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एक व्यक्ति ने 20 रुपये के लिए रेलवे के खिलाफ 23 साल पहले किया था केस, अब आया यह फैसला
मथुरा के एक व्यक्ति ने 20 रुपये के लिए रेलवे के खिलाफ 23 साल पहले केस किया था जिसे उन्होंने जीत लिया है। कोर्ट ने रेलवे को आदेश दिया है कि वो 12 फीसदी ब्याज के साथ पूरा पैसा एक महीने के भीतर शिकायत कर्ता तुंगनाथ चतुर्वेदी को दे। जिला उपभोक्ता फोरम ने आदेश दिया कि यदि अगले 30 दिनों तक राशि का भुगतान नहीं किया जाता हैमतो ब्याज दर को संशोधित कर 15% कर दिया जाएगा।
इसके साथ ही कोर्ट ने वित्तीय एवं मानसिक पीड़ा और केस में खर्च के लिए रेलवे को आदेश दिया है कि वो 15 हजार रुयये अतिरिक्त तुंगनाथ चतुर्वेदी को दें। जानकारी के मुताबिक मामला 25 दिसंबर 1999 का है। तुंगनाथ चतुर्वेदी के मुताबिक 'मैं उस दिन एक दोस्त के साथ मुरादाबाद का टिकट खरीदने के लिए मथुरा छावनी रेलवे स्टेशन गया था। मैंने उस व्यक्ति को टिकट खिड़की पर 100 रुपये दिए। हालाँकि, उसने मेरे बकाया 70 रुपये के बजाय 90 रुपये काट लिए और शेष राशि वापस नहीं की। मैंने क्लर्क से कहा कि उसने मुझसे अधिक शुल्क लिया लेकिन मुझे फिर भी पैसे वापस नहीं मिले।' मैंने जनहित में ये केस लड़ा।' तुंगनाथ चतुर्वेदी के मुताबिक 'यात्रा पूरी करने के बाद मैंने उत्तर पूर्व रेलवे (गोरखपुर) के महाप्रबंधक, मथुरा छावनी रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर और टिकट बुकिंग क्लर्क के खिलाफ जिला उपभोक्ता अदालत में केस दर्ज कराया। मैंने सरकार को भी पार्टी बना लिया।
मैंने यह केस 20 रुपये के लिए नहीं बल्कि व्यापक जनहित के लिए लड़ा था।' 120 से अधिक सुनवाई के बाद 5 अगस्त को फैसला सुनाया गया जिसमें फैसला उनके पक्ष में आया। चतुर्वेदी के बेटे और वकील रविकांत चतुर्वेदी ने कहा, 'रेलवे ने मामले को यह कहते हुए खारिज करने की कोशिश की थी कि उनके खिलाफ शिकायतों को एक विशेष अदालत में सुनवाई के लिए भेजा जाना चाहिए, ना कि उपभोक्ता में सुनवाई होनी चाहिए। हमने शीर्ष अदालत के 2021 के फैसले का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया कि मामले की सुनवाई उपभोक्ता अदालत में की जा सकती है।
रवि ने कहा 'रेलवे अधिकारियों ने भी मेरे पिता से मामले को अदालत के बाहर निपटाने के लिए संपर्क किया, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया।' पिछले छह साल से गठिया से पीड़ित तुंगनाथ चतुर्वेदी ने जीत के बाद कहा 'यह एक लंबी, थका देने वाली कानूनी लड़ाई थी। फुलप्रूफ सबूत के बावजूद मुझे रेलवे प्रशासन की ओर से गलत काम साबित करने के लिए 120 सुनवाई में शामिल होना पड़ा।
मेरे परिवार और दोस्तों ने मुझे समय की बर्बादी बताते हुए कई बार मामले को आगे बढ़ाने से रोकने की कोशिश की, लेकिन मैं चलता रहा। पैसा नहीं है जो मायने रखता है। यह केस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के बारे में था।