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कोर्ट का आदेश ने मानने पर प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा दीपक कुमार के खिलाफ वारंट जारी
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा (Principal Secretary Basic Education) दीपक कुमार (Deepak Kumar) के खिलाफ कोर्ट ने वारंट जारी किया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा के प्रमुख सचिव दीपक कुमार (Principal Secretary Basic Education Deepak Kumar) के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने आदेश के बावजूद अदालत में पेश न होने पर अवमानना मामले में प्रमुख सचिव के खिलाफ ये आदेश दिया गया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अवमानना के एक मामले में बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव दीपक कुमार के खिलाफ गैर जमानतीय वारंट जारी करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 अप्रैल की तारीख तय करते हुए, विभागीय सचिव प्रताप सिंह बघेल और निदेशक सुधा सिंह को भी सुनवाई के दौरान कोर्ट में हाजिर रहने को निर्देशित किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल पीठ ने मान्यता प्राप्त टीचर्स एसोसिएशन व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
याचियों की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि प्रमुख सचिव, सचिव व निदेशक ने कोर्ट के 14 फरवरी 2013 व 30 जुलाई 2014 के आदेशों का अनुपालन नहीं किया है और जानबूझ कर रिट कोर्ट के आदेश का पिछले दस साल से अनुपालन नहीं कर रहे हैं। रिट कोर्ट के आदेशों में कोर्ट ने कुछ याचियों को बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राइमरी स्कूलों में बतौर सहायक शिक्षक समायोजित करने पर विचार करने के लिए निर्देशित किया था। अवमानना याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि याचीगण नियुक्ति पाने की निर्धारित अर्हाता पूरी नहीं करते हैं। बीती एक फरवरी 2023 को न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात पारित अपने आदेश में नाराजगी जताते हुए कहा था कि रिट कोर्ट के आदेश को न मानकर विभागीय अधिकारी न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
सोमवार को अधिकारियों को इन आरोपों पर जवाब देने के लिए कोर्ट में हाजिर होना था। इसके बावजूद उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से हाजिर होने में असमर्थता जताते हुए, सरकारी वकील के माध्यम से प्रार्थना पत्र दाखिल कर दिया। इस पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने प्रस्तुत प्रार्थनापत्र खारिज करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रमुख सचिव स्तर का अधिकारी न्यायालय के आदेश को गम्भीरता से नहीं ले रहा है, इस कृत्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।