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Anudeshak Shiksha Mitra : यूपी में अनुदेशक, शिक्षा मित्र की दुर्दशा और मौतों का जिम्मेदार कौन?
उत्तर प्रदेश में उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत अनुदेशक जो कक्षा 6 से लेकर 8 तक पढ़ाता है और शिक्षा मित्र प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाता है। प्रदेश में इस समय 27000 हजार अनुदेशक कार्यरत बताए जाते है जबकि अब मौके पर 25700 के आसपास है। लेकिन इन दोनों का जिस तरह सोशण हो रहा है वो बहुत ही खतरनाक है।
अभी कल की ही बात है जब तीन शिक्षा मित्र गरीबी लाचारी और बिना इलाज के अपनी जान गंवा बैठे। पहले शिक्षा मित्र की मौत के बिना कोई दिन बाकी नहीं जाता अगर एसा हुआ भी तो सप्ताह तो किसी भी कीमत पर खाली नहीं जाता है। बीते दिनों एक शिक्षा मित्र ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या की और एक सुसाइड नोट भी छोड़ा। जिसमें उसने अपनी मौत का जिम्मेदार सरकार को बताया था। प्रसाशन ने जिस तरह उसके परिवार को डरा धमाका कर उस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
इसी तरह जून के माह में एक अनुदेशक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसकी मौत की खबर सुनकर माँ ने दो मंजिल से छलांग दी। जिससे मौके पर ही माँ की भी मौत हो गई। चूंकि दोनों एक्सीडेंटल केस थे पीएम हुआ तो देर रात जब गाँव में शव पहुंचे तो तब तक पूरे गाँव में किसी का चूल्हा नहीं जला था। सरकार ने इन मौतों पर कोई भी आर्थिक मदद नहीं की। जबकि गाँव में किसान बीमा समेत कई योजना संचालित है।
अनुदेशक और शिक्षा मित्र को सरकारी सुविधा भी नहीं मिलती क्यों
अनुदेशक और शिक्षा मित्र को कोई भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता। इतना ही नहीं सरकार ने जहां कोरोना में बड़ी संवेदनशीलता दिखाई ठी वहाँ भी इन दोनो को अनदेखी की गई ड्यूटी पर कार्यरत या किसी तरह हुई मौत पर कोई राहत धनराशि नहीं मिली।
वहीं स्कूल में भी इनको जो नियमित अध्यापक है उनके बराबर न इनको छुट्टी मिलती है न ही इनको मेडिकल या कोई भी अन्य सुविधा का लाभ मिलता है। और तो और इन दोनों विद्यालयों के हेड मास्टर इनका शोषण करने से पीछे नहीं हटते है।
जब सुविधा नहीं तो सरकार और काम क्यों लेती है
जब सरकार इनको सुविधा से बँचित रखती है तो इनसे सभी सरकारी काम ठीक उसी तरह जिस तरह से नियमित अध्यापक से लिए जाते है उससे ज्यादा इन से काम लिया जाता है। कंप्यूटर अनुदेशक तो जिले के सभी सरकारी कार्यालय में भी काम करने के लिए अटैच किए गए है। इसके चुनाव ड्यूटी , बीएलओ ड्यूटी जनगडना हो सबमें इनका प्रयोग किया जाता है।
वेतन के नाम नहीं सुनता कोई बात
अब जब काम लेने वाले अधिकारी कभी इनके मानदेय को लेकर भी उच्चाधिकारियों से बात नहीं करते। हालांकि आदेश के अवेलहना करने पर धमकी जरूर देकर अपनी मन मंशा हमेशा जरूर पूरी करते रहते है। ट्रांसफर पोस्टिंग की गुहार भी इनकी कोई नहीं सुनता है। पिछले एक वर्ष से लगातार इनकी मांग है कि जब तक आप मानदेय न बढ़ाओ तो कमसे कम ट्रांसफर करके समायोजन ही कर दो ताकि इस महंगाई में जिसका आने जाने का खर्चा दो से चार हजार रुपये है उसको राहत मिले। वो इसी 9 10 हजार के मानदेय में काम चलाता रहे ।
मालूम हो कि अनुदेशक और शिक्षा मित्र अपनी ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से देते है। अगर ये अपनी ड्यूटी बंद कर दें तो सरकार के 70 प्रतिशत सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विध्यालयों में ताला लटक जाएगा। इतनी जानकारी होने के बाद भी सरकार इनकी बात सुनने को राजी नहीं है।
अनुदेशक शिक्षा मित्रों पर दूसरे दल समर्थक का आरोप
अनुदेशक शिक्षा मित्र को लेकर 2017 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के झूले लाल मैदान में एक महारैला बुलाया था जिसमें इनको नियमित करने का वादा किया और यूपी में सबसे बड़े बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी तो फिर इन पर ये आरोप क्यों। इस आरोप का खंडन तो यहीं हो जाता है। अब इसके बाद पीएम मोदी ने अपनी रैली मे भी कहा कि अनुदेशक शिक्षा मित्र उनकी जिम्मेदारी है तो फिर अब तक उनकी जिम्मेदारी निभाई क्यों नही गई। इतने के बाद भी अगर इन पर किसी दल समर्थक होने के आरोप लगते है तो निराधार है।
हाँ इतना जरूर है अगर इस बार लोकसभा चुनाव से पहले इनकी बात का ध्यान नहीं दिया गया तो यूपी मे परिणाम विपरीत जरूर होंगे। क्योंकी इन्होंने अभी हल्की नाराजगी यूपी विधानसभा चुनाव में दिखाई है अगर पूरी तरह दिखाई तो यूपी में लोकसभा सीटें बीजेपी के लिए इससे ज्यादा जीतना मुश्किल हो जाएगा।