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- शिक्षा मित्र और...
शिक्षा मित्र और अनुदेशक के साथ क्यों हुआ सौतेला व्यवहार और कौन है जिम्मेदार?
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा और उच्च प्राथमिक शिक्षा के बाद हायर एजुकेशन यानि हाईस्कूल और फिर इंटरमिडिएट की बात आती है। इस लिहाज से सबसे ज्यादा फोकस सरकारों का प्राथमिक शिक्षा पर होता है। क्योंकि गाँव गरीब का बच्चा गाँव के प्राइमरी स्कूल से ही पढ़ सकता है। इस लिहाज से एजुकेशन को अगर अच्छा बनाना है तो फिर प्राथमिक शिक्षा पर फोकस करना पड़ेगा।
अब प्राथमिक स्कूलों की बात करें तो लगभग 20 प्रतिशत से ज्यादा स्कूल सिर्फ और सिर्फ शिक्षा मित्रों द्वारा संचालित किये जा रहे है जबकि 20 प्रतिशत वो स्कूल है अगर शिक्षा मित्र जाना बंद कर दें तो उनमें भी ताला पड़ जाएगा। ये वो स्कूल है जिनमें केवल हेड मास्टर है और उन्हे बीआरसी से लेकर ब्लॉक और सरकारी दफ्तरों से फुरसत नहीं है। जबकि अनुमानित 40 प्रतिशत वो स्कूल है जो अगर शिक्षा मित्र है उनकी एजुकेशन उस स्कूल में मौजूद सरकारी शिक्षक से ज्यादा है और वो उनसे ही शिक्षण कार्य कराकर बच्चों को पढ़ाना चाहते है जबकि कुछ बच्चे भी शिक्षा मित्रों से ही पढ़ना भी चाहते है।
अब जो 20 प्रतिशत स्कूल बचे वो ज्यादातर शहरी प्राथमिक विद्यालय है या फिर कस्बों के और उनके नजदीकी गांवों के जहां सरकारी शिक्षक दो से ज्यादा है उनमें भी शिक्षा मित्र अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से देता है बाकी हर जगह अपवाद होता है कि कुछ लोग गड़बड़ करते है।
लेकिन इस सबके बावजूद आज तक किसी जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी या खंड शिक्षा अधिकारी ने कभी अपने क्षेत्र के शिक्षा मित्र के मानदेय को लेकर दो शब्द शासन को नहीं लिखे कभी उनकी अच्छी बातें उनके नाम से दर्ज नहीं की गई। ये काम तो स्कूलों के हेड मास्टर ने भी बखबी किया कि कोई भी अच्छे कार्य के लिए उन्होंने अपने नाम का अनुमोदन किया जिसे सभी अधिकारियों ने आगे बढ़ाया जबकि स्कूलों में शिक्षा मित्र अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाता है।
उत्तर प्रदेश ही नहीं बगल के राज्य बिहार, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश , राजस्थान , दिल्ली , हरियाणा में भी इस पोस्ट पर काम करने वाले शिक्षक को मिनिमम 25000 हजार से लेकर 35000 हजार तक न्यूनतम वेतन मिलता है। लेकिन यूपी में इस बात पर कोई चर्चा नहीं करता है। क्योंकि इस वेतन बढ़ोत्तरी में हमेशा प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा अपना रोल ताकत से निभाएंगें तभी कामयाबी मिलेगी क्योंकि अधिकारियों द्वारा शिक्षा मित्रों को लेकर बहुत सारी बाते बिल्कुल नेगेटिव प्रस्तुत की गई है। अगर नहीं की गई तो पिछले साल जब अनुदेशक, रसोइया सबका वेतन बढ़ तब शिक्षा मित्र की भी चर्चा हुई लेकिन वेतन नहीं बढ़ा उसका भी यही कारण है।
इस सबको लेकर शिक्षा मित्र को अपने भविष्य को लेकर खुद चिंतित होना पड़ेगा और खुद को साबित करना पड़ेगा। अगर आप अपने आपको साबित कर लिए तो वेतन बढ़ने में आपको हर हाल में जुलाई तक सफलता मिल जानी चाहिए वरना फिर लोकसभा चुनाव की बात कहकर ताल दिया जाएगा। इस लिहाज से सरकार से समन्वय और संवाद और अपनी योग्यता साबित करने का समय आ गया है और इसको साबित करना पड़ेगा।
यही हाल और समस्या से उच्च प्राथमिक शिक्षा में कार्यरत अनुदेशक का है। कम्यूटर का अनुदेशक सरकारी काम भी करता है कला, ग्रह विज्ञान , गणित , शारीरिक शिक्षा समेत सभी विषयों के विशेषज्ञ अनुदेशक अपने छात्रों को पूरी तरह से तैयार करके स्कूलों में टॉप रहता है। इस बात का जिक्र कभी कोई उच्चाधिकारी अपने वक्तव्य में नहीं लिखता है क्योंकि उसे हर समय हेड मास्टर का भय बना रहता है। अनुदेशक को पहला भय 100 छात्र संख्या का होता है वरना उसका रिनयुवल नहीं होगा तो सबसे ज्यादा स्कूल में बच्चों की संख्या के लिए अनुदेशक जिम्मेवार है जहां उसकी तैनाती है।
बाकी प्रक्रिया उसी तरह से अनुदेशक गुजरता है जिन सभी बातों से शिक्षा मित्र गुजरता है। उसका एक और कारण है दोनों को ही स्कूल में बड़ी हे दृष्टि से देखा जाता है। कभी कभी सफाई कर्मचारी भी सोचता है मेरा वेतन 30000 हजार और इनका 9 10 हजार मेरी इनकी बराबरी कहाँ होती है। इन सब पीड़ा से गुजरकर शाम को घर पहुँचने से पहले उसे परिवार में सब्जी और सामान की चिंता सताने लगती है। इन सब बातों के बाजूद अगर हिम्मत और हौसला बढ़े भी तो साथी आपस में इतने सवाल करते है कि आप सोच भी नहीं सकते हो।
इस समय पूरे प्रदेश में शिक्षा मित्र और अनुदेशक की बात हो रही है सभी एनजीओ भी इस कम वेतनमान पर चर्चा कर रहे है। अगर आप सब मिलकर इस माहौल को यथावत इस साल बनाए रखेंगे तो उम्मीद है आपको सफलता हाथ लगे।
कुल मिलाकर अधिकारी और सरकारों ने अनुदेशक और शिक्षा मित्र को ठगा है उसके लिए कोई सटीक रास्ता नहीं खोजा गया है। अब चूंकि महंगाई का दौर है तो सरकार को चिंता करके इनके वेतन बढ़ाने पर जोरदार विचार करने की जरूरत है।