प्रयागराज

एक और खुशी मेडिकल माफिया की क्रूरता का शिकार, मासूम की दर्दनाक मौत

Shiv Kumar Mishra
8 March 2021 7:14 AM GMT
एक और खुशी मेडिकल माफिया की क्रूरता का शिकार, मासूम की दर्दनाक मौत
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संजय विस्फोट

एक और खुशी मेडिकल माफिया की क्रूरता का शिकार हो गयी। एक तीन साल की बच्ची जिसके पेट में हल्का दर्द था उसका इलाज कराने परिवार गलती से एक ऊंची और भव्य इमारत में घुस गया। उसे क्या पता था कि करोड़ों रूपये के निवेश से बड़े और आलीशान अस्पताल बनानेवाले गिरोह किस तरह एक सामान्य से इन्फेक्शन को बिगाड़कर लाखों कमाते हैं।

खुशी भी इन्हीं मुनाफाखोर मेडिकल माफिया का शिकार हो गयी। खुशी नामक उस लड़की को सामान्य सा पेट दर्द था। प्रयागराज के युनाइटेड अस्पताल में उसे ले गये तो भर्ती कर लिया। मेडिकल माफिया इसी तरह से शिकार को फंसाता है। कुछ दिनों तक केस को बिगाड़ा और फिर उसका आपरेशन कर दिया। आपरेशन के नाम पर सवा लाख रूपये ले लिया। लेकिन माफिया की कारगुजारियां अभी इतने पर समाप्त नहीं हुई। आपरेशन के बाद पेट में मवाद बनने लगा। माफिया ने दूसरा आपरेशन करने के लिए कहा और खुशी के बाप से पांच लाख रूपये मांगे। खुशी के बाप ने ना तो नहीं ही किया होगा। लेकिन समय पर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया। एकदम से कोई सामान्य व्यक्ति पांच लाख कहां से लायेगा? इधर डॉक्टरों ने पेट फाड़कर बच्ची को पिता के हवाले कर दिया। बोला जहां ले जाना है ले जाओ। पैसा नहीं तो इलाज नहीं।

जाहिर सी बात है उसी फटे पेट के साथ वो अपनी अबोध बच्ची को लेकर एक दो अस्पताल गया लेकिन ऐसी हालत में कौन हाथ लगायेगा? परिणाम बच्ची की मौत हो गयी।

यही है हमारे तथाकथित मेडिकल इंडस्ट्री के बूम करने की कड़वी सच्चाई। प्राइवेट अस्पतालों ने अपने भारी भरकम निवेश से इसे इंडस्ट्री नहीं, माफिया इंडस्ट्री में परिवर्तित कर दिया है जहां वेन्टिलेटर पर लाश को रखकर पैसे उगाहे जाते हैं। क्या दिल्ली और क्या प्रयागराज। सब तरफ वही खेल चल रहा है। सरकारें बेबश हैं। वो कोई सख्त कार्रवाई इसलिए नहीं कर पातीं क्योंकि ये अपने निवेश के नाम पर ब्लैकमेल करते हैं। बाकी जो सिस्टम है उसे पैसे से खरीद लेते हैं। जब हर कोई पैसे पर बिक रहा है तो ऐसे माफिया मंहगे वकील, मंहगे पीआआर को हायर करके अपनी कालिख धो लेते हैं और फिर से उसी उगाही में लग जाते हैं। युनाइटेड अस्पताल का मालिक गुलाटी परिवार भी ऐसा ही कुछ करेगा और पाक साफ बच जाएगा।

लेकिन भारत में निजीकरण की राह इतनी आसान नहीं है। ये राह ऐसे असंख्य गुलाटियों से भरी पड़ी है जिनके लिए शिक्षा भी धंधा है और चिकित्सा भी। इन धंधेबाजों से कम से कम खाद्य, चिकित्सा और शिक्षा को कैसे बचाया जाए इसके लिए सख्त सरकारी इंतजाम की जरूरत है। वरना न जाने कितनी खुशियां इन मुनाफाखोरों के वहशी पंजों का शिकार होती रहेंगी।

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