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एनजीटी ने यूपी सरकार को लगाई फटकार,साथ ही वाराणसी के दो नदीयों के लिए बनाई पुनरुद्धार समिति
लखनऊ, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहां कि 40 साल बाद भी ठोस कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण में नाकाम साबित हो रहा है ऐसा लगता है कि राज्य के अफसर खुद को कानून से ऊपर मानते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। उसने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है और इसमें ठोस कार्रवाई की जरूरत है।
यूपी निवासी अरविंद कुमार और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मौजूदा नियम बनने के पांच साल बाद और वायु प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम-1981 के 40 साल बाद भी अधिकारी ठोस कचरे का वैज्ञानिक निस्तारण करने में असफल रहे हैं। और एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस एके गोयल की पीठ ने वायु गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले ठोस कचरे के वैज्ञानिक निस्तारण में नाकामी का उल्लेख किया।
वही यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और बिजनौर के जिलाधिकारी को कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया। साथ ही दोनों को ई-मेल के जरिये कार्रवाई रिपोर्ट भी पेश करने का आदेश दिया।पीठ ने कहा कि उसके निर्देश के अनुरूप अगर संतोषजनक कदम नहीं उठाए गए तो वह संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करेगी। एनजीटी ने कहा कि ठोस कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण की योजना शहरी विकास सचिव द्वारा तैयार राज्य नीति के नियम 11 के अनुरूप बनाई जानी चाहिए।
एनजीटी ने वाराणसी में गंगा से जुड़ने वाली दो सहायक नदियों वरुणा और अस्सी के पुनरुद्धार के लिए एक समिति का गठन किया है। एनजीटी ने यह कदम इन दोनों नदियों में बिना शोधित सीवेज का कचरा डालने के मामले में एक याचिका का संज्ञान लेते हुए उठाया। याचिका में कहा गया है कि कचरे के अलावा नदियों में अवैध निर्माण भी हो रहे हैं।एनजीटी पीठ ने इसके लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय निर्मल गंगा मिशन और वाराणसी के जिलाधिकारी की सदस्यता वाली स्वतंत्र निगरानी समिति बनाई है। यह समिति दो हफ्ते के अंदर बैठक कर कार्ययोजना की समीक्षा करेगी। समिति की रिपोर्ट के आधार पर निर्मल गंगा मिशन को 4 अगस्त से पहले कार्रवाई कर रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है।