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ब्रज के प्रख्यात भजन गायक बाबा रसिका पागल का निधन, शिष्यों में शोक की लहर
प्रख्यात भजन गायक बाबा रसिका पागल का शनिवार की देर रात निधन हो गया। बाबा रसिका पागल पिछले किडनी और शुगर की समस्या से झूझ रहे थे। भगवान बाँके बिहारी और स्वामी हरिदास जी के भजन गा कर देश दुनिया में सुर्खियां बटोरने वाले बाबा रसिका पागल के निधन से हरीदासिय सम्प्रदाय के साथ साथ उनके शिष्यों में शोक की लहर दौड़ गयी।
55 वर्ष अवस्था मे हुआ निधन
एक जनवरी 1967 को जन्मे बाबा रसिका पागल वृंदावन के निवासी थे। तीन भाई और दो बहनों में तीसरे नम्बर के बाबा अपनी ही मस्ती में रहते और रिक्सा चलाते थे। शाम को जब बाँके बिहारी मंदिर में शयन आरती होती तो वह बिहारी जी को अपने पदों को गा कर रिझाते ( आरधना) करते थे। रिक्शा चलाने वाले बाबा रसिक दास भजनों को सुनाकर बिहारी की भक्ति में रसिका पागल बन गए। बाबा रसिका पागल का 55 वर्ष की उम्र में शनिवार देर रात निधन हो गया।
2 साल से अस्वस्थ चल रहे थे बाबा रसिका पागल
अपनी अलमस्त गायकी से ठाकुर बांके बिहारी की महिमा का बखान करने वाले ब्रज के प्रसिद्ध भजन गायक बाबा रसिका पागल का शनिवार की देर रात गोलोक वास हो गया। बाबा के देहावसान की खबर से रसिक भक्त समाज मे शोक की लहर फैल गयी है। बाबा लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। शनिवार की देर रात वृंदावन के रामकृष्ण मिशन अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
भक्ति संगीत को दी नई दिशा
ब्रज के रसिक भक्त समाज के लिये बाबा रसिका पागल एक ऐसा नाम था जिसने भक्ति संगीत को नई दिशा दी। बाबा की अलमस्त गायकी का जादू भक्तो के दिलो दिमाग पर छाया हुआ है। वृंदावन के अनाज मंडी क्षेत्र में अपना बचपन गुजारने वाले बाबा के दो भाई थे। होश सँभालने के बाद घर की जिम्मेदारी उठाने के लिये रसिक ने रिक्शा चलाया। लेकिन गायकी बाबा के जीवन का हिस्सा बन चुकी थी। रिक्शा चलाते समय भी रसिक बांके बिहारी के रूपरंग को गुनगुनाते थे। और शाम को मन्दिर में जाकर बांके बिहारी लाल को खुद के रचित पदों से रिझाया करते थे।
टी सीरिज कम्पनी के लिए भी गाये कई भजन
बाबा ने स्वामी हरिदासीय परम्परा में दीक्षा ग्रहण की। मन्दिर में गायन करते समय ही म्यूजिक कम्पनी टी सीरीज के एक अधिकारी ने गायन सुना और अपनी कम्पनी के लिए गाने का अनुरोध किया। इसके बाद बाबा की गायकी दुनिया के सामने आयी।
कान्हा रे कान्हा भजन से हुई शुरुआत
बाबा रसिका पागल ने भजन गायन की दुनिया में 1996 में कदम रखा। उन्होंने सबसे पहली अलबम कान्हा रे कान्हा बनाई। इसके बाद बाबा ने हजारों भजन गाये । बाबा का भजन कजरारे तेरे मोटे मोटे नैन नजर तोहे लग न जाये बहुत प्रसिद्ध हुआ। बाबा रसिका पागल के भजनों के न केवल भारत मे बल्कि विदेशों में भी लोग दीवाने हैं। बाबा के भक्त चमन प्रकाश नागर ने बताया कि बाबा जब भजन गायन करने जाते थे तो वह रचनाओं को पहले से तैयार नहीं करते थे। बाबा बस स्वामी हरिदास और बाँके बिहारी जी को ध्यान करते और भजन गाना शुरू कर देते थे।
रसिक दास से बने रसिका पागल
रिक्सा चलाने वाले रसिक दास ने हरीदासिय परम्परा के आचार्य संत गोविंद शरण शास्त्री से दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद भजन गायन और गुरु भक्ति में लीन रहने वाले रसिक दास जब अचानक भजन गाने लग जाते तो उनके गुरु ने उनका नाम रसिक दास से रसिका पागल कर दिया। गुरु ने बताया कि पागल का उल्टा अर्थ है लग पा । यानी भगवान की भक्ति में लग जायेगा तो भगवान को पा लेगा।