नोएडा

जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने सीएम और पीएम को चिट्ठी, क्या प्राइवेट अस्पतालों ने अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन किया?

जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने सीएम और पीएम को चिट्ठी, क्या प्राइवेट अस्पतालों ने अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन किया?
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ग्रेटर नोएडा: जेवर विधायक ठाकुर धीरेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, पत्र में प्राइवेट अस्पतालों के सीएसआर फण्ड की मॉनिटरिंग हेतु कमेटी बनाने के लिए किया निवेदन, प्राइवेट अस्पतालों को कोरोना काल मे सरकार व जिला प्रशासन ने उपलब्ध कराए है संसाधन, प्राइवेट अस्पतालों द्वारा सीएसआर फण्ड का उपयोग कहाँ किया जा रहा है इसकी नही है कोई जानकारी, निजी अस्पतालों को कर्तव्यबोध कराने के लिए की सरकार से सिफारिश, निजी अस्पताल गरीब वर्ग के मजदूरों को भी उपचार प्रदान कराने के लिए जमा करवाते है 50 हज़ार से 2 लाख रुपये, गरीब वर्ग के शोषण को लेकर उच्चस्तरीय कमेटी बना अस्पतालो का ऑडिट कराने के लिए लिखा पत्र।

विधायक ने लिखा पत्र

महोदय,

कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी एक ऐसा शब्द है जो सुनने में बेहद अच्छा लगता है और नियमों के मुताबिक अधिकांश निजी कंपनियां व निजी अस्पताल अपनी आमदनी का लगभग 2 फ़ीसदी सामाजिक दायित्व का निर्वहन करने हेतु, खर्च करने की पॉलिसी बनाते हैं, लेकिन व्यवहार में कंपनियां क्या अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन उस मकसद के लिए कर रही हैं, जो उनके द्वारा तय किए जाते हैं या केवल यह दिखावा मात्र होता है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम सभी को इस विषय में निजी कंपनियां व निजी अस्पतालों द्वारा निर्धारित किए जाने वाले सामाजिक दायित्वों को नियमों के दायरे में लाना चाहिए | क्या यह अजीब नहीं लगता कि जिन किसानों की जमीन पर यह निजी अस्पताल बने होते हैं जरूरत पड़ने पर बीमारी के समय उन्हीं किसानों को उन अस्पतालों में दाखिला नहीं मिल पाता | उस परिवार के लोग उस वक्त क्या सोचते होंगे यह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता | आज कोरोना जैसी भीषण महामारी ने पूरी मानव सभ्यता के लिए एक संकट खड़ा किया है और अब जरूरी हो गया है कि भविष्य में हम इस बीमारी को कैसे रोकें ? इस दिशा में जन जागरण के साथ-साथ निजी अस्पतालों के नज़रिए को भी बदलने का प्रयास करें |

यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि देश के विकास और संसाधनों को विकसित करने में इन निजी कंपनियों व अस्पतालों के योगदान को दरकिनार नहीं किया जा सकता और यह भी कहना समीचीन होगा कि जो कंपनियां अपने जीवन भर की कमाई से एक उद्योग को खड़ा करने में पूंजी निवेश करती हैं ,उनके हित भी सुरक्षित रहें, लेकिन मेरा आशय केवल इतना है कि इनके द्वारा निर्धरित किये गए , सामाजिक दायित्व ,देश के उन करोड़ों लोगों के काम आयें , जो सही मायने में इसके पात्र हैं |

जहां तक मैंने बड़े-बड़े निजी अस्पतालों की कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के मकसद को जाना है, उनका सार मुख्यत: तीन बिंदुओं से परिलक्षित होता है :-

Create a meaningful and lasting impact on the communities in remote areas by helping

them transcend barriers of socio-economic development.

Extending Comprehensive Integrated Healthcare Services to the community

Develop the skills of the youth through high quality education and research in healthcare

services

सरकार को उपरोक्त तीनों बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित करना चाहिए कि क्या सही मायने में जिस मकसद के लिए निजी अस्पताल कागजों में अपने सोशल दायित्व के लिए नियम बनाते हैं, वह नियम सही से लागू किए जा रहे हैं ? इसके लिए एक मॉनिटरिंग व्यवस्था सरकार को बनानी चाहिए |

उदाहरण के लिए मैं, अपने जनपद गौतम बुद्ध नगर और प्रदेश के कुछ अस्पताल के वह चर्चे आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं, जो जनता के माध्यम से मुझे ज्ञात हुए | जनपद गौतम बुद्ध नगर में निजी अस्पतालों को कोरोना काल में सरकार व् प्रशासनिक प्रयास से अनेकों मेडिकल उपकरण और सुविधाएँ इसलिए उपलब्ध कराई गई थीं , ताकि वह जरूरत पर जनता के काम आ सकें, लेकिन अनेकों उदाहरण ऐसे हैं जहां निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन के लिए भी जमानत राशि गरीब लोगों से जमा कराई,गई ,क्या कोई ऐसा उदाहरण भी इन अस्पतालों ने प्रस्तुत किया, जहां किसी दिहाड़ी मजदूर का इलाज हुआ हो जिसकी आमदनी 6 हज़ार ₹ प्रति माह से भी कम हो, मुझे नहीं लगता कि ऐसा कोई प्रयास इन निजी अस्पतालों के द्वारा इस आपदा के समय किया गया हो, क्योंकि इनके यहां तो दाखिला ही 50000 से ₹200000 के बीच में जमा कराने के बाद हो पाता है | इतना ही नहीं अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध होते हुए भी इन निजी अस्पतालों ने ऐसा संदेश बाहर प्रसारित किया जिससे जनता में अफरा तफरी का माहौल बना और हर जगह कहा जाने लगा की ऑक्सीजन की भारी कमी है,| यद्यपि जनपद के मूल निवासी इन अस्पतालों में अपना इलाज करा ही नहीं पाए , उन्हें हरियाणा प्रांत या फिर आसपास के अन्य जनपदों में अपनी जान बचाने के लिए शरण लेनी पड़ी ,क्योंकि निजी अस्पताल सिर्फ उन्हीं मरीजों पर ध्यान आकृष्ट किए हुए थे, जिनकी जेब पैसों से भरी हुई हो | ऐसे समय पर इन अस्पतालों के इस द्रष्टिकोण ने ,मुझे आपसे इनके सामाजिक दायित्वों के निर्धारण किए जाने की बात कहने के लिए मजबूर किया है | हम यह नहीं कहते इन अस्पतालों पर सरकार सख्त कार्रवाई करें लेकिन इतना अवश्य कहेंगे कि इनकी दूषित मानसिक सोच में बदलाव लाए जाने के लिए इनपर सख्त नजर अवश्य रखे |

निम्नलिखित बिंदु मैंने देश के एक नामचीन अस्पताल के उन बायोलॉज से लिए हैं, जो उनकी कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के लिए तय किए हैं :-

In consultation with the local community, the Company will design and effectively

implement projects in areas such as healthcare, rural development, education and skills

development

Promote preventive healthcare to the most remote corners of the country

Making quality healthcare accessible and affordable for all

Develop and implement the education, healthcare, water and sanitation, infrastructure development and elderly care projects for sustainable socio-economic development of the rural areas

Develop the skills of the youth by setting up educational institutions, improving

infrastructure of the existing institutes, providing scholarships for deserving students and

promoting research in the healthcare services sector.

मुझे नहीं लगता कि उपरोक्त बिंदुओं पर मेरे जनपद और प्रदेश में कोई निजी अस्पताल अमल कर रहा हो ?अतः जरूरत है इनका सामाजिक दायित्व निर्धारण किए जाने का और उस पर प्रभावी पर्यवेक्षण का | साथ ही मैं यह भी प्रार्थना करता हूं कि जिस तरीके से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निजी अस्पतालों द्वारा गरीब और लाचार जनता का इस आपदा के समय शोषण किया गया है, उस पर एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाते हुए इन सभी निजी अस्पतालों का ऑडिट होना चाहिए और यह निर्धारण होना चाहिए कि भविष्य में यह अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाते हुए , समाज के प्रति अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करें और नैतिकता को भी समाज के सम्मुख रखें | प्रदेश व् देश में अनेकों ऐसे सरकारी अस्पताल हैं जहां पर्याप्त मात्रा में इमारत बनी हुई है, लेकिन जरूरत है उसमें नर्सिंग व अन्य मेडिकल स्टाफ की | क्या यह निजी अस्पताल उन अस्पतालों को गोद लेकर उनका संचालन नहीं कर सकते ? जिनसे देश व प्रदेश के करोड़ों लोगों का भला हो सकता है | निश्चित तौर से इन निजी अस्पतालों को सरकार की मदद के लिए आगे आना चाहिए | आशा है आप मेरी भावनाओं से अवगत हो गए होंगे और फिर मैं तो केवल लिख रहा हूं यह जन भावनाएं हैं जिन्हें मैं सरकार और व्यवस्था तक पहुंचाना अपना कर्तव्य समझता हूं |

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