मैनपुरी

जब दलितों ने दलित जोड़े का सिर मुंडा-जूते पहनाये क्योंकि वो प्रेम करते...

Shiv Kumar Mishra
3 Sept 2020 3:16 PM IST
जब दलितों ने दलित जोड़े का सिर मुंडा-जूते पहनाये क्योंकि वो प्रेम करते...
x

अनिल शुक्ल

सवर्ण जनित हिंसा की इन ख़बरों के प्रचंड प्रवाह का असर समाज के बाक़ी तबक़ों के साथ-साथ दलितों पर भी हो रहा है और सामजिक व आर्थिक उपेक्षा के आख़िरी छोर पर बैठा दिए जाने के बावजूद वे भी कमज़ोर को सबक़ सिखाने का 'गुरुमंत्र' सीखने लग गए हैं.

पुरुष और महिला यदि स्वेच्छा से विवाह या प्रेम संबंध बनाना चाहते हैं तो उन्हें इस बात की आज़ादी क़तई नहीं दी सकती है। तथाकथित समाज उन्हें इस बात के लिए प्रताड़ित करेगा। यदि वे दलित हैं तब तो प्रेम करने के उनके अधिकार और अधिक संकुचित हो जाते हैं तथा प्रताड़ना की डिग्री और भी बढ़ा दी जाती है। वर्षों से सवर्ण और दबंग जातियों के लोग इन दलित जातियों और जनजातियों के 'अपराधियों' को इन मामलों में कठोर सज़ा देते आए हैं।

वैसे तो यह देश में सर्वत्र होता चला आ रहा है लेकिन दलितों को 'सबक़' सिखाने के मामले में यूपी का कोई जवाब नहीं। 'राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो' (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक़ दलित विरोधी अपराधों के मामलों में यूपी देश में 'टॉप' पर है। सन 2014 से 2018 के बीच में उप्र में इन अपराधों में 48% की बढ़ोतरी हुई है। 'प्रदेश' में सवर्ण दबंगों द्वारा की जाने वाली दलित विरोधी वारदातों की ख़बरें आए दिन सुनने में आती रहती हैं।

दलितों का दलितों पर अत्याचार

सवर्ण जनित हिंसा की इन ख़बरों के प्रचंड प्रवाह का असर समाज के बाक़ी तबक़ों के साथ-साथ दलितों पर भी किस तरह हो रहा है और सामजिक व आर्थिक उपेक्षा के आख़िरी छोर पर बैठा दिए जाने के बावजूद कैसे वे भी कमज़ोर को सबक़ सिखाने का 'गुरुमंत्र' सीखने लग गए हैं, इसका उदहारण उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुई वह क्रूर घटना है। गाँव के ही दलितों ने बीते शुक्रवार को तड़के एक दलित जोड़े को गाँव के चौक में लाकर बुरी तरह मारा-पीटा, चेहरा पोत कर जूते की माला पहनाई और दोनों के सिर पर उस्तरा चला दिया। इतना ही नहीं प्रताड़ित किये जाने की अपनी गतिविधियों का वीडियो भी बना डाला।

कुछ साल पहले विधवा हुई महिला और अपनी पत्नी से अलग हुए पुरुष का दोष सिर्फ़ इतना था कि उन्होंने नए सिरे से अपने संबंधों को विकसित किया था और वे लोग जल्द ही विवाह रचाने जा रहे थे। कठोर 'सजा' देने पर आमादा हिंसक भीड़ निर्वस्त्र करके उनका जुलूस निकालने की तैयारी कर ही रही थी तभी सूचना पाकर कोबरा पुलिस के 2 सिपाही वहाँ पहुँच गए और उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।

पुलिस पर दबाव

6 नामजद और 10 ग़ैर नामजद लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दायर करके गुज़रे शनिवार को दिन में पुलिस ने 6 नामजदों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस मामले को रफ़ा-दफ़ा करने को आमादा थी, पर उनके दुर्भाग्य से एक टीवी पत्रकार का उसी गाँव का निवासी होने, तड़के उस पत्रकार के पास समूची घटना की वीडियो पहुँच जाने और सुबह होते-होते घटना स्थल पर पहुंच जाने से ऐसा न हो सका। दबाव के चलते पुलिस को पूरे मामले का संज्ञान और सम्बद्ध लोगों की गिरफ्तारी के लिए मजबूर होना पड़ा।

घटना मैनपुरी शहर से 4 किमी दूर बसे गाँव नगला गुरुबख्श-सिकंदरपुर (थाना कोतवाली) की है। लगभग एक हज़ार की आबादी वाले इस दलित बहुल गाँव में अनुसूचित जाति और जनजातियों के लोग बड़ी तादाद में रहते हैं। इसी गाँव में अनुसूचित जाति का गुरुजीत कठेरिया तथा अनुसूचित जनजाति की धानुक (बहेलिया) विधवा महिला लक्ष्मी रहते थे। दोनों के 3-3 बच्चे भी हैं। दोनों के बीच नए सिरे से रिश्ते विकसित होने पर धानुक जनजाति के असरदार लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। उनकी दलील थी कि दोनों के बाल बच्चेदार होने के चलते 'इस तरह के रिश्ते बनाने की छूट दी गई तो इसका समाज पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।'

दलित जोड़े को धमकी

कई बार धमकी देने के बावजूद जब दोनों अलग नहीं हुए और उलटे दंपत्ति ने यह कहना शुरू कर दिया कि वह जल्द ही वैवाहिक बँधन में बंधने वाले हैं तो इसे स्थानीय लोगों ने न सिर्फ़ अपनी हेठी माना बल्कि इसे बेमेल विवाह भी घोषित कर दिया। इसी सप्ताह उन्होंने दंपत्ति के मेल-जोल पर सख़्त पाबंदी की घोषणा कर दी।

शुक्रवार की रात 2.30 बजे गाँव वाले दोनों को घसीटकर मारते-पीटते गाँव के चौक तक लाए। उन्होंने आरोप लगाया की दोनों 'आपत्तिजनक' दशा में पकडे गए हैं। उधर गुरुजीत और लक्ष्मी ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि शुक्रवार की शाम राजवीर, शिवरतन, राजबहादुर आदि ने उन दोनों को अलग-अलग धमकी दी और कभी न मिलने के लिए ख़बरदार किया। इन दोनों ने उनकी धमकियों में आने से इनकार कर दिया। इसी से नाराज़ होकर इन 3 के अलावा सुरजीत आदि ने उनके घर पर धावा बोला और उन्हे घसीटते हुए चौक तक लाये। वहाँ उनका चेहरा कालिख से पोता, जूतों की माला पहनाई और उनके साथ होने वाले इन सब दुराचारों की वीडियो भी अपने फोन से बनाई।

इस समूचे घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण और दिलचस्प है टीवी पत्रकार अफ़ाक़ अली ख़ान का बयान। अफ़ाक़ एक किमी दूर बसे गाँव नगला के वाशिंदे हैं और एनडीटीवी लाइव के 'स्ट्रिंगर' हैं। 'सत्य हिंदी' से बातचीत में वह बताते हैं कि उनके पास घटना का वीडियो तड़के ही आ गया था लेकिन वह देख नहीं पाए थे। सुबह उन्होंने वीडियो देखा तो वह घटनास्थल पर पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्हें मालूम हुआ कि ग्राम प्रधान की इत्तलाह पर लगभग 3 बजे चौकी से कोबरा पुलिस के 2 सिपाही आये थे, उन्होंने गाँव वालों को दोनों व्यक्तियों को निर्वस्त्र करके घुमाये जाने से रोका और दोनों को लेकर पुलिस चौकी चले गए।

क्या था पुलिस का रवैया?

अफ़ाक़ अली ख़ान का कहना है कि थाने के उनके सूत्रों से जब सुबह यह मालूम हुआ कि इस क़िस्म का कोई मामला वहां पहुंचा ही नहीं है तो उन्होंने एडिशनल एसपी मधुवन सिंह को फ़ोन करके उक्त मामले की जानकारी दी। अफ़ाक़ बताते हैं कि 'मधुवन सिंह ने बड़े खिन्न स्वर में कहा कि मैं उन्हें क्यों बता रहा हूँ। कुछ है तो आप थाने को कहिये, मुझे कोई मतलब नहीं।'

अफ़ाक़ ने अपने कई प्रिंट और टीवी दोस्तों को वह वीडियो 'फ़ॉरवर्ड' कर दिया। थाने में पत्रकारों की पूछताछ पर जब कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो उन्होंने एसपी अजय कुमार पांडेय को फोन करना शुरू किया। एसपी ने दोपहर को बयान दिया, जिसमें अभियुक्तों को पीड़ितों का परिजन होना बताया और उनके ख़िलाफ़ कठोर करवाई की बात कही।

अफ़ाक अली ने कहा, 'दोपहर इन्स्पेक्टर थाना कोतवाली और तहसीलदार मय पुलिस दलबल के गाँव पहुंचे। उन्होंने जो मिला, उसे अपनी गाड़ी में बैठा लिया और लेकर चले आये। मैंने एसआई चौकी से पूछा कि इनमें वारदात करने वाला तो कोई भी नहीं है? तब पुलिस के दबाव बढ़ने का नतीजा यह हुआ कि घरों में ताला लगाकर भाग गए अभियुक्तों ने शाम होते-होते थाने पहुंचकर आत्मसमर्पण कर दिया।'

अफ़ाक़ बताते हैं 'मुख्य अभियुक्त राजवीर हलवाई लक्ष्मी के पीछे लम्बे समय से था, लेकिन वह इसे घास नहीं डालती थी। घटना की शाम को ही उसने अपने दोस्तों के साथ शराब पीकर पूरे षड्यंत्र को रचा। पहले उसकी नीयत महिला के साथ बलात्कार करने की थी, लेकिन जब उसे अहसास हुआ कि मामला पेचीदा हो गया है तो उसने अपनी पत्नी और अपने दोस्तों के परिवार की महिलाओं को शामिल करके इसे सामाजिक प्रताड़ना का मामला बनाने की कोशिश की। उसे नहीं अंदाज़ था कि सामाजिक प्रताड़ना भी है तो क़ानूनन जुर्म भी।'

दो बातें जो इस घटना से साबित होती हैं वह यह कि सामजिक सोच के स्तर पर सभी समुदायों के पुरुषों में महिलाओं को लेकर समान रूप से क्रूर और हिंसक भावना है। सवर्ण दबंगों ने दलितों के दमन के जो हथियार निर्मित किए हैं, मौक़ा पड़ने पर दलित भी उसका इस्तेमाल उतनी ही निर्ममता से करते हैं।

साभार सत्यहिन्दी.कॉम

Next Story