लखनऊ

लोकसभा संग्राम 56– सपा के बबुआ अखिलेश को मिली इन सीटों पर कांग्रेस दिखाएगी अपना दमख़म ?

Special Coverage News
17 Jan 2019 9:13 AM IST
लोकसभा संग्राम 56– सपा के बबुआ अखिलेश को मिली इन सीटों पर कांग्रेस दिखाएगी अपना दमख़म ?
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सोनिया गांधी और राहुल गांधी को मिलाकर प्रदेश की 80 सीटों में से 14 सीटें है जहाँ कांग्रेस को कह सकते है कि यहाँ कांग्रेस जीतने में कामयाब हो सकती है

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। जाते-जाते साल 2018 कांग्रेस को पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से तीन हिन्दी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश , राजस्थान व छत्तीसगढ़ में तो उम्मीद से कही ज़्यादा मिली सफलताओं से उत्साहित कांग्रेस यूपी में भी वही प्रदर्शन करने के लिए तैयारी कर रही कांग्रेस के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हुई है इससे इंकार नही किया जा सकता है।


कांग्रेस का नेतृत्व मानता है कि कांग्रेस को कमज़ोर मानने वाले बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में है जिसको हम दूर करके दिखाएँगे हम यूपी में सपा और बसपा से बेहतर प्रदर्शन करेगे और जितनी वह दोनों अलग-अलग सीट जीत कर लाएँगे हम उनसे ज़्यादा सीट जीतेंगे अपने दम पर।गठबंधन की सीटें तो यक़ीनन ज़्यादा होगी लेकिन जितनी उन दोनों की अलग-अलग सीटें आएगी उनसे हम ज़्यादा जीतेंगे।कांग्रेस किस हिसाब से गठबंधन होने के बाद भी इतना बड़ा दावा कर रही है यह बात जनता के समझमें नही आ रही है लेकिन जब हम कांग्रेस के इस दावे की समीक्षा करते है तो सियासी परिदृश्य में कांग्रेस जिन सीटों पर मज़बूती से लड़ती दिख रही है और गठबंधन में यह सीटें सपा के कोटे में आने की संभावना लग रही है वैसे अभी गठबंधन की संयुक्त सूची या अलग-अलग सूची आनी बाक़ी है जिसके बाद यह तय होगा कि यहाँ-यहाँ से सपा या बसपा का प्रत्याशी होगा तब यह बात फ़ाइनल होगी।


लेकिन सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार गठबंधन की वह सीटें सपा के कोटे में बतायी जा रही है जहाँ-जहाँ कांग्रेस दमख़म के साथ चुनाव लड़ रही है ऐसी सीटें 12-14 के बीच है उसकी यह मज़बूती आज से नही बहुत पहले से वहाँ कांग्रेस मज़बूत है बल्कि 2014 के चुनाव में मिली हार से ही वह वहाँ मज़बूत ही है जैसे बाराबंकी सीट पर पी एल पुनिया हारकर भी लगातार फ़ील्ड में है वहाँ से एक बार सांसद रहे है जनता उन्हें जानती और पहचानती है यहाँ से उनके पुत्र तनुज पुनिया के चुनाव लड़ने की संभावना है, बनारस (वाराणसी) से अजय राय,प्रतापगढ़ से राजकुमारी रत्ना सिंह ,इलाहाबाद से प्रमोद तिवारी,झाँसी से प्रदीप जैन आदित्य , धौरहरा से जितिन प्रसाद ,बरेली से प्रवीण ऐरन , रामपुर से बेगम नूरबानो , फ़र्रूख़ाबाद से सलमान ख़ुर्शीद ,कानपुर नगर से श्रीप्रकाश जायसवाल, उन्नाव से अनु टण्डन , लखनऊ से राजबब्बर ये सीट प्रदेश की ऐसी मानी जा रही है जहाँ कांग्रेस गठबंधन को पीछे छोड खुद फ़ाईट करती नज़र आ रही है और एक सीट सहारनपुर भी है।


परन्तु यहाँ एक समस्या है जो प्रत्याशी यहाँ 2014 में चुनाव लड़ा था उसके बिगड़े बोलो से यही नही बहुत सीटों पर फ़र्क़ पड़ा था बल्कि गुजरात के विधानसभा के चुनावों में मोदी ने खुद उस नेता के बिगड़े बोलो का इस्तेमाल किया था नही तो ये सीट भी कांग्रेस की जीतने वाली सीटों में शामिल होती यहाँ का समीकरण ऐसा है कि अगर सारा मुसलमान भी वोट दे तो भी यह सीट जीत नही सकते क्योंकि हिन्दू उसके नाम पर एकजुट हो जाता है ऐसा भी नही है मुसलमान ने कोशिश नही की 2014 के चुनाव में पूरा मुसलमान सुई के नाके में निकलकर देख चुका है उसके बाद विधानसभा चुनाव में भी प्रयास कर चुका है पूरा मुसलमान मिल जाता है पर हिन्दू का धुर्वीकरण भाजपा के पक्ष में हो जाता है और आसपास की सीटें भी हार जाती है नही तो कांग्रेस यहाँ भी बढ़िया चुनाव लड़ती लेकिन अब इस सीट पर गठबंधन का प्रत्याशी जीतने के लिए चुनाव लड़ेगा ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस बार मुसलमान गठबंधन के प्रत्याशी को जिताने के लिए वोटिंग करेगा क्योंकि गठबंधन के प्रत्याशी के पास दलित वोट भी होगा मुसलमान के वोट देने से सहारनपुर की सीट तो गठबंधन जीत जाएगा इस लिए सहारनपुर को छोड़कर उपरोक्त सीटों पर कांग्रेस बढ़िया फ़ाइटिंग करती दिख रही यही सच है।


बाक़ी समीकरण लोकसभा के चुनाव शुरू होने पर बदल सकते है इससे इंकार नही किया जा सकता है। चुनावों को रेत की ढाँग कहा जाता है कुछ पता नही लगता क्या हो जाए यह बात भी अपनी जगह है।अगर हम सहारनपुर को छोड भी दें तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी को मिलाकर प्रदेश की 80 सीटों में से 14 सीटें है जहाँ कांग्रेस को कह सकते है कि यहाँ कांग्रेस जीतने में कामयाब हो सकती है अब यह तो आना वाला समय बताएगा कि कांग्रेस इसमें प्रोग्रेस करती है या डाउन होती है। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को हल्के में लिया जा रहा था लेकिन कांग्रेस ने चौंकाने वाले नतीजे दिए थे परन्तु यह कहना आज की स्थिति में सही नही लगता जब गठबंधन नही था और न ही मोदी की भाजपा थी। जबकि भाजपा में और आज की मोदी की भाजपा में फ़र्क़ है मोदी से पहली की भाजपा में साम्प्रदायिकता के आधार पर वोट ज़रूर माँगा जाता था लेकिन झूट का सहारा नही लिया जाता था आज तो झूट चाहे जितना बड़ा बोलना पड़े बस जनता भ्रमित होनी चाहिए तो उससे मुक़ाबला करना है और फिर गठबंधन से भी लड़ना है ये चुनौतियाँ कांग्रेस के सामने है तीन राज्यों में मिली जीत वहाँ सिर्फ़ झूट से मुक़ाबला था यहाँ दो तरफ़ा है इस लिए संघर्ष ज़्यादा करना पड़ेगा।फिर भी उपरोक्त 14 सीटों पर बढ़िया चुनाव लड़ेगी इससे इंकार नही किया जा सकता।

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