प्रयागराज

खुद का पिंडदान कर बनते हैं 'नागा साधु' शरीर पर लगाते हैं राख, कुछ ऐसी है इनकी रहस्यमयी दुनिया

Special Coverage News
15 Jan 2019 9:44 AM GMT
खुद का पिंडदान कर बनते हैं नागा साधु शरीर पर लगाते हैं राख, कुछ ऐसी है इनकी रहस्यमयी दुनिया
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आइए जानें, कैसे बनते हैं नागा साधु और कैसा होता है इनका जीवन?

प्रयागराज : आज मकर संक्रांति के पर्व से प्रयागराज में कुंभ का आगाज हो चुका है. मकर संक्रांति के पहले शाही स्नान को देखकर दुनियाभर के लोगों की आंखें थमी रह गईं. लेकिन शाही स्नान के अलावा इस मेले में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र नागा साधु होते हैं. नागा साधुओं का जीवन सभी साधुओं की तुलना में सबसे ज्यादा कठिन होता है. इनका संबंध शैव परंपरा की स्थापना से माना जाता है.

आइए जानें, कैसे बनते हैं नागा साधु और कैसा होता है इनका जीवन -

13 अखाड़ों में से बनाए जाते हैं नागा साधु-

कुंभ में शामिल होने वाले 13 अखाड़ों में से सबसे ज्यादा नागा साधु जूना अखाड़े से बनाए जाते हैं. नागा साधु बनाने से पहले उन्हें कई परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है. उनकी और उनके पूरे परिवार की जांच की जाती है. उन्हें कई सालों तक अपने गुरुओं की सेवा करनी पड़ती है. साथ ही अपनी इच्छाओं को त्यागना पड़ता है.



कैसे बनते है नागा साधु-

इतिहास के पन्नों में नागा साधुओं का अस्तित्व सबसे पुराना है. नागा साधु बनने के लिए महाकुंभ के दौरान ही प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इसके लिए उन्हें ब्रह्मचर्य की परीक्षा देनी पड़ती है. इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक का समय लग जाता है. ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास करने के बाद व्यक्ति को महापुरुष का दर्जा दिया जाता है. उनके लिए पांच गुरु भगवान शिव, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश निर्धारित किए जाते हैं. इसके बाद नागाओं के बाल कटवाए जाते है. कुंभ के दौरान इन लोगों को गंगा नंदी में 108 डुबकियां भी लगानी पड़ती हैं.




महापुरुष के बाद ऐसे बनते हैं अवधूत-

महापुरुष के बाद ही नागाओं की अवधूत बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. उन्हें स्वयं का श्राद्ध करके अपना पिंडदान करना पड़ता है. इस दौरान साधु बनने वाले लोगों को पूरे 24 घंटे तक बिना कपड़ों के अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा रहना पड़ता है. परीक्षाओं में सफल होने के बाद ही उन्हें नागा साधु बनाया जाता है.



किन स्थानों पर बनाए जाते हैं नागा साधु-

कुंभ का आयोजन हरिद्वार में गंगा, उज्जैन की शिप्रा, नासिक की गोदावरी और इलाहाबाद में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है, आदि चार पवित्र स्थानों पर होता है. इसलिए नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी इन्हीं चार जगहों पर होती है. मान्यता है कि इन्हीं चार जगहों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं. तब से आज तक कुंभ का आयोजन इन्हीं चार जगहों पर किया जाता है.

नागा साधुओं के नाम-

अलग-अलग स्थानों पर नागा साधुओं की दीक्षा लेने वाले साधुओं को अलग-अलग नाम से जाता है.

- इलाहाबाद, प्रयागराज में दीक्षा लेने वालों को 'नागा' कहते हैं.

- हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को 'बर्फानी नागा' कहा जाता है.

- उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को 'खूनी नागा' कहते हैं.

- नासिक में दीक्षा लेने वालों को 'खिचड़िया नागा' कहते हैं.




शरीर पर लगाते हैं राख-

नागा साधु बनने के बाद सभी अपने शरीर पर किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके लगाते हैं. अगर मुर्दे की राख उपलब्ध ना हो तो हवन की राख को लगाते हैं.

जमीन पर सोते हैं-

नागा साधु गले व हाथों में रुद्राक्ष और फूलों की माला धारण करते हैं. नागा साधुओं को सिर्फ जमीन पर सोने की अनुमति होती है. इसके लिए वह गद्दे का भी उपयोग नहीं कर सकते हैं. नागा साधु बनने के बाद उन्हें हर नियम का पालन करना अनिवार्य होता है.

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