबसे बडे लोकतान्त्रिक राज्य के लिये इससे अधिक शर्मनाक व ह्रदय विदारक घटना और क्या हो सकती है?
सरकारी दावो की यदि माने तो पिछले पाँच वर्षों में सीवर एवं सेप्टिक टैंकों की सफ़ाई करते समय केवल 399 लोग मौत के मुँह में समाए है साथ ही देश के 766 ज़िलों में से 530 ज़िले मैला ढोने की प्रथा से मुक्त हो चुके हैं अर्थात 236 ज़िलों में यह प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है वह भी तब जब संसद द्वारा वर्ष 2013 में पारित एक प्रस्ताव के अंतर्गत दिसंबर 2014 में क़ानून बन चुका है कि हाथ से मैला उठाना तथा बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों व उपकरणों के सेफ़्टी टैंक में जाना प्रतिबंधित है जिसके लिए 21सूत्री दिशा निर्देश भी निर्गत किये गये थे बावजूद इसके यदि यह अमानवीय कुप्रथा क़ायम है और लोग इस घ्रनित कार्य को करते हुए इतनी भयानक मौत मर रहे हैं तो आख़िर इसका ज़िम्मेदार कौन है?
अनुपम मिश्रा ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि समझ से परे है कि ऐसी भयानक मौते राष्ट्रीय बहस का विषय क्यों नहीं बनती हैं ? क्या यह मौतें किसी सभ्य व शिक्षित समाज के मन को झकझोरने के लिए नाकाफ़ी हैं ? शुष्क शौचालय की सफ़ाई प्रक्रिया कितनी अपमान जनक है इसकी कल्पना भी अकल्पनीय है, यदि सरकारी आंकड़ों को ही सही मान लें तो भी 11635 लोग अभी भी देश में शुष्क मल का निपटान अपने हाथों से ही कर रहे हैं! यह संख्या पढने मे भले ही छोटी लगे पर मेरा मानना है कि यदि एक भी व्यक्ति को इस कार्य को करना पडे तो यह एक कल्याणकारी लोकतान्त्रिक राज्य के मुह पर दाग है धब्बा है!
उन्होने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के आदेश के अनुसार सीवर सेप्टिक टैंक में मरने वाले लोगों के परिजनों को दस लाख रुपया का मुआवज़ा दिया जाना चाहिए पर सत्यता यह है की 1315 लोगों में से केवल 266 मृतकों के परिजनों को ही यह सहायता राशि दी गई है यानी 80प्रतिशत से अधिक लोगों को अभी भी यह राशि नहीं दी गई है, ऐसा प्रतीत होता है कि हाशिए पर खड़े लोगों की मौत के प्रति सरकार संवेदनहीन हो गई है
अनुपम मिश्रा ने प्रधानमन्त्री को लिखे पत्र मे कहा कि सीवर की सफ़ाई में जान गंवाने वाले की मौत नहीं हत्या होती है और इस हत्या की ज़िम्मेदारी सरकार किसकी तय करेगी ?
प्रधानमंत्री से इस कुप्रथा पर अंकुश हेतु तत्काल कठोर क़दम उठाने व जन मानस को भरोसा दिलाने को कहा कि कि भविष्य में एक भी मौत सीवर सफ़ाई से नहीं होगी और न ही कोई हाथ से मैला उठाएगा!