- होम
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- राष्ट्रीय+
- आर्थिक+
- मनोरंजन+
- खेलकूद
- स्वास्थ्य
- राजनीति
- नौकरी
- शिक्षा
- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- लखनऊ
- /
- आखिरकार सभी सवालों का...
आखिरकार सभी सवालों का जवाब मिल गया है, विवेक तिवारी हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई है !
अमरेश मिश्र की कलम से
आइए, सबसे पहले 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव के शासनकाल की तरफ चलते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र पुलिस चयन आयोग द्वारा 3000 से ज्यादा कान्सटेबलों की भर्ती को निरस्त कर दिया था। ऊपरी तौर पर अभ्यर्थियों द्वारा उत्तर- पुस्तिका में 'व्हाईटनर' के इस्तेमाल को निरस्ती का कारण बताया गया था।
लेकिन ऐसा माना जाता है कि जिनका चयन निरस्त किया गया था उनमें से अधिकतर की भर्ती नेताओं की अनुशंसा पर जल्दबाजी में की गई थी। कोर्ट ने यह भी माना कि उनमें से अधिकतर ने अपनी पृष्ठभूमि के बारे में गलत जानकारी दी थी। उनमें से कई बडबोले और गुंडे भी थे।
इन लोगों ने न्यायालय के आदेश को लेकर भारी हंगामा किया। धरना-प्रदर्शन किए। अदालत के कर्मचारियों की पिटाई की और खुलेआम न्यायपालिका को धमकाने की जुर्रत भी की। अंततः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निरस्तीकरण का आदेश वापिस ले लिया और उन 3000 की भर्ती की अनुमति दे दी।
भाजपा की योगी सरकार इस आदेश के खिलाफ अपील में सुप्रीम कोर्ट नहीं गई. बात यहीं खत्म नहीं हुई। अखिलेश और मायावती की कटु आलोचक भाजपा सरकार ने इन 'कुख्यात 3000' के साथ गुपचुप एक डील कर ली. जिस शख्स ने भाजपा सरकार के साथ 'गुपचुप डील' की वह कौन था? कौन था वह हंगामेबाज? कौन था उस कुख्यात '3000' गैंग का सरगना ?
वह था प्रशांत चौधरी!
आपको यह समझ नहीं आ रहा होगा कि क्यों अनेक पुलिस कर्मचारी विवेक तिवारी के हत्यारे, इस प्रशांत चौधरी और संदीप कुमार के लिए 5 करोड़ रूपए का चंदा जुटाने की कोशिश कर रहे हैं?
आपको यह सोचकर हैरानी हो रही होगी कि एक पुलिस कांस्टेबल के पास पितौल कहाँ से आई? एक हत्या का आरोपी, चाहे वह पुलिस कांस्टेबल ही क्यों न हो, प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर उसे सम्बोधित कर सकता है ??
क्या वजह थी कि विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद यूपी पुलिस के सभी उच्चाधिकारियों को लकवा सा मार गया था? इसका कारण था प्रशांत चौधरी और भाजपा सरकार के साथ हुई वह 'गुपचुप डील'!
यह शख्स इतना मगरूर और ताकतवर था कि एसपी और पुलिस के आला अफसर इससे खौफ खाते थे। इसकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह गैर-लाइसेंसी पिस्तौल रखता था जिसका इस्तेमाल उसने विवेक तिवारी की हत्या व अन्य लोगों को डराने-धमकाने में किया।
लखनऊ में उसका 'वसूली' का यह धंधा बेरोकटोक चल रहा था। प्रशान्त चौधरी अपने आकाओं को वसूली का पैसा पहुंचाता था। उसका वसूली का यह धंधा फल-फूल रहा था कि विवेक तिवारी बीच में आ गया!! उसने रंगदारी देने से मना कर दिया। यही वजह थी कि विवेक तिवारी को रास्ते से हटा दिया गया।
विवेक ने जड़ों तक सड़ चुके उस सिस्टम का पर्दाफाश करने की जुर्रत की थी जिसमें उत्पीडन, लूट और मज़लूमों की फर्जी एनकाउंटर में हत्या रोज़मर्रा के काम का हिस्सा बन गया है। अगर विवेक ने साहस न दिखाया होता तो इस गुंडागर्दी का कभी पर्दाफ़ाश न होता।
श्रीमती तिवारी ने क्या कहा यह महत्वपूर्ण नहीं है।
महत्वपूर्ण है इस हत्या से पुलिस के बदनुमा चेहरे का बेनक़ाब होना. महत्वपूर्ण है इस बात का पर्दाफ़ाश होना कि राज्य की पुलिस उस मुख्यमंत्री के मातहत एक कातिल गिरोह के रूप में काम कर रही थी जो साधू होने का दावा करता है.
लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार है, यह उनके निजी विचार है.