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यूपी के इस गांव में लगता है सपेरों का सुप्रीम कोर्ट, 3 तारीख में केस खत्म!
मथुरा : उत्तर प्रदेश के मथुरा के एक गांव को सपेरा समाज की सर्वोच्च अदालत की स्थिति का दर्जा हासिल है। जहां समाज से जुड़ी किसी भी छोटे या बड़े मामले की केवल 3 तारीख में सुनवाई के बाद फैसला दे दिया जाता है। यह फैसला मान्य होता है। सपेरे समाज से जुड़े वे ही मामले यहां आते हैं जिनका फैसला समाज की निचली पंचायतों जिन्हें सपेरा समाज सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट मानते हैं, में नहीं हो पाता है।
नीम के पेड़ के नीचे समाज के ही बुजुर्ग जज की भूमिका में बैठते हैं। वहीं, समाज के ही लोग वकील भी होते हैं। जो कोर्ट कचहरी की तरह बहस करते हैं। हालांकि पढ़ाई और डिग्री के मामले में दोनों ही निरक्षर हैं लेकिन इन के फैसले समाज के लिए मान्य है। जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर छाता तहसील के चौमुंहा ब्लॉक में गांव बसई बुजुर्ग स्थित है। सपेरा समाज में इस गांव के प्रति आस्था है। इसकी वजह है यहां लगने वाली समाज की सुपर पंचायत जिसे समाज में 'सुप्रीम कोर्ट' का दर्जा हासिल है। देशभर से सपेरा समाज के विवादित मामले सुनवाई के लिए यहां आते हैं। कोर्ट कचहरी की तर्ज पर यहाँ दोनों पक्षों की पेशी और गवाही होती है और बाकायदा तारीख मिलती है।
यहां के प्रमुख पंच (जज) धनपत ने बताया कि गुरुवार को शादी संबंध से जुड़ा एक मामला सुनवाई को आया। वकील विजय सिंह ने बताया कि बदायूं के जौरा गांव निवासी इलायची नाथ की बेटी की शादी फरीदाबाद के कंचन नाथ के लड़के से तय हुई। बाद में पता चला लड़की का कोई और मंगेतर है जिसके बाद यह लोग यहां फैसले के लिए आए हैं दोनों ने अपना पक्ष रखा है।
नहीं जाते थाने और कोर्ट कचहरी
धनपत ने बताया कि आपसी विवादों को लेकर थाने या कोर्ट नहीं जाते। अगर ऐसा होता है तो वहां राजीनामा करवाकर केस वापस करा लिया जाता है और फिर समाज की अदालत में सुनवाई होती है। दोषी को दंड भी दिया जाता है। उनका दावा है कि यहां एमपी, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी के साथ देश के अन्य क्षेत्रों से भी समाज के लोगों के विवाद सुनवाई के लिए आते हैं। पीढ़ियों से यहीं समाज की सर्वोच्च अदालत लगती आ रही है।
तारीख पर नहीं पहुंचे तो 10000 जुर्माना
सुनवाई के लिए तारीख भी जाती है और नियत तारीख पर होने पर सुनवाई पर नहीं आने पर रुपए 10000 का जुर्माना वसूला जाता है।
जमीन के विवाद में फैसले तक स्टे
जमीनी विवाद में सर्वोच्च अदालत स्टे लगा देती और फैसला होने तक उस जमीन को दोनों पक्षों में से कोई भी इस्तेमाल नहीं कर सकता।
रेप किया तो बिरादरी से बाहर करने की भी सजा
रेप के आरोपी को पापी माना जाता है। आरोपी का का हुक्का-पानी बंद कर समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है। पापी का चेहरा देखना गुनाह है। भूलवश चेहरा देखने पर 1300 रु. दंड देकर यह कलंक मिटाना पड़ता है जबकि जानबूझकर मिलने या चेहरा देखने पर 2600 रु. जुर्माना वसूला जाता है।
हत्या जैसे अपराध में कानून अपना काम करता है
हत्या जैसे अपराध में कानून अपना काम करता है लेकिन इस बारे में समाज की सुप्रीम अदालत भी फैसला सुनाती है। जेल जाने के बाद आरोपी के परिजन या रिश्तेदार उससे मिलने जेल में नहीं जा सकते और नहीं उसे छुड़ाने के लिए पैरवी करेंगे। यदि ऐसा होता है तो सपेरों की अदालत ऐसा करने वालों पर 50000 से डेढ़ लाख तक दंड लगाती है।
Courtesy : NBT