लखनऊ

पिता के निधन के बाद योगी आदित्‍यनाथ ने यह संदेश देकर यूपी ही नहीं पूरे देश की जनता का दिल जीत लिया

Shiv Kumar Mishra
20 April 2020 8:12 PM IST
पिता के निधन के बाद योगी आदित्‍यनाथ ने यह संदेश देकर यूपी ही नहीं पूरे देश की जनता का दिल जीत लिया
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निजी दुख से बड़ी है देश के सबसे बड़े राज्य में जनता को कोरोना से बचाने की जिम्मेदारी, पिता के अंतिम संस्कार में भाग न लेकर योगी आदित्यनाथ दे रहे हैं ये बड़ा संदेश.

निजी दुख से बड़ी है देश के सबसे बड़े राज्य में जनता को कोरोना से बचाने की जिम्मेदारी, पिता के अंतिम संस्कार में भाग न लेकर योगी आदित्यनाथ दे रहे हैं ये बड़ा संदेश.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह बिष्ट का देहांत हो गया है, लेकिन योगी आदित्यनाथ अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने नहीं जा रहे हैं. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुखिया के नाते वो लगातार बैठकें कर रहे हैं, हालात की समीक्षा कर रहे हैं, ताकि कोरोना के महासंकट के सामने कैसे असरदार ढंग से लड़ाई लड़ी जा सके और जीत हासिल की जाए. पिता के देहांत के बाद उनका बयान आया है.

बयान में अपने पिता के देहांत पर भारी दुख और शोक जताते हुए उन्होंने कहा है कि ईमानदारी, कठोर परिश्रम और निस्वार्थ भाव से लोक मंगल के लिए समर्पित भाव से काम करने का संस्कार बचपन में उन्हें पिता से ही हासिल हुआ है. अंतिम क्षणों में पिता के दर्शन की उन्हें इच्छा भी थी लेकिन उत्तर प्रदेश की 23 करोड़ जनता के हित में कोरोना के खिलाफ देश की मजबूत लड़ाई जारी होने के कारण वो ऐसा नहीं कर सकते. लॉकडाउन की अपील उन्होंने खुद की है तो ऐसे में भला वो इस नियम को खुद क्यों तोड़ें, भले ही मामला अपने पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने का ही क्यों न हो. लोगों से भी लॉकडाउन का पालन करते हुए पिता के अंतिम संस्कार में भीड़ नहीं करने की सलाह उन्होंने दी है, खुद लॉकडाउन समाप्त होने के बाद ही पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए उत्तराखंड जाने की बात की है.

योगी आदित्‍यनाथ ने अपने बयान में भारी दुख व्‍यक्‍त किया.

योगी आदित्यनाथ का ये बयान ये बताने के लिए काफी है कि सार्वजनिक हित और कर्तव्य का निर्वाह हमेशा उनके निजी हित या संबंध पर भारी रहने वाला है. भारतीय राजनीति के लिए भी ये बड़ा संकेत है. देश के सबसे बड़े राज्य का मुखिया, उसके पिता का देहांत हो और खुद शामिल न होने के साथ ही लोगों से भी अंतिम संस्कार के दौरान भीड़ न करने का आह्वान.

ये देश के लिए बड़ा संदेश है, संदेश ये कि नेता के तौर पर जनता से हम जो उम्मीद करते हैं, वही खुद पर भी लागू करें, ज्यादा मुस्तैदी से लागू करें और ये बताएं कि सार्वजनिक हित की प्राथमिकता सबसे उपर होनी चाहिए. योगी आदित्यनाथ के इस कदम ने आठ महीने पहले की एक घटना की तरफ ध्यान खीचा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश में थे और उनके प्रिय मित्र अरुण जेटली का देहांत 24 अगस्त 2019 को हो गया था. पीएम मोदी भी कर्तव्य पथ पर डटे रहे थे, विदेश दौरे में पहले से निर्धारित तमाम कूटनीतिक कार्यक्रमों को पूरा किया और विदेश की धरती से ही अपने प्रिय मित्र को अश्रुपूरित विदाई दी थी.

12 सितंबर 2014 को उनके गुरुजी और गोरक्षपीठ के प्रमुख रहे महंत अवेद्यनाथ जी ब्रह्मलीन हुए थे.

जहां तक योगी आदित्यनाथ का सवाल है, साढ़े पांच साल में उनके लिए निजी तौर पर ये दूसरा बड़ा दुखद वाकया है. साढ़े पांच साल पहले, 12 सितंबर 2014 को उनके गुरुजी और गोरक्षपीठ के प्रमुख रहे महंत अवेद्यनाथ जी ब्रह्मलीन हुए थे. अपने पिता के बारे में शोक संदेश देते हुए योगी आदित्यनाथ ने उन्हें पूर्वाश्रम का जन्मदाता करार दिया, क्योंकि संन्यासाश्रम में आने के बाद महंत अवेद्यनाथ ही उनके मार्गदर्शक और गुरु थे. ऐसे में गुरु और पिता दोनों का साया योगी आदित्यनाथ के सर से साढ़े पांच साल के अंतराल में हट गया है. महंत अवेद्यनाथ ने अपने सबसे प्रिय शिष्य और उत्तराधिकारी के सामने इच्छा प्रकट की थी कि चिकित्सालय में उनका शरीर शांत न हो, क्योंकि अगर उनकी मृत्यु चिकित्सालय में हुई, तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी. महंत अवेद्यनाथ की इच्छा के मुताबिक ही योगी आदित्यनाथ गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती अपने गुरु को अंतिम समय में गोरक्षपीठ लेकर आए थे. बारह सितंबर 2014 की शाम छह बजे अवेद्यनाथ जी को गोरखपर एयर एंबुलेंस के जरिये लाया गया था और गोरक्षनाथ मंदिर परिसर पहुंचते ही उन्होंने अंतिम सांस ले ली. जहां तक योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह बिष्ट का सवाल है, पिछले एक पखवाड़े से वो एम्स में भर्ती थे और आज सुबह पौने ग्यारह बजे के करीब उन्होंने अंतिम सांस ली और कल हरिद्वार में उनका अंतिम संस्कार होगा. गुरु करीब 95 साल की आयु में स्वर्गवासी हुए थे, तो पिता करीब 89 साल की आयु में.

सन 1994 में महंत अवेद्यनाथ ने उन्हें नाथ संप्रदाय में औपचारिक दीक्षा दी और नया नामकरण हुआ योगी आदित्यनाथ.

योगी की अपने पिता से आखिरी मुलाकात कुछ समय पहले अस्पताल में ही हुई थी. अपने जीवन के शुरुआती वर्ष यानी करीब इक्कीस साल तक पिता की छत्रछाया में रहने के बाद 1993 में अजय सिंह बिष्ट गोरखपुर आ गये थे. अगले साल ही 1994 में महंत अवेद्यनाथ ने उन्हें नाथ संप्रदाय में औपचारिक दीक्षा दी और नया नामकरण हुआ योगी आदित्यनाथ. ये भी इत्तफाक ही है कि अपने गुरु की छत्रछाया में भी उन्हें 21 साल तक ही रहने का मौका मिला, वो गुरु जो उन्हीं की तरह उत्तराखंड के क्षत्रिय परिवार से आते थे और जिनका संन्यास लेने के पहले का नाम था कृपाल सिंह.

संन्यास ग्रहण करने के बाद योगी आदित्यनाथ की शोहरत धर्म जगत से लेकर राजनीति और राजनीति के बाद अब शासन-व्यवस्था के मामले में भी काफी अधिक हो चुकी है, पिछले तीन साल से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की बागडोर मजबूती से थामे हुए हैं और अपनी इसी भूमिका के निर्वाह और इसमें कोई कोताही न हो, इसी कारण अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होने जा रहे हैं.

गोरक्षपीठ के प्रमुख रहे महंत अवेद्यनाथ जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिले संस्कार और फिर औपचारिक तौर पर घर का त्याग, परिवार की मोहमाया से बाहर निकलकर देश और समाज के बारे में सोचने के लिए ही आदमी को सिद्ध कर देता है. यही बात पीएम मोदी के मामले में भी लागू है और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मामले में भी. कुछ साल पहले नरेंद्र मोदी की अपनी भतीजी का देहांत हुआ था, लेकिन निजी दुख को घोंट गये, सबसे खास दोस्त का चला जाना भी अखरा, लेकिन कर्तव्य पथ से पीएम मोदी को विचलित नहीं कर सका. योगी को भी अपने गुरु और परिवार से यही संस्कार मिले हैं और यही वजह है कि पिता की मृत्यु के गम को भी पीकर योगी आदित्यनाथ कोरोना के खिलाफ लड़ाई को पूरी ताकत से लड़ने में लगे हैं, उनके पास समय नहीं है उन लोगों से मिलने को, जो पिता के देहांत पर शोक प्रकट करने के लिए उनसे मिलना चाहते हैं. ये कठोर अनुशासन और परिश्रम ही है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना से संक्रमित लोगों का आंकड़ा अपेक्षाकृत छोटे राज्यों के मुकाबले भी काफी कम है.

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