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- यूपी: खाकी पर गैंगरेप...
मैनपुरी ज़िले में एक पुलिसकर्मी द्वारा अपने एक साथी की मदद से अपने ही गाँव की एक नवयुवती के साथ गैंग रेप की वीभत्स घटना ने योगी सरकार के 'मिशन शक्ति', 'बेटी बचाओ' और महिलाओं को सुरक्षा प्रदान किये जाने के अन्य दावों की कलाई उघाड़ कर रख दी है। इतना ही नहीं, यूपी पुलिस के लोग किस तरह अपने सांगठनिक अनुशासन से बेख़ौफ़ हैं और महीनों गुज़र जाने के बाद भी उनका अता-पता जानने की कोई विभागीय कोशिश नहीं की जाती, यह घटना इस बात का भी उदाहरण है। अपराध में संग्लग्न सिपाही विगत 3 माह से अपने नियुक्ति स्थल (पटियाली कोतवाली) से बिना किसी सूचना के ग़ैर हाज़िर चल रहा था।
घटना मैनपुरी ज़िले के घिरोर क़स्बे की है। यहाँ की एक युवती शिकोहाबाद से दवा लेकर लौट रही थी। रास्ते में (फ़िरोज़ाबाद के बामयी गाँव के पास) उसके गांव का जानकार युवक धर्मेंद्र उर्फ़ भूरा अपने एक साथी प्रदीप के साथ उसे मिल गया। भूरा पुलिस की नौकरी में पटियाली कोतवाली में तैनात है। उसने युवती को बस से यह कह कर उतार लिया कि कार से गाँव जा रहा है और उसे वहां छोड़ देगा। युवती उसकी बातों में आकर कार में बैठ गयी। कुछ देर कार चलने के बाद वह युवती के साथ छेड़खानी करने लगा। फिर एक सूनसान जगह पर पहुंचकर उन दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया। उसके बाद एक मंदिर के पास उसे 'शिकायत करने पर जान से मारने की धमकी' देकर उतार दिया और भाग गए। युवती किसी तरह अपने परिजनों के पास पहुंची और फिर उन्होंने थाना घिरोर में घटना की रिपोर्ट दर्ज करवाई।
पुलिस की प्रारंभिक जाँच के बाद मालूम हुआ कि आरोपी धर्मेंद्र अपने नियुक्ति स्थल पटियाली कोतवाली (जिला कासगंज) से बिना किसी पूर्व सूचना के विगत 3 माह से अनुपस्थित है। प्रदेश में पुलिसिया सांगठनिक ढांचा अनुशासनहीनता की किस सीमा को पार कर गया है इसका पता इस बात से लगता है कि इतनी लम्बी अनुपस्थिति के बावजूद न तो उसकी कोई खोजबीन की गयी और न उसके विरुद्ध किसी प्रकार की अनुशासनात्मक कार्रवाई ही की गयी। ऐसी जानकारी भी प्रकाश में आयी है कि इस प्रकार नियुक्ति स्थल से बिना किसी पूर्व सूचना के कई-कई महीनों गायब रहने वाले पुलिसकर्मियों की बहुत बड़ी तादाद है। ऐसा माना जाता है कि वे अपनी इस अनधिकृत अनुपस्थिति के दौरान आसपास के ज़िलों में अपराध की अनेक कार्रवाइयों में संलिप्त होते हैं। एसपी (मैनपुरी) ने इंस्पेक्टर पटियाली कोतवाली से फ़रार धर्मेंद्र के अवकाश और अनुपस्थिति की बिंदुवार रिपोर्ट मांगी है। बताया जाता है कि उच्च अधिकारी आसपास के ज़िलों में उसके ज़रायमपेशी के सबूत जुटाने की कोशिश भी कर रहे हैं।
जनवरी में हुई गृह मामलों की संसद की स्टेंडिंग कमिटी के बैठक के समक्ष यूपी पुलिस ने दवा किया था कि उसके राज्य में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में ज़बरदस्त कमी आयी है। कमेटी की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा कर रहे थे। बताया जाता है कि कमिटी के सदस्यों ने प्रदेश में हाल में हुए महिला विरोधी अपराधों का कच्चा चिटठा खोला। उन्होंने ऐतिहासिक हाथरस कांड और उसमें पुलिस-प्रशासन के रवैये का भी उल्लेख किया। कमेटी के एक भाजपा सदस्य ने टिप्पणी की कि अपराध कम होने की वजह उनका रजिस्टर्ड न किया जाना है। "जब अपराध रजिस्टर्ड ही नहीं होंगे तो उनमें लामुहाला कमी दिखेगी ही।" कमेटी के सदस्यों ने पूछा कि अन्य राज्यों की भांति क्यों नहीं यूपी में भी 'जीरो एफआईआर' दर्ज की जाती? उन्होंने हवाला देते हुए भटया कि बीते 3 वर्षों में एक भी 'जीरो एफआईआर' नहीं दर्ज हुई। 'जीरो एफआईआर' का प्रावधान 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद गठित वर्मा कमेटी की सिफारिशों के बाद क्रिमिनल लॉ क़ानून में किये गए संशोधनों के बाद से अस्तित्व में आया है। इस एफआईआर को किसी भी थाने में दायर करवाया जा सकता है। इसका घटनास्थल वाले थाने में ही दायर किया जाना ज़रूरी नहीं। सदस्यों ने आरोप लगाया था कि ऐसा न करके पीड़ित या उसके परिजनों के लिए यूपी पुलिस का मुश्किलें खड़ी करने का नजरिया दिखता है।
मुख्यमंत्रित्व सँभालने के बाद योगी आदित्यनाथ के प्रदेश में अपराध कम करने के नाम पर अपराधियों को 'ठोंक दो' अभियान लॉन्च किया था। अभियान ने शुरुआती 2 वर्षों में ही 76 लोगों को मुठभेड़ में मार गिराया। 3 साल पूरा होते-होते पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने वालों का आंकड़ा 150 को क्रॉस कर गया था। इस पर देशव्यापी कोहराम मचा था और इन्हें "फर्जी एनकाउंटर" बताकर सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमें भी दर्ज किये गए थे जो अभी भी चल रहे हैं। मारे जाने वालों में अधिकांशतः मुस्लिम और उन पिछड़ी जातियों के युवक थे, भाजपा की राजनीति को जो जातिगत स्तर पर 'सूट' नहीं करते। इस सबके बावजूद प्रदेश में अपराधों का ग्राफ बढ़ा ही है, कम नहीं हुआ। 'राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो' के आंकड़ों के अनुसार अपराधों में होने वाली बढ़ोतरी के मामलों में उप्र देश में किसी से कम नहीं। महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में तो यह देश में टॉप पर है। दुखद बात यह है कि इस तरह के अधिकतर मामलों में पुलिस मामलों को रफा दफा करती देखी जाती है, कई बार उसके कर्मचारी स्वयं इसमें शामिल होते हैं।