लखनऊ

लव जिहाद के नाम पर दलितों-आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही योगी सरकार

Shiv Kumar Mishra
2 Dec 2020 11:43 AM GMT
लव जिहाद के नाम पर दलितों-आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही योगी सरकार
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रिहाई मंच ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा धर्म परिवर्तन के खिलाफ 'प्रतिषेध अध्यादेश 2020' लाने को संविधान विरोधी बताते हुए कहा कि यह अनुसूचित जाति/जन जाति और अल्पसंख्यक विरोधी है।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि यह अध्यादेश संविधान द्वारा अनुच्छेद 25 में प्रदत्त अपनी इच्छानुसार धर्म के चयन की आज़ादी का उल्लंघन करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान स्पष्ट करता है कि सरकार का कोई धर्म नहीं होना चाहिए और वह किसी विशिष्ट धर्म को प्रोतसाहित नहीं कर सकती। लेकिन संविधान की शपथ लेकर सत्ता में बैठे लोग ही संविधान का मखौल उड़ा रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि हाथरस बलात्कार घटना के बाद सरकारी मशीनरी द्वारा इंसाफ के रास्ते में रोड़ा अटकाए जाने से खिन्न वाल्मीकी समाज के लोगों द्वारा बौद्ध धर्म अपना लेने बाद से ही उनको परेशान किया जा रहा था। इस अध्यादेश के माध्यम से इस तरह के धर्मांतरण पर रोक लगाने का प्रयास किया गया है। उन्होंने सवाल किया कि अध्यादेश में जहां धर्म परिवर्तन कराने वाले के लिए पांच साल की सज़ा और 15 हज़ार रूपये जुर्माना का प्रावधान किया गया है वहीं अनूसूचित जाति/जन जाति के लोगों का धर्म परिवर्तन कराने वाले को दस साल की सज़ा और 25 हज़ार रूपये जुर्माना का क्या औचित्य हो सकता है?

मंच महासचिव ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव अभियान में लगातार लव जिहाद का मुद्दा उठाकर साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन इस अध्यादेश में सज़ाओं के भेदभावपर्ण प्रावधानों से स्पष्ट होता है कि असल निशाना समाज के दलित और वंचित वर्ग हैं जो असमानता और भेदभावपूर्ण रवैये के चलते हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध या अन्य धर्म ग्रहण करने के लिए बाध्य हो रहे हैं।

राजीव यादव ने कहा कि अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक धर्मान्तरण से पहले प्रशासनिक अधिकारियों को सूचित करने, उनके संतुष्ट होने और उनसे धर्मान्तरण की अनुमति मिलने की शर्त मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अध्यादेश में धर्मान्तरण के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने का अधिकार रक्त सम्बंधियों के साथ विवाह या दत्तक ग्रहण सम्बंधियों को देने के साथ ही इसे गैर जमानती अपराध की सूची में रखा गया है। अभियोजन के बजाए खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर डाली गई है जो इसे यूएपीए जैसे क्रूर गैर संवैधानिक कानूनों की श्रेणी ला देता है।

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