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- शहर इलाहाबाद में एक...
इलाहाबाद जंक्शन से हर सुबह एक तांगा सवारी बैठाती और खुल्दाबाद, हिम्मतगंज, चकिया पर सवारी उतारती चढ़ाती जंक्शन से 5 किमी दूर स्थित "कसरिया" जाती और फिर वहां से इसी तरह इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन आती। सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक सवारी ढोने का काम चलता रहता। यह तांगा फिरोज़ अहमद का था जिससे वह जीविकोपार्जन के लिए सवारी ढोते थे।
फिरोज़ अहमद गद्दी बिरादरी के (मुसलमानों में यादव) थे जिनकी इलाहाबाद पश्चिमी और नवाबगंज के ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी आबादी है। यह लोग शौकिया घोड़े और व्यवसायिक रूप से गाय भैंस बकरी इत्यादि पाल कर दूध का व्यवसाय करने के लिए जाने जाते हैं। इस बिरादरी का परंपरागत पहनावा सफेद कुर्ता, सफेद तहमद और सफेद साफा था। अतीक अहमद जीवन भर इसी वेशभूषा को धारण किए रहे।
कसरिया या कसारी मसारी फिरोज अहमद का पुस्तैनी गांव था , उसी गांव के चकिया मुहल्ले में फिरोज अहमद ने 1972 में घर बनवाया और अपने दो बेटों अतीक अहमद और खालिद अज़ीम उर्फ अशरफ तथा तीन बेटियों शाहीन और परवीन और सीमा के साथ चकिया में रहने लगे।
अतीक अहमद बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई से दूर हो गया था. खेलने-कूदने की उम्र में अतीक अहमद जुर्म की दुनिया में कदम रख चुका था. पहले गुनाह के रास्ते पर चला और उसके बाद सियासत में चमकता गया. पहले अपहरण और हत्या का आरोप लगा. उसके बाद विधायक और सांसद बना. फिर जेल गुनाहों की सजा भुगत रहा था और जब पेशी के लिए प्रयागराज लाया गया तो अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या दी है. दोनों भाइयों की हत्याकांड को अंजाम उस वक्त दिया गया, जब दोनों को पुलिस मेडिकल कॉलेज ले जा रही थी. पुलिस ने तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. चलिए आपको अतीक अहमद की पूरी क्राइम कुंडली बताते हैं.
तांगे वाले का बेटा बना बदमाश-
10 अगस्त 1962 को चाकिया में हाजी फिरोज के घर अतीक अहमद का जन्म हुआ था. फिरोज तांगा चलाता थे. बताया जाता है कि हाजी फिरोज भी आपराधिक प्रवृत्ति के थे. उनकी माली हालत भी ठीक नहीं थी. अतीक बचपन का पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता था. अतीक 10वीं में फेल हो गया. वह इलाके के बदमाशों की संगत में आ गया. पैसों की खातिर उसका जुर्म की दुनिया में कदम रखना भी गवारा नहीं था. उसने मारपीट, अपहरण और रंगदागरी वसूलने जैसे काम करने लगा. जब अतीक अहमद सिर्फ 17 साल का था तो उसके खिलाफ हत्या का आरोप लगा.
चांद बाबा की हत्या में अतीक का नाम आया-
उस वक्त इलाहाबाद में चांद बाबा का खौफ था. उसके नाम से आम जनता से लेकर पुलिस तक कांपती थी. इस बीच अतीक अहमद का नाम भी जुर्म की दुनिया में तेजी से ऊपर चढ़ रहा था. अतीक नेताओं और पुलिस से सांठगांठ बना ली. अतीक का गैंग तेजी से बढ़ने लगा. वह पुलिस के लिए नासूर बन गया. जब इस बात की भनक अतीक को लगी तो उसने पुराने मामले में पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. एक साल बाद अतीक अहमद जेल से बाहर निकला. उसे समझ आ गया था कि बिना सियासत के टिकना मुश्किल है.
अतीक अहमद की सियासत में इंट्री-
जुर्म की दुनिया में बड़ा नाम बन चुका अतीक अहमद सियासी मैदान में उतरने की ठान ली. उसने साल 1989 में इलाहाबाद पश्चिम सीट से यूपी विधानसभा का पर्चा दाखिल किया. अतीक अहमद के सामने सियासी मैदान में एक और माफिया चांद बाबा था. चांद बाबा और अतीक अहमद के बीच कई बार गैंगवार हो चुका था. अब जुर्म की दुनिया के दो दिग्गज सियासी मैदान में आमने-सामने थे.
काउंटिंग के दिन चांद बाबा की हत्या-
चुनाव में अतीक अहमद और चांद बाबा दोनों ने जमकर खूब प्रचार किया. काउंटिंग का दिन आया. लेकिन अभी खेल बाकी था. काउंटिंग के दिन अतीक अहमद के कुछ गुर्गे रोशनबाग में चाय की दुकान पर चाय पी रहे थे. इसी दौरान चांद बाबा अपने साथियों के साथ दुकान पर आ गया. फिर क्या था, दोनों के बीच गैंगवार शुरू हो गई. इस गैंगवार में चांद बाबा मारा गया था. अतीक अहमद का सबसे बड़ा दुश्मन चांद बाबा रास्ते से हट चुका था. इसके कुछ ही घंटों बाद चुनाव के नतीजे भी आ गए और अतीक विधायक चुन लिया गया था.
पूरा परिवार अपराध जगत का खिलाड़ी-
इसके बाद अतीक अहमद लगातार क्राइम की दुनिया तेजी से बढ़ता गया. अतीक पर 101 आपराधिक मामले दर्ज थे. अतीक ने अपनी पूरी फैमली को क्राइम की दुनिया में उतार लिया था. उसके भाई अशरफ अहमद पर 52 मामले दर्ज थे. अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन पर 4 आपराधिक मामले दर्ज हैं. जबकि पुलिस एनकाउंटर में मारे गए अतीक अहमद के बेटे असद के खिलाफ भी एक केस दर्ज था.
सियासत में चमका अतीक-
साल 1989 में निर्दलीय विधायक चुने जाने को बाद अतीक अहमद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वो लगातार 5 बार विधायक चुना गया. अतीक पहली बार इलाहाबाद पश्चिमी से विधायक चुना गया. इसके बाद अतीक ने साल 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और जीत हासिल की. साल 1996 में अतीक अहमद ने विधानसभा का चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और फिर से विधायक चुना गया. लेकिन जल्द ही समाजवादी पार्टी से उसकी दूरियां बढ़ने लगी. अतीक ने समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ दिया और साल 1999 में अपना दल में शामिल हो गया. अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा. लेकिन हार का सामना करना पड़ा. साल 2002 में अपना दल ने अतीक को इलाहाबाद पश्चिमी से चुनाव मैदान में उतारा. इस चुनाव में अतीक अहमद को फिर से जीत हासिल हुई. साल 2003 में यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी. तो अतीक समाजवादी हो गया. साल 2004 में फूलपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
जब साल 2007 में मायावती की सरकार बनी तो अतीक अहमद पर कानूनी शिकंजा कसा. अतीक के खिलाफ लगातार मुकदमें दर्ज होने लगे. अतीक अहमद फरार हो गया. पुलिस ने उसपर 20 हजार रुपए का इनाम रख दिया. इसके बाद अतीक को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया. साल 2014 लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद को श्रावस्ती से चुनाव लड़ाया गया. लेकिन इस बार हार का सामना करना पड़ा. साल 2019 में अतीक अहमद ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था.