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- क्या चुनावी राजनीति से...
क्या चुनावी राजनीति से मुख्तार अंसारी ने लिया संन्यास, नहीं लड़ेंगे चुनाव, बेटे अब्बास को सौंपी विरासत, मऊ से भरा पर्चा
मऊ से विधायक बाहुबली मुख्तार अंसारी इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। करीब तीन दशक बाद पहला मौका होगा जब अंसारी चुनाव मैदान में नहीं होंगे। मुख्तार अंसारी ने अपनी सीट बेटे अब्बास अंसारी को सौंप दी है। सोमवार को अब्बास ने नामांकन भी दाखिल कर दिया। सपा गठबंधन में शामिल सुभासपा ने अब्बास अंसारी को टिकट भी दे दिया है। सदर सीट से विधायक मुख्तार अंसारी लगातार पांच जीत दर्ज कर चुके हैं।
पिछले हफ्ते मुख्तार अंसारी के नामांकन के लिए अदालत से इजाजत भी मांगी गई थी। अदालत ने उनके वकील और अन्य लोगों को जेल में जाकर नामांकन प्रक्रिया पूरी करने की इजाजत भी दे दी थी। नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के पहले दिन उनके अधिवक्ता दारोगा सिंह ने कोर्ट से सारी प्रक्रियाएं पूरी करवाई थी। जेल में मुलाकात के लिए सभी 22 लोगों की आरटीपीसीआर जांच भी हुई थी।
मुख्तार अंसारी के लिए सुभासपा के नाम पर नामांकन पत्र लिया गया था। इस बीच सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने भी यह कहकर माहौल को गरमा दिया था कि मऊ सदर से मुख्तार या अब्बास दोनों में से कोई भी लड़ सकता है।
अंततः सोमवार को यह तय हो गया कि मुख्तार अंसारी चुनाव नहीं लड़ेंगे। अब्बास ने सोमवार को मऊ से अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया है। दारोगा सिंह ने कहा कि मुख्तार अंसारी ने अपनी विरासत अब्बास अंसारी को सौंप दी है। अब अब्बास की चुनावी राजनीति में रहेंगे।
पिछली बार घोसी से लड़े से बेटे अब्बास
पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी ने मऊ सदर और बेटे अब्बास ने घोसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। बिहार के राज्यपाल फागू चौहान की परंपरागत सीट पर पहली बार मुख्तार घराने ने मजबूत दस्तक दी थी। तब बसपा के प्रत्याशी अब्बास अंसारी 81,295 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे। वहीं इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी फागू चौहान को 88,298 वोट पाकर जीत हासिल किए थे। इस बार घोसी विधानसभा सीट पर भाजपा से सपा में आए मंत्री दारासिंह चुनाव लड़ रहे हैं।
मऊ सीट पर भाजपा ने अशोक सिंह को उतारा है, जो कि इलाके में मजबूत पकड़ रखते हैं. बता दें कि इस सीट पर मुख्तार अंसारी को 1996 में पहली बार विधानसभा चुनाव में बसपा के कैंडिडेट के तौर पर जीत मिली थी. इसके बाद 2002 और 2007 में निर्दलीय जीत हासिल की. वहीं, 2012 में कौमी एकता दल का गठन कर चुनाव मैदान में उतरे और चौथी बार विधानसभा पहुंचने में सफल रहे. जबकि 2017 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत मिली. हालांकि इस बार जीत का अंतर 10 हजार से नीचे पहुंच गया.