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- नोएडा में प्राइवेट...
नोएडा में प्राइवेट स्कूल कर रहे मनमानी, शिक्षा के अधिकार संबंधित कानून को लेकर उड़ा रहे सरकार के आदेश की धज्जियां
उत्तरप्रदेश के शो विंडो नोएडा में सरकार के आदेश शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं प्राइवेट स्कूल। राइट टू एजुकेशन के तहत प्राइवेट स्कूल में प्रवेश लेने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए जिले के निजी स्कूलों ने बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है लाटरी में नाम आने के बाद भी उनको एडमिशन देने से मना कर रहे हैं। जिलाधिकारी ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए बेसिक शिक्षा अधिकारी को जांच के आदेश दिए है और 1 हफ्ते के अंदर स्कूलों से जवाब मांगा है।
गौतमबुद्ध नगर में कई प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी पर उतारू हो गए हैं और शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब बच्चों के लिए रिज़र्व किये गए 25प्रतिशत के कोटे में बच्चों को एडमिशन देने को तैयार नही है। जब बच्चों के परिवारीजन स्कूल जाते हैं तो उनको कुछ न कुछ बहाना बनाकर वापस भेज दिया जाता है। इस से गरीब बच्चे और उनके परिवारीजन अपने बच्चों के एडमिशन के लिए दर दर की ठोकर खाते हुए घूम रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है
मामले का संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने बेसिक शिक्षा अधिकारी को निर्देशित किया है और नोटिस भेजकर स्कूलों से जवाब मांगा है। तकरीबन 30 से अधिक स्कूलों को इस मामले में नोटिस दिया गया है। बेसिक शिक्षा अधिकारी ने खण्ड शिक्षा अधिकारी बिसरख वेद प्रकाश गुप्ता के नेतृत्व में 6 सदस्यीय टीम बनाई है जो स्कूलों में जा जा कर स्कूल प्रबंधन से बात कर रहे हैं और मामले की जांच कर रहे हैं।
आज सेक्टर 132 के जेनेसिस ग्लोबल पब्लिक स्कूल गयी जांच कमिटी वहां जाकर उन्होंने प्रबंध समिति से मुलाक़ात की और बताया कि स्कूल का कहना है कि अब हमारे स्कूल का स्टेटस माइनॉरिटी में बदल गया है इसलिए हम शिक्षा के अधिकार कानून के इस नियम को मानने के लिए बाध्य नही हैं। इसके लिए कमिटी ने स्कूल प्रबंधन से ज़रूरी कागज़ात मांगे है । हालांकि जानकारी के मुताबिक जब स्कूल ने मान्यता के लिए अप्लाई किया था तब उन्होंने 25 प्रतिशत कोटा देने की बात कही थी।
अब सवाल ये है कि शिक्षा के अधिकार के तहत सरकार ने गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए प्राइवेट स्कूल में 25 प्रतिशत का कोटा तय किया लेकिन प्राइवेट स्कूल कुछ न कुछ बहाना बनाकर बच्चों को एडमिशन देने से मना कर देते हैं। ऐसे में गरीब बच्चों के शिक्षा के अधिकार का क्या होगा वो भगवान भरोसे है।