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नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बिल्डरों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लगा बड़ा झटका!
नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बिल्डरों को सुप्रीम कोर्ट के सोमवार को आए फैसले से बड़ा झटका लगा है। दरअसल, उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में बिल्डरों को पट्टे पर दी गई जमीन की बकाया राशि पर वसूले जाने वाले 8% की ब्याज दर सीमा हटाने का फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों की तरफ से दायर उस अर्जी को स्वीकार कर लिया जिसमें उच्चतम न्यायालय के 10 जून, 2020 के आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी।
गौरतलब है कि बिल्डर और अथॉरिटी के बीच समझौते की शर्तों के अनुसार, जमीन के बकाये भुगतान के लिए ब्याज की दर 15-23% की सीमा में आती है, लेकिन शीर्ष अदालत ने जून 2020 में आम्रपाली मामले की सुनवाई करते हुए इस पर 8% का कैप लगा दिया था। इस मामले में प्राधिकरणों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र कुमार ने सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि अधिकतम ब्याज दर की सीमा तय करने का आदेश वापस नहीं लिए जाने पर दोनों विकास प्राधिकरणों को 7,500 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो सकता है। इस पर कोर्ट ने प्राधिकरण के पक्ष में आदेश दिया। हालांकि, इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए नोएडा, ग्रेटर नोएडा के डेवलपर्स का कहना है कि इससे हजारों फ्लैट अटक जाएंगे। बहुत सारे डेवलपर्स को मजबूरी में एनसीएलटी का रुख करना होगा।
अधूरे प्रोजेक्ट पूरा करने में आएगी पेरशानी
रियल एस्टेट कंपनी गौड़ ग्रुप और क्रेडाई-एनसीआर के अध्यक्ष मनोज गौड़ ने इंडिया टीवी को बताया कि नोएडा अथॉरिटी जमीन के बकाये पर ब्याज 12% + 3% (अर्ध-वार्षिक चक्रवृद्धि) वसूलता है जो प्रभावी रूप से 22-24% तक पहुंच जाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से डेवलपर्स पर बहुत बड़ा वित्तीय बोझ बढ़ेगा क्योंकि एकदम से ब्याज का बोझ करीब तीन गुना बढ़ जाएगा। इसके फलस्वरूप नोएडा, ग्रेटर नोएडा में हजारों प्रोजेक्ट में अटके फ्लैट का काम पूरा करना और मुश्किल हो जाएगा। यानी इस फैसले से न सिर्फ डेवलपर्स की परेशानी बढ़ेगी बल्कि लाखों घर खरीदारों को उनके फ्लैट की चाबी मिलने में मुश्किल आ सकती है। बहुत सारे डेवलपर्स मजबूरी में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की ओर रुख करने को मजबूर होंगे। उन्होंने आगे कहा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को हरियाणा सरकार का मॉडल अपनानी चाहिए। वहां की सरकार ने बकाया राशि का 50 फीसदी तक भुगतान करने वाले डेवलपर्स को ब्याज में 75 फीसदी तक सब्सिडी दे रही है। ऐसा यहां भी करने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो आम्रपाली और जेपी जैसे कई बड़े डेवलपर्स दिवालिया हो सकते हैं।
अटके प्रोजेक्ट को रियायत देने की जरूरत
रियल एस्टेट मामलों के जानकार प्रदीप के. मिश्रा ने बताया कि इस फैसले को सभी बिल्डर पर एक समान तरीके से लागू नहीं करना चाहिए। इससे रियल एस्टेट की स्थिति और खराब हो सकती है। अथॉरिटी को चाहिए कि जो प्रोजेक्ट बनकर तैयार और बिक चुके हैं, फिर भी बिल्डर बकाया का भुगतान नहीं कर रहा है, उस पर सख्ती बरते। कई डेवलपर्स जानबूझकर पैसा नहीं देना चाहते हैं। इससे अथॉरिटी को नुकसान हो रहा है। हालांकि, जो प्रोजेक्ट किसी कारण से अटके हुए हैं, बनकर तैयार होने में समय है, उन सबों को रियायत देने की जरूरत है। ऐसा करने से लाखों घर खरीदारों को उनके घर देने में मदद मिलेगी। वहीं, एक समान तरीके से इसको लागू करने से इस सेक्टर की स्थिति गंभीर हो सकती है।
1 लाख करोड़ के फ्लैट अटके हुए
कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) के अनुसार, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में 1 लाख करोड़ रुपये की 190,000 इकाइयां फंसी हुई हैं। अकेले ग्रेटर नोएडा में, कम से कम 36 रियल एस्टेट परियोजनाएं दिवाला कार्यवाही का सामना कर रही हैं। इससे 50,000 घर खरीदार प्रभावित हुए हैं।