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अपने बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाते सरकारी स्कूलों में प्राइमरी स्कूल के शिक्षक
मेरठ: बेसिक शिक्षा विभाग पहली से आठवीं कक्षा तक बच्चों को शिक्षा देनें के लिए है, विभाग की जिम्मेदारी है कि उसके आधीन आनें वाले सरकारी स्कूलों में अधिक से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण करें। उन्हें अच्छी शिक्षा मिले, स्कूलों की स्थिति में सुधार हो सके, साथ ही बच्चों को सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं भी मिले। इसके लिए सरकार भी लगातार योजनाएं चला रही है जिसमें सबसे अहम है स्कूल चलो अभियान।
यहां तक तो ठीक है लेकिन सवाल यह उठता है इन स्कूलों के शिक्षक ही अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में शिक्षा देनें से क्यों बचते नजर आते है। जिले में एक भी शिक्षक बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में अपने बच्चे को नहीं पढ़ाना चाहता। इसके पीछे वजह क्या है यह अपने आप में ही बड़ा सवाल है।
पुष्पा यादव, प्राथमिक विद्यालय रजपुरा की प्रधानअध्यापिका का कहना है उनकी नजर में एक भी बेसिक शिक्षक ऐसा नहीं है जो अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में पढ़ा रहा है। अगर शिक्षक अपने बच्चों को भी इन स्कूलों में पढ़ाएं तो काफी हद तक स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधर सकता है।
लेकिन शिक्षक अपने बच्चों को यहां नहीं पढ़ाते है। यदि ऐसा कोई नियम बन जाए कि कम से कम सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा (पहली से पांचवीं तक) तो सरकारी स्कूलों में दिलाएं तो इसमें कोई बुराई नहीं है। साथ ही इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर भी ऊपर उठेगा, जिससे यहां पढ़नें वाले बच्चों को भी निजी स्कूलों के बच्चों की तरह शिक्षा मिल सकेगी।
शशि वर्मा, इटायरा की शिक्षक का मानना है उनकी नजर में भी कोई बेसिक शिक्षा विभाग का टीचर ऐसा नहीं है जो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में शिक्षा दिला रहा है। उनके खुद के बच्चे अब बड़े हो गए है, लेकिन जब वह छोटे थे तब उनकी नौकरी इस विभाग में नहीं लगी थी। उस समय उन्होंने अपनी बेटी को आर्मी स्कूल में पढ़ाया था।
बेसिक शिक्षकों को अपने बच्चों को भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाना चाहिए लेकिन समस्या मीडियम की आती है। सरकारी स्कूलों में सभी अच्छे शिक्षक है, पढ़े लिखे है, इन स्कूलों स्लेबस भी सेम है लेकिन मीडियम की समस्या है। आगे चलकर सभी कंपटीशन अंग्रेजी में ही है तो बच्चों को इसमें समस्या होती है।
गीता, सरधना के एक सरकारी स्कूल की टीचर का कहना है उनकी नजर में भी ऐसा कोई बेसिक शिक्षक नहीं है जो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में शिक्षा दिला रहा हो। प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों की जहां पोस्टिंग है उस जगह से उनका घर काफी दूर है। ऐसे में शिक्षक चाहते है कि उनका बच्चा घर के पास स्थित प्राइमरी स्कूल में शिक्षा ग्रहण करें।
जबकि माध्यमिक स्कूलों में कुछ शिक्षकों के बच्चे पढ़ रहें है। हालांकि अब पहले के मुकाबले सरकारी प्राथमिक स्कूलों में भी शिक्षा का स्तर काफी सुधरा है। ऐसे में आगे चलकर हो सकता है सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को भी इन्हीं स्कूलों में पढ़ाना शुरू कर दें।
बेसिक शिक्षकों को लगाया जाता है दूसरे कामों में
जिलें में बेसिक शिक्षकों की संख्या चार हजार से अधिक है लेकिन इन शिक्षकों को स्कूलों में पढ़ानें के साथ अन्य कामों में भी लगाया जाता है जिससे बेसिक स्कूलों में पढ़नें वाले बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। कुछ शिक्षकों ने पहचान छिपानें की शर्त पर बताया बीएलओ, यूपी बोर्ड की परीक्षाओं, जनगणना, बाल गणना, आॅप्रेशन कायाकल्प जैसे कार्यक्रमों में इनकी ड्यूटी लगा दी जाती है।
इस वजह से लंबे समय तक स्कूलों में शिक्षणकार्य प्रभावित होता है। यह भी एक बड़ी वजह है कि शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ानें से बचते है। माध्यमिक शिक्षा में शिक्षकों पर इतना दबाव नहीं है जितना बेसिक शिक्षा विभाग में है। कई बार तो बेसिक शिक्षा के आधीन आनें वाले स्कूल के सभी शिक्षकों की ड्यूटी दूसरे कार्यो में लगाई जाती है
जिससे स्कूल मे ताला लटक जाता है। ऐसा एक स्कूल हाजिपुर जिसके तीन टीचरों की ड्यूटी दूसरे काम में लगा दी गई और स्कूल में ताला लटक गया। दूसरा माछरा ब्लॉक का है जिसमें सभी शिक्षकों के दूसरे कामों में ड्यूटी लगने के बाद विद्यालय में ताला लटकाया गया।
बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना जरूरी है ऐसा कोई नियम तो नहीं है। लेकिन कुछ समय पहले यह चर्चा हुई थी कि शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएंगे, जिसका विरोध हुआ था। अब यदि ऐसा कोई शिक्षक है जो अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में शिक्षा दिला रहा है तो हम उसे सम्मानित करेंगे।
-सुदर्शन लाल, कार्यकारी बेसिक शिक्षाधिकारी, मेरठ।
सोर्स जनवाडी