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अपने प्राइवेट पार्ट से 150 किलों की कार खींच लेते हैं ये नागा साधु बने कुंभ में चर्चा का विषय
प्रयागराज कुंभ में जनसैलाब के बीच बाबाओं की विविधता आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनी हुई है. बाबाओं के अलग-अलग रूप यहां लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. बाबाओं का हठ योग और उनका संकल्प देख लोग हैरान हो रहे हैं. किसी बाबा ने राम मंदिर के लिए संकल्प लिया है तो कोई बाबा हजारों रुद्राक्ष की माला को धारण करके सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं.
तमाम तरह के इन बाबाओं में एक नागा बाबा ऐसे हैं जो कि आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. हिंदी न्यूज़ चैनेल न्यूज़ 18 इंडिया की खबर के मुताबिक जब वो इन नागा साधुओं से मिलकर एचएम आगे बढ़े ही थे कि अचानक हल्ला शुरू हो गया. भीड़ एक ओर भाग रही थी. हमने एक साधु को रोककर इस हल्ले और भगदड़ का कारण पूछा. पता चला कि एक नागा साधु को भगवान शिव का आशीर्वाद मिल गया है और ये नागा बाबा अपने लिंग से एक कार खींचने वाला है. इस तरह कि बातें हमने अभी तक सिर्फ कानों सुनीं थीं. आज पहली बार यह 'चमत्कार' हम अपनी आंखों से देखने वाले थे.
नागा साधु को तुरंत गेंदे के फूल की मालाओं से लाद दिया गया. करीब 100 से ज्यादा लोग वहाँ जुट चुके थे. अनाउंसमेंट करने वाला पूरे ज़ोर-शोर से चिल्ला रहा था,'नागा बाबा को शिव जी ने दिया खास आशीर्वाद, यकीन ना हो तो खुद अपनी आंखों से देख लो'. भीड़ में आस्था कि लहर और तेज हो गई. हम भी भीड़ में घुस चुके थे.
फिर शुरू हुआ असली खेल. नागा बाबा ने अपने लिंग से कार में लगी रस्सी को बांधा और 'हर हर महादेव' के साथ कार को खींचना शुरू कर दिया. कार की ड्राइविंग सीट पर भी एक बाबा बैठा था. देखकर साफ समझ में आ रहा था कि गाड़ी का असली कंट्रोल तो उसके हाथ में है. लेकिन फिर भी कम से कम 150 किलो की कार को अपने लिंग से खींचना कोई आम बात तो नहीं थी. लेकिन यह कैसे संभव है? किसी भी व्यक्ति में क्या भगवान के आशीर्वाद से इतनी शक्ति आती है?
कैसे शुरू हुई नागा बनने की शुरुआत ?
आदिगुरु शंकराचार्य धर्म के नाम पर हो रहे संघर्ष और विदेशी आक्रांताओं से धर्म की रक्षा के लिए पुख्ता रास्ता निकालने का साधन ढूंढ रहे थे. इसी क्रम में इन्होंने धर्म रक्षा सेना तैयार किया. इसमें ऐसे युवाओं को शामिल किया गया जो कठोर साधना का पालन करते हुए धर्म की रक्षा कर सकें. शंकाराचार्य का यह प्रयास नागा साधुओं के रूप में सामने आया. वर्तमान में नए नागा साधुओं को कुंभ के दरम्यान ही नागा साधु बनने की दीक्षा दी जाती है. 13 अखाड़ों में से केवल शैव अखाड़ों में ही नागा साधु बनने की दीक्षा दी जाती है. इनमें जूना अखाड़े में सबसे अधिक नागा साधु बनते हैं.
नागा साधु बनने में लगते हैं इतने साल
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लंबी होती है. नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग चार से छह साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वह लंगोट का भी त्याग कर देते हैं और जीवन भर निर्वस्त्र रहते हैं.
इन नियमों का करते हैं पालन
अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही कोई भी अखाड़ा नागा साधु बनने के लिए प्रवेश देता है. इसके बाद व्यक्ति को लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे अपने गुरुओं की सेवा करनी होती है. नागा साधु केवल एक ही बार भोजन करते हैं और वो भी सात घर में मिक्षा मांगकर. अगर उन 7 घरों से भिक्षा नहीं मिलता है तो उस दिन कुछ नहीं खाते. ये केवल जमीन पर ही सोते हैं. ये ना तो घर या बस्ती में निवास कर सकते हैं और ना ही किसी को प्रणाम कर सकते हैं. कई और भी कठिन नियम हैं, जिनका पालन नागा साधु करते हैं.
नागा साधु दुनियां की माया, मोह से दूर रहकर उत्तेजना रहित ब्रह्मचर्य वृत का पालन कर सकें इसके लिए इनके लिंग का आपरेशन करके नसों को काट दिया जाता है. इसके बाद इनका लिंग एक मांस का टुकड़ा भर ही रह जाता है.