लखनऊ

वाह रे शिक्षा विभाग, समान कार्य के लिए समान वेतन क्यों नहीं? क्योंकि शिक्षा विभाग का मुख्य अंग अनुदेशक और शिक्षा मित्र तिल तिल कर मर रहा है

Shiv Kumar Mishra
4 April 2023 10:07 AM IST
वाह रे शिक्षा विभाग, समान कार्य के लिए समान वेतन क्यों नहीं? क्योंकि शिक्षा विभाग का मुख्य अंग अनुदेशक और शिक्षा मित्र तिल तिल कर मर रहा है
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अनुदेशक शिक्षा मित्र रोजाना पल पल पैसे के अभाव में मौत को गले लगाता है।

भारत वर्ष शिक्षा विद और मनीषियों का देश पूर्वज काल से रहा है। भारत ने कई इतिहासकार, कई वैज्ञानिक दिए साधु संत और मनीषियों की भरमार है। देश में जब आगे बढ़ें तो सबसे अहम कडी शिक्षा है। लेकिन उसी शिक्षा को देने वाला गुरु अगर दुखी रहेगा तो क्या उसके द्वारा शिक्षित किया बच्चा आगे चलकर कुछ अच्छा करने में कामयाबी हासिल करेगा।

क्योंकि उसी के साथ जब एक नियमित शिक्षक सरकार के बड़े वेतनमान पर शिक्षा देता है जबकि उसी स्थान पर उसी विषय को मात्र दस हजार और नौ हजार देने वाला शिक्षा मित्र अनुदेशक शिक्षा देता है तो उसे किस शिक्षक पर भरोसा करना चाहिए। इस दोहरी रीति से सरकार का अरबों रुपये का फायदा होता है। लेकिन क्या आम जनता ने सोचा कि मेरे बच्चे के भविष्य का निर्माण करने वाला व्यक्ति एक अकुशल श्रमिक से भी कम वेतन में उसके मासूम को शिक्षित करता है।

जब आम जन मानस के लोग अपने काम के लिए मजदूर लेने जाते है और उसे 500 से लेकर 700 रुपये तक का भुगतान करते है दिन में एक बार भोजन तो चाय दो बार देकर उससे काम लेते है। लेकिन क्या आपने अपने जन प्रतिनिधियों से यह सवाल पूँछा कि उसके बेटे को इतने कम वेतन देने वालों क्यों शिक्षित कराया जा रहा है। जब काम करने वाले शिक्षक को शाम को 300 रुपये मिलेंगे तो क्या करेगा उसका पढ़ाई में ठीक ढंग से मन काम करेगा।

यह काम यूपी के बगल के राज्यों में कुछ हद तक सुलझ चुका है जबकि यूपी में अभी भी सुलझा नहीं है रोज शिक्षा मित्र इस अवसाद में मर जाता है कि अब कुछ नहीं होगा लेकिन किसी दिल से एक आह तक नहीं निकलती है आखिर हम इतने निर्दयी कैसे हो गए है। जबकि विधनसभा में इनको शिक्षक मानकर हम जनता को संदेश दे देते है कि हमारे पास शिक्षकों की कोई कमी नहीं है।

इतना ही नहीं सरकार रोज इनसे काम तो लेना चाहती है जैसे रानी लक्ष्मीबाई योजना में बेटियों का प्रशिक्षण होना हो, निपुण भारत योजना हो जिसमें बच्चों को निपुण बनाना हो अथवा अब स्कूल चलो अभियान हो जो सीएम योगी का विजन है उसे शिक्षा मित्र और अनुदेशक ही पूरा करेगा।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने 3 अक्टूबर 2021 को एक रिपोर्ट जारी की। बताया कि यूपी में सहायक अध्यापकों की संख्या सरप्लस है। रिपोर्ट के अनुसार यूपी में 1.58 लाख स्कूल हैं। इस वक्त 3.79 लाख शिक्षक हैं। 1.40 लाख शिक्षामित्र हैं। कुल शिक्षकों की संख्या हुई 5 लाख 19 हजार। स्कूलों में छात्रों की नामांकन संख्या 1.76 करोड़ है। प्राइमरी स्कूल में शिक्षक अनुपात 30:1 यानी 30 छात्र पर एक शिक्षक हैं। ऐसे में कुल छात्रों का अनुपात निकालने पर 79,568 शिक्षक सरप्लस हुए।

यूपी में हर साल 2 लाख 42 हजार छात्र ग्रेजुएशन करने के बाद बीटीसी में एडमिशन ले रहे हैं। इसमें 10 हजार छात्र सरकारी कॉलेज से ट्रेनिंग लेते हैं बाकी के 2.30 लाख छात्र प्राइवेट कॉलेजों से बीटीसी ट्रेनिंग लेते हैं। यहां की फीस सलाना 60 हजार से अधिक है। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद इनके पास सरकारी नौकरी के रूप में सिर्फ बेसिक शिक्षा विभाग में ही मौका होता है।

बीटीसी और बीएड पूरा करके टीचर एजिबिलिटी टेस्ट यानी टेट पास करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या करीब बीस लाख पहुंच चुकी है। सभी भर्ती का इंतजार कर रहे हैं।

शिक्षा मंत्री ने शिक्षा मित्रों को भी शिक्षक माना

पहलाः 7 मई 2022 को शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने कहा था, "अभी नई शिक्षक भर्ती की कोई चर्चा नहीं है, आगे जैसे ही जरूरत लगेगी, भर्ती की जाएगी।"

दूसराः 19 से 23 सितंबर 2022 तक चले मानसून सत्र में सपा विधायक ने शिक्षकों की कमी का मुद्दा उठाया तब संदीप सिंह ने आंकड़े गिनाते हुए कहा, "हमारे पास इस वक्त 6,28,915 शिक्षक हैं।"

तीसरा : 2023 के बजट सत्र में भी सपा विधायक के जबाब में बेसिक शिक्षा मंत्री ने यही जबाब विधानसभा में दिया साथ ही कहा कि अभी नई भर्ती की सरकार की कोई योजना नहीं है।

इसमें संदीप सिंह ने 1 लाख 47 हजार शिक्षामित्रों को और 26 हजार अनुदेशक अध्यापकों को भी जोड़ लिया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक नहीं मानते हुए इनके समायोजन को रद्द किया था।

अब इन स्कूलों से समझिए शिक्षकों की कमी

उदाहरण 1: प्रयागराज में उच्च प्राथमिक विद्यालय कांशीराम आवास योजना में 1 से 8 तक के 177 बच्चे हैं। उन्हें पढ़ाने का जिम्मा एक शिक्षक पर है।

उदाहरण 2: उच्च प्राथमिक विद्यालय राजापुर में 151 और प्राथमिक विद्यालय गयासुद्दीनपुर में 106 बच्चे हैं। इन्हें भी पढ़ाने के लिए एक मात्र टीचर हैं।

उदाहरण 3: प्रयागराज के ही पुराने लूकरगंज में 45 बच्चे, कटघर में 27 और बक्शी बाजार के स्कूल में 12 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। लेकिन यहां एक भी टीचर नहीं है। दूसरे स्कूल से शिक्षक आकर पढ़ाते हैं।

उदाहरण 4:शाहजहांपुर जिले में एक उच्च प्राथमिक विद्यालय में एक अनुदेशक 265 बचचों को अकेला शिक्षित करने का काम करता है।



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