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अनुदेशकों के नवीनीकरण के मामले में हाई कोर्ट ने सरकार से किया जवाब तलब
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अंशकालिक अनुदेशकों के नवीनीकरण के संबंध में राज्य सरकार द्वारा जारी शासनादेश दिनांक 21.3.2023 के खंड IV को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की एकल पीठ ने आगरा के शैलेन्द्र सिंह और 33 अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
याचीगण के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि वे सभी बेसिक शिक्षा बोर्ड, यूपी द्वारा संचालित उच्च प्राथमिक विद्यालयों में अंशकालिक प्रशिक्षक के पदों पर काम कर रहे हैं। शासनादेश में यह प्रावधान है कि प्रथम चरण में अंशकालिक अनुदेशकों के अनुबंध का नवीनीकरण केवल उन्हीं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में किया जाएगा जहां छात्रों की संख्या 100 से अधिक है और जहां पहले से ही अंशकालिक अनुदेशक कार्यरत हैं वहां शर्त यह है कि उक्त नवीनीकरण रिक्त पदों के सापेक्ष किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने 'बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009' से जुड़ी तीसरी अनुसूची की ओर कोर्ट का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि उक्त अनुसूची में यह प्रावधान है कि सभी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या 100 से अधिक होने पर अनिवार्य रूप से कला शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा एवं कार्य शिक्षा विषय के लिए अंशकालिक अनुदेशकों की नियुक्ति की जानी है। इसके अलावा मुख्य रूप से अधिवक्ता ने यह भी कहा कि 2009 के उपरोक्त अधिनियम का अत्यधिक प्रभाव है और इसलिए यह राज्य सरकार पर बाध्यकारी है।
यह भी तर्क दिया गया कि हालांकि 100 से अधिक छात्रों की संख्या वाले प्रत्येक उच्च प्राथमिक विद्यालय में याचीगण की तरह अंशकालिक अनुदेशकों की नियुक्ति की जानी है, लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा करने के बजाय मौजूदा अंशकालिक अनुदेशकों का नवीनीकरण करते हुए निर्णय लिया गया कि नवीनीकरण केवल उन उच्च प्राथमिक विद्यालयों में किया जाएगा जहां 100 से अधिक छात्र हैं और जहां अंशकालिक अनुदेशक कार्यरत हैं और पद रिक्त हैं।
कोर्ट के समक्ष अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि यदि राज्य सरकार को दिनांक 21.03.2023 के सरकारी आदेश में निहित उपरोक्त नीति को लागू करने की अनुमति दी जाती है तो याचीगण जैसे अधिकांश अंशकालिक अनुदेशक का कार्यकाल नवीनीकृत नहीं हो पाएगा, जो 2009 के अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। अंत में कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकारी अधिवक्ता को इस संबंध में सरकार से निर्देश प्राप्त करने का आदेश दिया है। वर्तमान याचिका की अगली सुनवाई 12 जुलाई 2023 को सूचीबद्ध किया गया है।