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देवहा नदी(पीलीभीत) : अपने अस्तित्व से करती, संघर्ष...
फोटो - संतोष गंगवार
फोटो - संतोष गंगवार
ये तस्वीरेंं हैं "नदियों का जंक्शन" कहलाने वाले पीलीभीत में देवहा नदी की, जो यहां की एक मुख्य नदी है। जिसका उद्गम 'काली नदी' से माना जाता है। गौरतलब है पीलीभीत को "छोटा पंजाब" के उपनाम से भी जानते हैं इसके पीछे एक कारण है कि जब पाकिस्तान में सिक्ख भाईयो पर अत्याचार किया गया था, तब पाकिस्तान से आए बड़ी मात्रा में सिक्ख शरणार्थियों को यहीं बसाया गया था।
आज से करीब 3 वर्ष पहले सन् 2018 में बरेली क्षेत्र( जिसे हिन्दी भाषा में रूहेलखंड और अंग्रेजी में Rohilkhand के नाम से जानते हैं इसके पीछे भी एक इतिहास है, यदि मांग हुई तो अगली स्टोरी में इसे भी कवर किया जाएगा ) में रहने का मौका मिला था, तभी एक स्थानीय निवासी संतोष गंगवार के साथ देवहा नदी पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। और देवहा नदी की दशा देखकर दिलोदिमाग कुछ इस तरह व्यथित हुआ।
जो मैंने प्रत्यक्ष देखा ...
कारण, आज यह नदी घोर संकट में है। पीलीभीत उत्तर प्रदेश का वो जिला है जो हिमालय की तलहटी में बसा है, जिसे 'नदियों की जननी' भी कहा जाता है और यहां से गोमती नदी और शारदा नहर आदि प्रमुख रूप से निकलती है।
पीलीभीत जिले में अब से 10 साल पहले लगभग 5 तालाब थे जिस पर माफियाओं की ऐसी नजर लगी कि उन्होंने समतल करके वहां मकान खड़े कर दिए और आज स्थिति यह है, तालाब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
यहां सबसे बड़ी समस्या शहरीकरण की है जिससे अनियंत्रित कचरा नदियों में तथा तालाबों में फेंका जा रहा है जिससे सुबह का ऐन्वायरमेंट और जल प्रदूषित होता है जिससे वहां के पहनने वाले कपड़े से जलीय जीव की मृत्यु हो जाती है और लोगों की आजीविका पर असर पड़ता है।
तमाम तालाबों में प्रदूषित पानी और कचरा फेंका जा रहा है। शहरी कचरे के कारण आज हालात ये हो गए हैं कि तालाब बढ़ते जा रहे हैं वही भौगोलिक दृष्टि से तालाब तथा नदियां हमारे प्राकृतिक जल स्रोत माने जाते हैं जिसमें वर्षा का जल एकत्र होकर अंदर पानी के लेवल को बनाए रखता है जिससे हमें मीठा पानी प्राप्त होता है लेकिन होता ये है, जैसे-जैसे तालाब बढ़ते जाते हैं और उसके बाद में वहां 'मल्टी स्टोरी बिल्डिंग' खड़ी कर दी जाती है।
इतिहास गवाह है ...
नदी में बाढ़ की समस्या आम बनी रहते हैं बरसात के मौसम में जलस्तर बढ़ने से तट के किनारे बसे गांव में जल भरने से रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो जाती है यहां सन् 2013 में आई भयंकर बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया था जिसके कारण लोगो को जान-माल का खतरा मोल लेना पड़ा था।
लेकिन हैरानी की बात है, इन लोगों के जख्मों पर ना तो शासन ने और ना ही प्रशासन ने कोई मरहम लगाया था। हालांकि शासन ने अल्पलकालिक सहायता देकर इन लोगों को झूठा गवाह बनाने का काम तो किया। लेकिन राहत पैकेज की नोक भर भी नही मिली। खैर बाढ़ आने से नदी का जल और अधिक प्रदूषित हुआ जिसका परिणाम और वीभत्स हुआ।
कई दशको से सारे मछुआरों की आजीविका इसी से चलती थी प्रदूषण बढ़ने से जीवो के समाप्त होने से लोगों की आजीविका समाप्त हो गई है और लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं या कुछ कगार पर हैं।
किस्से और भी हैं...
बात 2016 की है जब उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश के प्रकोप से देवहा नदी पर बना पुल धराशायी हो गया था। इसके साथ ही पुल की गुणवत्ता पर सवाल भी उठे थे। जिसकी जिम्मेदारी सूबे के समाजवादी पार्टी के पूर्व कैबिनेट मंत्री हाजी रियाज अहमद ने ली थी ।
इस पुल का निर्माण तहसील अमरिया के भंगा मोहम्मदगंज गांव में हुआ था। सपा शासनकाल में लगभग 200 मीटर के इस पुल का निमार्ण कराया गया था, जिसका शिलान्यास किया था, तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने।
लेकिन पिछले कुछ बरसों में औद्योगिक विकास के कारण नदियों में प्रदूषण तेजी से बढ़ा है और जिससे नदियों की जैव विविधता बिल्कुल समाप्त हो चुकी है सरकार के तमाम कानूनों के बाद नौकरशाही के चलते कोई योजना लागू नहीं हो पाई जिसके कारण नदियां अपना अस्तित्व खो चुकी हैं।
कुछ सहायक नदियां जो बड़ी नदियों में आकर मिलती है वही उन्हें गांव कस्बों की 'जीवन रेखा' कहा जाता है उनमें भी प्रदूषण तेजी से बढ़ा है।
लेकिन सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद जिला प्रशासन ने इसे बचाने के लिए कोई काम नहीं किया है बल्कि इसमें दिन-रात खनन होता रहता है खनन माफिया क्यों खनन कर रहे हैं यह सवाल मेरा और आप सबका प्रशासन से है क्या प्रशासन को इसका संज्ञान नहीं लेना चाहिए ? नदियों और इनमें रहने वाले जीवों के संरक्षण की जिम्मेदारी किसकी है ? कुछ समय पहले खबर थी, देवहा नदी (निकट ग्राम पंचायत बराह मोहब्बतपुर ) में किसी ने जहर घोला था, जिसके कारण निजी स्वार्थवश, लाखो जीवों की म्रत्यु हो गई थी।
आज हालात ये हैं नदी में बाढ़ आने से जमीन में कटाव होने के कारण किसानों की जमीन बाढ़ में चली जाती है जिससे किसान भूमिहीन होते जा रहे हैं और साथ में गांव के उजड़ने से पलायन तेजी से बढ़ रहा है जिससे आंतरिक अशांति की चुनौतियां बन रही है।
वही बड़वानी से ग्रामीण और शहरी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिससे लोगों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है। शहरी कचरा नदी में फेंका जाना और खनन जिससे नदी की जैव विविधता ध्वस्त हो गई है आज शहरी औद्योगिक प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि जल बिल्कुल दूषित हो चुका है फलस्वरूप आज नदी अपने अस्तित्व से संघर्ष कर रही हैं...
- प्रत्यक्ष मिश्रा (पत्रकार), संतोष गंगवार( स्थानीय निवासी)