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- श्री कृष्ण की नगरी...
श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में एक ऐसा चमत्कारी कुंड,जहां स्नान करने से नि:संतान को मिलता है सन्तान प्राप्ति का वरदान.....
भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में गोवर्धन गिरधारी की परिक्रमा के मार्ग में एक चमत्कारी कुंड पड़ता है जिसे राधा कुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि नि:संतान दंपत्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को यहां दंपत्ति एक साथ स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है।
अहोई अष्टमी का यह पर्व यहां पर प्राचीनकाल से मनाया जाता है। इस दिन पति और पत्नी दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि में राधाकुंड में डूबकी लगाते हैं तो ऐसा करने पर उस दंपत्ति के घर में बच्चे की किलकारियां शीघ्र ही गूंज उठती है।
इतना ही नहीं जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है वह भी अहोई अष्टमी के दिन अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में हाजरी लगाने आता है। माना जाता है कि यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है।
"राधा कुंड की कथा"
इस प्रथा से जुड़ी एक कथा का पुराणों में भी वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है -
जिस समय कंस ने भगवान श्री कृष्ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नामक दैत्य को भेजा था उस समय अरिष्टासुर गाय के बछड़े का रूप लेकर श्री कृष्ण की गायों के बीच में शामिल हो गया और उन्हें मारने के लिए आया। भगवान श्री कृष्ण ने उस दैत्य को पहचान लिया। इसके बाद श्री कृष्ण ने उस दैत्य को पकड़कर जमीन पर फैंक दिया और उसका वध कर दिया।
यह देखकर राधा जी ने श्री कृष्ण से कहा कि उन्हें गौ हत्या का पाप लग गया है। इस पाप से मुक्ति के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिएं। राधा जी की बात सुनकर श्री कृष्ण ने नारद जी से इस समस्या के समाधान के लिए उपाय मांगा। देवर्षि नारद ने उन्हें उपाय बताया कि सभी तीर्थों का आह्वाहन करके उन्हें जल रूप में बुलाएं और उन सभी तीर्थों के जल को एक साथ मिलाकर स्नान करें जिससे उन्हें गौ हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी।
नारद जी के कहने पर श्री कृष्ण ने एक कुंड में सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया और कुंड में स्नान करके पाप मुक्त हो गए। इस कुंड को कृष्णकुंड कहा जाता है जिसमें स्नान करके श्री कृष्ण गौ हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। माना जाता है कि इस कुंड का निर्माण श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से किया था। नारद जी के कहने पर ही श्री कृष्ण ने यह कुंड अपनी बांसुरी से खोदा था और सभी तीर्थों से उस कुंड में आने की प्रार्थना की जिसके बाद सभी तीर्थ उस कुंड में आ गए।
इसके बाद श्री कृष्ण के कुंड को देखकर राधा जी ने भी अपने कंगन से एक कुंड खोदा । जब श्री कृष्ण ने उस कुंड को देखा तो उसमें प्रतिदिन स्नान करने और उनके द्वारा बनाए गए कुंड से भी अधिक प्रसिद्ध होने का वरदान दिया जिसके बाद यह कुंड राधाकुंड के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
पुराणों के अनुसार अहोई अष्टमी तिथि के दिन ही इन कुंडो का निर्माण हुआ था जिसके कारण अहोई अष्टमी पर इस कुंड में स्नान करने का विशेष महत्व है। कृष्णकुंड और राधाकुंड की अपनी-अपनी विशेषता है। कृष्णकुंड का जल दूर से देखने पर काला और राधाकुंड का जल दूर से देखने पर सफेद दिखता है।