नोएडा

भट्टा पारसौल आंदोलन: किसानों पर दर्ज दो मुकदमे वापस लेगी योगी सरकार

Arun Mishra
27 Dec 2020 5:13 AM GMT
भट्टा पारसौल आंदोलन: किसानों पर दर्ज दो मुकदमे वापस लेगी योगी सरकार
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जिन मुकदमों को वापस लेने की अनुमति राज्यपाल ने दी है वह दनकौर कोतवाली में दर्ज थे. इन्हीं मुकदमों में तीन दर्जन से अधिक किसान आरोपी बनाए गए थे.

नोएडा : गौतम बुद्ध नगर (Noida) के भट्टा पारसौल (Bhatta Parsaul) गांव में 7 मई 2011 को जमीन अधिग्रहण के विरोध में पुलिस और किसानों के बीच हिंसक संघर्ष में दो किसानों और दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. इसके बाद किसानों पर दो मुकदमे दर्ज किए गए थे, जिन्हें यूपी की योगी सरकार (Yogi Government) ने वापस ले लिया है. जेवर से बीजेपी विधायक धीरेंद्र सिंह की पहल पर प्रदेश सरकार ने राज्यपाल से मुकदमा वापसी सिफारिश की थी. राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने दो मुकदमे वापस लेने की अनुमति दे दी है. जिन मुकदमों को वापस लेने की अनुमति राज्यपाल ने दी है वह दनकौर कोतवाली में दर्ज थे. इन्हीं मुकदमों में तीन दर्जन से अधिक किसान आरोपी बनाए गए थे.

जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने बताया कि सरकार ने भट्टा पारसौल आंदोलन से जुड़े किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमों में से दो मामले वापस ले लिए हैं. इनमें एक मुकदमा अपराध संख्या 96/2011 है, जो दनकौर थाने में आईपीसी की धारा 147, 394, 308, 364, 325 और 323 के तहत दर्ज किया गया था. यह मुकदमा पीएसी की कंपनी पर हमला करने और उनके हथियार लूटने के आरोप में दर्ज किया गया था. दूसरा मुकदमा अपराध संख्या 251/2011 है। यह 25 आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

इनके खिलाफ था मुकदमा

उन्होंने बताया कि पहला मुकदमा किसान नेता मनवीर तेवतिया सहित 30 अन्य किसानों के खिलाफ दर्ज था. दूसरा मुकदमा प्रेमवीर सहित अन्य किसानों के खिलाफ दर्ज किया गया था. दोनों मुकदमों को वापस लेने के लिए राज्य सरकार के विधि विभाग ने प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा था. जिसे राज्यपाल ने अनुमति दे दी है. वापस होने से तीन गांवों के किसानों को बड़ी राहत मिलेगी.

यह था मामला

गौरतलब है कि यमुना एक्सप्रेसवे के लिए चल रहे भूमि अधिग्रहण को लेकर किसान और जिला प्रशासन आमने-सामने आ गए थे. जिसके बाद 7 मई 2011 को पुलिस और किसानों के बीच हिंसक झड़प हुई. इस से हुई फायरिंग में 2 पुलिसकर्मी और 2 किसान मारे गए थे. जिसके बाद किसानों के खिलाफ लूट, डकैती, अपहरण, बलवा, आगजनी, अवैध हथियारों का उपयोग, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने, सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने, हत्या का प्रयास और हत्या जैसे आरोपों में 20 मुकदमे दर्ज किए गए थे. इनमें से 13 मुकदमे तत्कालीन सरकार ने वापस ले लिए थे.

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