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- दीनदयाल को दीनदलाल...
संजय कुमार सिंह
यह फोटोशॉप का कमाल तो हो ही सकता है। पर संभावना कम लगती है और अगर है तो अच्छी कलाकारी है। ल के सामने खड़े व्यक्ति का चेहरा नहीं दिख रहा है। यहां तक कि आंख भी नहीं चमक रही है। इस बात की संभावना कम है कि उसने चश्मा लगा रखा होगा। इसलिए हो सकता है कि बाद वाले ल को ठीक करने के लिए चेहरे को छेड़ा गया हो और काला कर दिया गया हो या हो गया हो।
फिर भी मामला गड़बड़ है। इससे संभावना फोटो शॉप होने की लगती है और यह उच्च गुणवत्ता वाला फोटोशॉप हो सकता है। इस बात की संभावना तो है ही कि गलत लिखा ही गया हो। दोनों स्थितियों में यह भयंकर और अक्षम्य चूक है। अगर इतने बड़े बैनर में मुख्य हस्ती का नाम गलत जा सकता है तो कुछ भी हो सकता है। और ऐसे लोगों को सरकार में रहने और विचित्र नियम-कानून बनाने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है।
अगर यह गलती नहीं है और फोटोशॉप का कमाल है (दूसरी तस्वीरों से मिलान कर चेक किया जा सकता है) तो ऐसी कारस्तानी करने वाले का पता लगाकर उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। निश्चित रूप से यह अंदर का ही कोई आदमी होगा। बाहर के या किसी असंबद्ध व्यक्ति के लिए यह जितना बड़ा जोखिम है उस मुकाबले उसे ऐसा कोई लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन अंदर के आदमी का मकसद कुछ भी हो सकता है।
सबसे पहला तो यही कि सरकार या पार्टी जिससे बैनर बनवाती हो उसका कोई विरोधी या प्रतिद्वंद्वी हो सकता है और मामला ठेका लेने का भी हो सकता है। दूसरी संभावनाएं भी हैं पर उसके विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है, कार्रवाई होनी चाहिए। यह आस्था के साथ खिलवाड़ का मामला है। इस बात की संभावना बहुत कम है कि मुख्यमंत्री आने वाले हों और किसी ने बैनर पढ़ा ही नहीं हो। अगर अंतिम समय में भी गलती पकड़ी गई होती तो सुरक्षा कर्मी को गलती छिपाने के लिए लगाया जा सकता था। इसलिए संभावना इस बात की है कि छपाई या बैनर बनाने के ठेके का मामला हो।