मथुरा

मथुरा के शहीद एसपी मुकुल द्विवेदी की पत्नी जवाहरबाग हत्याकांड में त्वरित जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट गईं

Shiv Kumar Mishra
19 Aug 2020 10:56 PM IST
मथुरा के शहीद एसपी मुकुल द्विवेदी की पत्नी जवाहरबाग हत्याकांड में त्वरित जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट गईं
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40 महीने बीत चुके हैं लेकिन मथुरा जवाहरबाग हिंसा से जुड़े राजनीतिक नेताओं और नौकरशाहों ने सीबीआई ने अब तक पूछताछ नहीं की है.

मथुरा के एसपी मुकुल द्विवेदी की पत्नी 2016 जवाहरबाग हत्याकांड में त्वरित जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट चली गईं. 40 महीने बीत चुके हैं लेकिन मथुरा जवाहरबाग हिंसा से जुड़े राजनीतिक नेताओं और नौकरशाहों ने सीबीआई ने अब तक पूछताछ नहीं की है.

2016 के जवाहर बाग हत्याकांड में पूरी जांच में तेजी लाने के लिए पर्याप्त संख्या में अधिकारियों की एक टीम गठित करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्देश देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी. यह याचिका मथुरा के पूर्व एसपी मुकुल द्विवेदी की पत्नी ने दायर की है, जो नरसंहार में मारे गए कई लोगों में शामिल थे.

मार्च 2017 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की ओर से एक दोषपूर्ण और अवैज्ञानिक जांच का हवाला देते हुए मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया था. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि भले ही 40 महीने बीत चुके हैं, लेकिन राजनीतिक नेताओं और नौकरशाहों को जो कथित तौर पर हिंसा से जुड़े थे उनसे आज तक कोई पूंछ तांछ नहीं की गई.

क्या था मामला

इस मामले में मुख्य अभियुक्त, राम बृक्ष यादव ने अपने समर्थकों के एक समूह के साथ मार्च 2014 में मथुरा के केंद्र में 280 एकड़ में फैले एक सार्वजनिक पार्क, जवाहर बाग पर कब्जा कर लिया था. अतिक्रमण समय के साथ बढ़ता रहा और "कई हस्तक्षेपों के बावजूद" जिला प्रशासन को उन्होंने पार्क को खाली करने से इनकार कर दिया था. अतिक्रमण इस हद तक बढ़ गया कि घरेलू गैस कनेक्शन प्राप्त हो गए और एक स्वतंत्र टाउनशिप स्थापित होने लगी. जिसका विरोध भी अब बड़े स्तर पर शुरू हो चुका था.

बागवानी विभाग के अधिकारियों ने आरोप लगाया कि इन अतिक्रमणकारियों द्वारा 3,000-4,000 पेड़ काटे गए और उनका उपयोग खाना पकाने और अन्य उद्देश्यों के लिए किया गया. स्थानीय निवासियों द्वारा विरोध शुरू करने के बाद, राज्य पुलिस ने अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने का फैसला किया. हालांकि जिसमें उन्हें राम बृक्ष यादव के नेतृत्व वाले पंथ समूह के लगभग 1,000 सदस्यों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा.

2 जून 2016 को पुलिस ने अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने की कोशिश की. जिसमें उन्होंने देशी निर्मित पिस्तौल से लैस जवाबी हमला किया और लगभग 175 सिलेंडरों को आग लगा दी. इससे दो अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ सिटी एसपी मुकुल द्विवेदी सहित कई लोगों की मौत हो गई.

याचिकाकर्ता का दावा है कि राम वृक्ष यादव ने मजबूत राजनीतिक संबंध बना रखे थे जो उन्हें सशस्त्र पुरुषों के साथ पार्क के भीतर "समानांतर सरकार" चलाने के लिए और ताकत प्रदान करता था.

याचिकाकर्ता दावा करती है कि उनके पति को रहस्यमय परिस्थितियों में मारा गया था. जवाहर बाग की चारदीवारी को एक दिन पहले तोड़ने का आदेश दिया गया था. इसके अलावा, वह केवल कुछ नए भर्ती हुए पुलिसकर्मियों के साथ थे और जिन्हें हथियार ले जाने की अनुमति नहीं थी.

याचिका में कहा गया है, "यह एक बड़ी आपराधिक साजिश का बहुत विचारोत्तेजक है. पुलिसकर्मियों ने इस विशाल हिंसा को देखा लेकिन इस विशाल हिंसा के लिए जिम्मेदार उच्च अधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई, यहां तक ​​कि निलंबन भी नहीं किया गया था. यही कारण है कि याचिकाकर्ता के पास विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर संदेह करने का हर कारण मौजूद है. जांच के 40 महीनों के बाद भी सीबीआई ने राम बृक्ष यादव और उनके सहयोगियों और याचिकाकर्ता के पति के कॉल डिटेल्स की अब तक जांच नहीं की है.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि हिंसा के स्थल पर सबूतों को नेताओं द्वारा दिए गए लिंक को तोड़ने के लिए नष्ट कर दिया गया था . उच्च अधिकारियों ने मृतकों के डीएनए जांच और फॉरेंसिक जांच भी ठीक ढंग से नहीं किया गया थ. जिससे यह स्पष्ट नहीं है कि मुख्य आरोपी रामबृक्ष यादव है भी या नहीं, वो मृत हो गया अथवा जीवित है.

याचिकाकर्ता इसलिए एक विशेष टीम के गठन की मांग करती है जिसे दो महीने के भीतर इस जघन्य हत्याओं की जांच करने के लिए निर्देशित किया जा सके.

उन्होंने अदालत से यह भी आग्रह किया है कि सीबीआई को निर्देश दिया जाए कि वह राज्य की ओर से "असंवैधानिक निष्क्रियता" के संबंध में व्यापक जांच के लिए एक टीम का गठन करे, जो कि उसके खिलाफ प्राप्त खुफिया सूचनाओं और संचार पर त्वरित कार्रवाई करे. उन्होंने प्रार्थना की है कि इस टीम को सभी प्रासंगिक रिकॉर्डों तक पहुंच प्रदान की जाए ताकि "गहन जांच" की जा सके और मथुरा जिला प्रशासन द्वारा ड्यूटी पर रोक लगाने और कार्रवाई रोकने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान की जा सके.

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