प्रयागराज

बारा पावर प्लांट में फिर उग्र हुए मजदूर, पहले जेपी कंपनी कर रही थी शोषण और अब टाटा करने की तैयारी में : मजदूर एसोसिएशन

Shiv Kumar Mishra
17 Jan 2020 8:46 AM GMT
बारा पावर प्लांट में फिर उग्र हुए मजदूर, पहले जेपी कंपनी कर रही थी शोषण और अब टाटा करने की तैयारी में : मजदूर एसोसिएशन
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नितिन द्विवेदी, प्रयागराज l

फिर उग्र हुए किसान, एक हजार महीने की वृद्धि और चार छुट्टी देने पर बनी बात

सभी मांगे पूरी करने को एक महीने का दिया अल्टीमेटम

बारा पावर प्लांट को अब चलाएगा टाटा समूह

पी एफ खाते और वेतन वृद्धि को लेकर कई बार हुआ टकराव

बारा पावर प्लांट के प्रदूषण युक्त पानी व राखड़ को लेकर हुआ कई बार बवाल

बीस साल पहले रिफायनरी के लिए अधिग्रहीत भूमि पर भी अब तक नहीं चालू हुआ काम

शंकरगढ़ क्षेत्र में लगे 1980 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट में काम करने वाले मजदूर किसान एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर कंपनी के मेन गेट पर धरने पर बैठ गए। काफी मान मंनौवल के बाद बात नहीं बनी तो कंपनी की तरफ से 1000 महीने की वेतन वृद्धि और सप्ताह में एक छुट्टी सहित त्योहारों में बोनस देने का एलान कर दिया। कंपनी द्वारा दिये गए इस आश्वासन ने मजदूरों के दर्द पर मरहम का काम तो किया लेकिन अपनी पूरी मांगों को मनवाने के लिए वर्करों ने कंपनी को एक महीने का अल्टीमेटम देकर धरना समाप्त कर दिया।

बारा पॉवर प्लांट में मालिकाना हक बदलने के साथ ही यहां काम कर रहे किसान मजदूरों में एक बार फिर आशा की किरण नजर आने लगी है। लेकिन बारा पावर प्लांट को जेपी ग्रुप के बाद टाटा ग्रुप को संचालन मिलने के बाद ये किसानों तथा क्षेत्र के हितों में कितना खरा उतरता है ये तो समय ही बताएगा। यूं तो इसके पहले प्लांट को संचालित कर रही जेपी कंपनी के खिलाफ कई बार किसान भड़कते रहे हैं लेकिन कभी कोई ठोस हल नहीं निकाला गया। 6 जनवरी को भी किसान भड़क गए थे और पी एफ खाते के सही संचालन न होने तथा वेतन वृद्धि की मांग करने लगे। जिस पर टाटा के अधिकारियों ने 16 जनवरी को हल निकालने की बात कही थी। वादे के मुताबिक मजदूर अधिकारियों से बात करने गए और बात बनती न देख गेट पर ही धरने पर बैठ गए। तहसील प्रशासन और कंपनी प्रशासन ने किसी तरह सुलह समझौता कर मामले को शांत कराया।

ज्ञात हो कि प्रयागराज की बारा तहसील के शंकरगढ विकासखंड में मिश्रपुरवा में पी पी जी सी एल का 1980 मेगावाट का थर्मल पावर प्लांट लगा हुआ है। पहले इस प्लांट में निर्माण के साथ ही विद्युत उत्पादन का कार्य जे पी ग्रुप कर रहा था लेकिन अभी कुछ महीने पहले इस प्लांट की नीलामी हुई और टाटा समूह इस प्लांट को चलाने लगा। प्लांट के अंदर ही सीमेंट प्लांट भी संचालित है जिसे आदित्य बिरला कंपनी के अल्ट्राटेक समूह ने ले लिया है। पावर प्लांट और सीमेंट प्लांट के मालिकाना हक बदलने के साथ यंहा काम करने वाले लोगों को कुछ आशा की किरण जरूर जगी है लेकिन ये अमली जामा कब पहन पाती हैं , समय ही बताएगा।

सीमेंट प्लांट का कई बार हुआ विरोध

बारा पावर प्लांट के अंदर बन रहे सीमेंट प्लांट का क्षेत्र के लोगों ने कई बार विरोध किया। कहा गया कि जमीन लेते समय केवल पावर प्लांट की बात थी तो फिर सीमेंट प्लांट का निर्माण क्यों हो रहा है। दलील दी गई कि सीमेंट प्लांट के चालू होने से क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ेगा लेकिन किसानों की एक न सुनी गई और सीमेंट प्लांट बन कर संचालित होने लगा। जिसका असर अगल बगल दिखाई भी पड़ने लगा।




रिफायनरी के आधर में लटकने से दोहरी मार झेलता किसान

बता दें कि लगभग 20 साल पहले भारत पेट्रोलियम निगम की तरफ से बारा तहसील की बीसों गांवों की लगभग 4500 हेक्टेयर से अधिक जमीनों का अधिग्रहण किया गया था। बताया गया कि मालियत बेहद कम होने की वजह से बहुत से किसानों ने अभी तक मुआवजा भी नहीं लिया है, लेकिन हैरत की बात है कि आज तक इन जमीनों पर भारत पेट्रोलियम निगम की तरफ से न तो भारत सरकार की तरफ से किसी प्रकार का निर्माण कार्य प्रारंभ हो सका, जबकि लोगो की जमीन भारत पेट्रोलियम निगम के नाम चढ़ गई। उस समय भुखमरी की मार झेल रहे किसान मजदूरों ने औने पौने दाम रुपये में खुशी खुसी इसलिए इन जमीनों को भारत सरकार की दे दिया कि हमारे क्षेत्र में बड़ी फैक्टरी लगेगी, हम लोगों को रोजगार मिलेगा,हमारे भी बच्चे पढ़ सकेंगे, हम भी दो जून की सकून की रोटी खा सकेंगे। लेकिन हुआ क्या ?सिफर।

बारा पावर प्लांट भी नही दे पाया उचित रोजगार

बुंदेलखंड से प्रभावित इस क्षेत्र का किसान मात्र ठगा गया। जो किसानों की जमीनें खेती करने लायक बची थी उसे 2007 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्योगपतियों से मिलकर थर्मल पॉवर प्लांट के लिए अधिग्रहण कर लिया। अर्थात रही सही कसर 2007 में पूरी हो गई। यंहा उल्लेख करना जरूरी है कि थर्मल पावर प्लांट में लगभग 817 किसानों की जमीनों का अधिग्रहण हुआ था । बारा पावर प्लांट की वर्तमान स्थिति यह है कि 1980 मेगा वाट का यह थर्मल प्लांट बनकर तैयार है। विद्युत का उत्पादन भी हो रहा है। प्लांट में लगभग 200 किसानों या उनके पाल्यों को दैनिक भुगतान पर रोजगार दिया गया है। इन लोगों को भी 6 दिन काम करा के साथ में दिन बैठा दिया जाता था। और महीने में 24 या 25 दिन का ही भुगतान किया जाता था ,जो नाकाफी साबित हो रहा था। अब टाटा ग्रूप के पूरे 30 दिन के वेतन देने के आश्वासन से किसानों को कुछ राहत जरूर मिल सकती है लेकिन ये भी जब तक इन्हें पीपीजीसीएल रोल या टाटा टाटा कंपनी में स्थायी नौकरी नही दी जाएगी तब तक इनकी आर्थिक दशा नही सुधरेगी।

इसके पहले बारा पावर प्लांट चला रहे जेपी ग्रुप से यंहा के प्रभावित किसान मजदूरों ने कई बार वेतन बढ़ाने तथा स्थाई नौकरी के साथ कई मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन हर बार मजदूर किसानों पर कंपनी भारी पड़ जाती रही है। बीते वर्ष बारा पावर प्लांट से प्रभावित किसान मजदूरों ने 14 दिन तक अपनी मांगो को लेकर धरना प्रदर्शन किए लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात ही रहा था।

बची खुची जमीन असिंचित ठोस हल के इंतजार में किसान

वीओ 2:-बारा के अधिकतर गांव ऐसे हैं जहां की जमीने असिंचित है। खासकर शंकरगढ़ ब्लाक के पश्चिमी और उत्तरी दिशा में पढ़ने वाले सैकड़ों गांवों की जमीन असिंचित है जिस कारण लोग खेती करने से वंचित रह जाते हैं। कुछ लोग भगवान भरोसे खेती करते भी हैं लेकिन कितनी मेहनत के बाद उन्हें दाना नसीब होता है यह तो यहीं के लोग जानते हैं। क्षेत्र को सिंचित करने की भी कई बार मांग उठी लेकिन अभी तक तो मामला ठंडे बस्ते में ही नजर आ रहा है।

प्लांट की वजह से बढ़ रहा प्रदूषण

लोगों की माने तो बारा पावर प्लांट की वजह से अगल बगल बहने वाले नदी नाले पूरी तरह से दूषित हो चुके हैं। जिनका पानी खेती लायक बचा न पशुओं के पीने लायक। एक वर्ष पहले बकूलिहा गांव के एक किसान का पावर प्लांट से निकलने वाले प्रदूषित पानी की वजह से पूरा बाग सूख गया था। मीडिया में खबर भी आई लेकिन कोई ठोस हल नहीं निकाला गया। करीब 25 दिन पहले राखड युक्त पानी निकलने की वजह से जोरवट गांव से बहने वाली लवनी नदी पूरी तरह से पट गई जिसकी खबर मीडिया में आने के बाद प्रदूषण विभाग सहित प्लांट प्रशासन हरकत में आ गया और नदी की सफाई का काम शुरू करा दिया। सफाई तो चालू है लेकिन प्लांट के बगल में बसे बेरुई गांव के लोगों का कहना है कि ये राखड़ सड़क पर फैलाई जा रही है जिससे आवागमन में दिक्कत तो आ ही रही है , गर्मी में ये राख जब हवा से गांवों में पहुचेगी तो अनेक बीमारियां फैल सकती हैं। वहीं कुछ लोगों का आरोप है कि पॉवर प्लांट खान सेमरा नहर के पास से लोहगरा की तरफ प्रदूषित पानी बहा रहा है जिससे कई गांव प्रभावित हो रहे हैं। इसके लिए भी कंपनी को कोई ठोस हल निकालने की आवश्यकता है।

शुरू से ही है विवादों से नाता

वैसे तो इस कंपनी का शुरू से ही विवादों का नाता रहा है। किसानों की जमीनों के उचित मुआवजे की बात हो, किसानों को नौकरी की बात हो, प्रभावित गांवों में अधिग्रहण कानून के तहत दी जाने वाली सुविधा की बात हो, आस पास नदियों और खेतों में गंदा और प्रदूषण युक्त पानी बहाने की बात हो, दिहाड़ी पर काम कर रहे प्रभावित किसानों को स्थायी किये जाने की बात हो, या वेतन वृद्धि की बात हो। यंहा के किसान लगभग 10 सालों से इस कंपनी से अपने हक की मांग कर रहे हैं। कारण जो भी हो लेकिन हर बार कंपनी इन किसानों पर भारी पड़ जाती है। साल 2018 में लगातार 14 दिन तक धरना प्रदर्शन कर अपने हक की मांग करने वाले किसानों की मदद न शासन प्रशासन ने की न ही जनप्रतिनिधियों ने। लोगों की माने तो उस समय विरोध करने वाले किसानों के ऊपर कार्यवाई की गई। उस समय कुछ ने दबाव बस कंपनी छोड़ दिया था । सूत्रों की माने तो कइयों को झूठे केश में फंसाकर निकाल दिया था और कइयों को तो जबर्दस्ती धमकी देकर काम से निकाल दिया था। निकाले गये मजदूरों को भी कंपनी की तरफ से दुबारा रोजगार देना चाहिए।

6 जनवरी को दैनिक वेतन पर कार्य कर रहे प्रभावित किसान मजदूर अपनी समस्या और मांगों को लेकर पी एन्ड ए ऑफिस पंहुचकर अपने पीएफ़ खाते में जमा रकम में पारदर्शिता अपनाने को अड़ गए थे। आरोप है कि जेपी ग्रुप द्वारा हम वर्करों जो पी एफ के नाम से पैसा कटता था उसमें भारी अनियमितता है। लोगों का कहना है कि 2010 से मार्च 2019 का काटा गया पीएफ़ आन लाइन शो नही कर रहा है। हालांकि टाटा ग्रुप के सी ई ओ ने वर्करों से मिलकर जल्द मामला हल कराने का आश्वासन दिया है।

किसान से बने मजदूर, नही मिलता संतोषजनक वेतन

मजदूर बने प्रभावित किसानों व उनके पाल्यों का शुरू से ही कहना रहा कि हम लोगों को महज 6 से 7 हजार तक का मासिक वेतन दिया जाता है जो इस समय परिवार चलाने के लिए नाकाफी है। यह भी जानकारी मिली कि प्रभावित किसानों को कंपनी में दैनिक मजदूरी पर रखा गया है और सप्ताह में 6 दिन काम कराके सातवें दिन बैठा दिया जाता है। सातवें दिन का कोई पैसा कंपनी द्वारा नही दिया जाता। बताया गया त्योहार में इन कामगारों की छुट्टी तो कर दी जाती है लेकिन उस दिन का पैसा नहीं दिया जाता। अब ये कंहा तक सही है ये तो श्रम विभाग जाने लेकिन अपने खेत गंवाने में बाद इस कंपनी से प्रभावित किसान लगभग 10 सालों से अपनी रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है जिनकी सुध लेने वाला कोई नही है। शायद टाटा समूह वादे के मुताबिक इन किसान मजदूरों का दर्द दूर करे तभी इनका जीवन स्तर सुधर सकता है।

टाटा ग्रुप के सामने चुनौतियां भरपूर,हालात सुधरने की आस में किसान मजदूर

जेपी ग्रुप के बाद बारा पावर प्लांट को चला रहे टाटा समूह के लिए भरपूर चुनौतियां हैं। जहां एक ओर 1980 मेगा वाट के विद्युत उत्पादन की जिम्मेदारी है तो वहीं रिफायनरी में जमीन गंवाने के बाद बारा पावर प्लांट के लिए जमीन देने वाले 817 किसानों व उनके पाल्यों के हितों का रक्षा की सवाल। जंहा एक ओर पावर प्लांट की वजह से अगल बगल हो रहे प्रदूषण को रोकने का दबाव है तो दूसरी ओर वादे के मुताबिक क्षेत्र का विकास तथा जमीन गंवा चुके किसानों को उचित रोजगार का दायित्व। बताया गया कि फिलहाल कंपनी ने एक हजार महीने की वेतन वृद्धि और सप्ताह में चार छुट्टी देने का निर्णय ले लिया है। लोगों ने बताया कि छुट्टी पहले भी मिलती थी लेकिन छुट्टी के दिनों का पैसा वेतन में जोड़कर नही दिया जाता था। अब कंपनी ने पूरे 30 दिनों के वेतन देने का आश्वासन दिया है।

वीओ 3:-अब देखना है कि जेपी ग्रुप के बाद बारा पावर प्लांट को संचालित कर रहा टाटा ग्रुप क्षेत्र तथा क्षेत्र के लोगों के जीवन में क्या सुधार लाता है, और पूर्व में किये गए पॉवर प्लांट के वादों को कितना अमल में लाता है। क्योंकि जिस तरह तरीके से पावर प्लांट बारा में किसानों का धरना उग्र हो रहा है उससे तो फिर से साफ दिखाई पड़ रहा है कि जिस प्रकार शुरुआत में किसानों ने जमीन ना देने की बात करके उग्र रूप ले लिया था ठीक उसी तरीके से अब भी बारा पावर प्लांट में समस्या ठीक सामने खड़ी दिखाई पड़ रही है l शंकरगढ़, प्रयागराज से नितिन द्विवेदी की रिपोर्ट l

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