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- योगी के हटने की...
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)
योगी आदित्यनाथ को हटाने की जो भी चर्चाएं चल रही हैं, वह सच भी हैं और झूठ भी. सच ऐसे कि योगी को हटाया भले न जाए लेकिन लगभग हटा दिए गए टाइप माहौल बनाकर यह संदेश कहीं और पहुंचाया जा रहा है कि योगी अगर इस बार बच भी गए तो चुनाव बाद पद पर उनकी वापसी नहीं होगी... ताकि पिछले चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने वाले पिछड़ा वर्ग और ब्राह्मण वर्ग के नेताओं के मन में लड्डू फ़ूटने लगें.
पिछली बार भी मुख्यमंत्री पद समेत ज्यादातर अहम पदों का लड्डू का लालच मन में जगा कर ही भाजपा आलाकमान ने न सिर्फ केशव प्रसाद मौर्य जैसे पिछड़े वर्ग के नेताओं और बल्कि ब्राह्मण खेमे के सभी छोटे- बड़े नेता- कार्यकर्ता को जी जान से चुनाव में उतरवाया था.
चूंकि राजपूत वोट उत्तर प्रदेश में सत्ता के केंद्र में बैठने लायक संख्या में नहीं है और पिछले चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाकर किसी तरह बीजेपी ने योगी के जरिए राजपूतों को यहां सबसे ताकतवर बना दिया था. लेकिन पिछले पांच साल में यह असंतोष पिछड़े वर्ग और ब्राह्मण खेमे के नेताओं- कार्यकर्ताओं से होते हुए अब जनता तक पहुंच चुका है.
लिहाजा चुनाव सर पर मंडराते देख बीजेपी ने आनन- फानन यह माहौल बना दिया है.
ताकि यह संदेश उन सभी बिरादरी के नेताओं- कार्यकर्ता तक पहुंच सके कि मोदी और आलाकमान योगी से बेहद नाराज हैं... और सत्ता के केंद्र से योगी की बस अब चलाचली की ही बेला है...
बीजेपी ने अपने इस दांव के तहत योगी के प्रति असंतोष को महज दो - तीन दिन पहले से सार्वजनिक किया है और उनका निशाना एकदम सटीक बैठ भी गया है. इस खबर को सुनने के बाद से ही ब्राह्मण और पिछड़ा वर्ग खेमे के नाराज पत्रकार, कार्यकर्ता और नेतागण बल्लियों उछल रहे हैं. तरह - तरह के कयास और अटकलबाजी में लोग लग गए हैं. जाहिर है, इन सभी के मन में तरह तरह के लड्डू फ़ूटने लगे हैं.
इसी जोश के सहारे बीजेपी यूपी का चुनाव लड़ लेगी. यदि वह दोबारा सत्ता में आयी तो संघ और मोदी अपनी उसी परिपाटी को अगले पांच साल के लिए फिर से वापस अपना लेंगे, जो हर बीजेपी शासित राज्य में वे करते आए हैं. चुनाव लड़ा भले ही किसी के नाम पर या दम पर जाए, मुख्यमंत्री और सत्ता का पूरा केंद्र संघ और भाजपा एक ही पैमाने पर चुनते हैं... और वह होता है संघ के हिन्दू राष्ट्र के खांचे के हिसाब से राज्य में उसके तयशुदा प्लान का पैमाना.
पिछड़ा वर्ग के मौर्य और ब्राह्मण शर्मा को दरकिनार कर यदि राजपूत योगी को मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उसके पीछे योगी की फायर ब्रांड आक्रामक हिंदुत्व छवि ही सबसे अहम थी. योगी को गुजरात में मोदी की ही तरह यूपी में आक्रामक हिंदुत्व का प्रतिनिधि माना जाता है. इसलिए संघ खेमे में यह आम धारणा भी है कि मोदी के असल उत्तराधिकारी भी योगी ही हैं.
कुल मिलाकर यह कि यूपी में चुनाव की बिसात बिछ चुकी है. इसलिए बीजेपी का शातिर आलाकमान पहले पार्टी के भीतर अपने लक्ष्य के कांटे हटा रहा है. फिर उसका अगला निशाना उसके राजनीतिक शत्रु यानी सपा, बसपा और कांग्रेस होंगे...
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