प्रयागराज

कन्हैया कुमार की नागरिकता खत्म करने की याचिका पर कोर्ट ने दे दिया बड़ा फैसला

Shiv Kumar Mishra
5 Sep 2020 3:31 PM GMT
कन्हैया कुमार की नागरिकता खत्म करने की याचिका पर कोर्ट ने दे दिया बड़ा फैसला
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कन्हैया कुमार की नागरिकता खत्म करने की याचिका खारिज, कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर ही ठोंका जुर्माना

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की नागरिकता समाप्त करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने याचिका लगाने वाले नागेश्वर मिश्रा पर फिजूल की याचिका दाखिल कर अदालत का वक्त बर्बाद करने के लिए 25 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने की रकम एक महीने के अंदर महानिबंधक के पास जमा कराने के निर्देश दिए हैं।

जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने वाराणसी के नागेश्वर मिश्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है। याचिका में कहा गया था कि जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने 9 फरवरी 2016 को जेएनयू परिसर में देश विरोधी नारे लगाए थे। जिस पर उनके खिलाफ देशद्रोह की धाराओं में मुकदमा दर्ज है। दिल्ली में इस मुकदमे का ट्रायल चल रहा है।

याचिका में कहा, भारत की एकता और अखंडता पर प्रहार कर रहे कन्हैया

याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि कन्हैया कुमार और उनके साथी उन आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी बताते हैं जो भारत की एकता और अखंडता पर प्रहार कर रहे हैं और उसे नष्ट करने का कुचक्र करते हैं। इसके बावजूद भारत सरकार ने कन्हैया कुमार की नागरिकता समाप्त नहीं की है। याचिका में कन्हैया कुमार की भारत की नागरिकता समाप्त करने की मांग की गई थी।

'कन्हैया कुमार भारत में पैदा हुए, यहीं के नागरिक रहेंगे'

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 5(सी) और भारतीय नाग‌रिकता कानून 1955 की धारा 10 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भारतीय नागरिक को उसकी नागरिता से सिर्फ तभी वंचित किया जा सकता है जब उसे नागरिकता नेचुरलाइजेशन (विदेशी व्यक्ति को भारत का नागरिक बनाने की प्रक्रिया) या संविधान में दी गई प्रक्रिया के द्वारा दी गई हो। कन्हैया कुमार भारत में ही पैदा हुए हैं। वह जन्मजात भारत के नागरिक हैं। इसलिए सिर्फ मुकदमे का ट्रायल चलने के आधार पर उनकी नागरिकता समाप्त नहीं की जा सकती है।

'कोरोना के कारण मुकदमों का बोझ, याचिकाकर्ता ने की समय की बर्बादी'

कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता ने बिना कानूनी प्रावधानों का अध्ययन किए सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए याचिका दाखिल की है। ऐसे समय में जब कोरोना के कारण अदालतें सीमित तरीके से काम कर रही हैं और मुकदमों का बोझ बहुत है। इस प्रकार की फिजूल की याचिका दाखिल करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग और अदालत के कीमती समय की बर्बादी है। कोर्ट ने इसके लिए याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। रकम जमा न करने पर कोर्ट ने कलेक्टर वाराणसी को इसे राजस्व की तरह याचिकाकर्ता से वसूल करने का निर्देश दिया है।



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