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मैडिकल कालेज में बिना नीट परीक्षा एवं बिना एमबीबीएस डिग्री के चिकित्सा शिक्षक बनने पर सरकार का सख्त रुख
मैडिकल एजूकेशन की नयी नियामक संस्था नेशनल मैडिकल कमीशन के वजूद में आने के बाद से ही चिकित्सा शिक्षा में अनेक सकारात्मक बदलाव की अपेक्षा की जा रही थी.उसी क्रम में मैडिकल कालेजों में अनिवार्य योग्यता के लिए जो लंबे समय से परिवर्तन अपेक्षित था उसी दिशा में सरकार ने कदम आगे बढ़ाते हुए बिना एमबीबीएस डिग्री वाले शिक्षकों के मैडिकल कालेज में भर्ती की अधिकतम सीमा को घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया है.
दशकों पूर्व मैडिकल कालेजों में प्री और पैरा क्लिनिकल विषयों में एमडी(पोस्ट ग्रेजुएशन) की सीट्स बहुत कम होने और देशभर में चिकित्सकों की संख्या भी बहुत कम होने के कारण इन विषयों में मैडिकल एमएससी शुरू किया गया था जो प्रारंभ में केवल एमबीबीएस चिकित्सकों के लिए था परंतु बाद में इसी कोर्स में बीएससी, बीएससी नर्सिंग, बीएससी एम एल टी, बीफार्मा, बीडीएस आदि को भी प्रवेश दिया जाने लगा. ये लोग भी इन विषयों में मैडिकल कालेजों में शिक्षक बनने लगे. लंबे समय से एमबीबीएस एवं एमडी चिकित्सा शिक्षकों के सबसे बड़े राष्ट्रीय संगठन आल इंडिया प्री एवं पैरा मैडिकोस एसोसिएशन की मांग थी कि एमबीबीएस विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए न्यूनतम योग्यता एमबीबीएस ही होनी चाहिए. यहाँ ये भी बताते चलें कि किसी भी व्यावसायिक पाठ्यक्रम में बिना उसी पाठ्यक्रम की बेसिक डिग्री के फैकल्टी बनने की पात्रता नहीं है जैसे लॉ, वैटनरी, फार्मेसी, नर्सिंग इत्यादि. किंतु मैडिकल कालेज जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में यह छूट दशकों से दी जा रही थी. जो कि वर्तमान परिवेश में कतई उपयुक्त नहीं था.
एक एमबीबीएस का विद्यार्थी जिसे भविष्य में मरीजों को देखना है एवं सीधे मानव शरीर पर कार्य करना है उसे शिक्षित करने की जिम्मेदारी ऐसे शिक्षकों को देना जिन्होंने स्वयं वह अध्ययन नहीं किया है, न ही प्रायोगिक रूप से बीमारियों और मरीज़ों से उनका अंतर्संबंध रहा है उन्हें एमबीबीएस के विद्यार्थियों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी देना वास्तव में आश्चर्यजनक है.
पूर्व में बिना एमबीबीएस डिग्री धारक अभ्यर्थियों को प्री और पैरा क्लिनिकल विषयों में 30 प्रतिशत (बायोकेमिस्ट्री विषय में 50 प्रतिशत) तक लेने की छूट चली आ रही थी जिसे नेशनल मैडिकल कमीशन ने इसी साल अपने 29 अक्तूबर के गज़ट नोटिफिकेशन में घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया है. साथ ही माइक्रोबायोलॉजी एवं फार्माकोलोजी विषयों में नॉन मैडिकल शिक्षक बिना एमबीबीएस डिग्री की भर्ती को बिलकुल बंद कर दिया गया है.
कुछ संगठनों द्वारा इसे एमएससी अभ्यर्थियों के रोजगार से जोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है जो कि हास्यास्पद है क्योंकि एमएससी एवं पीएचडी अभ्यर्थी के लिए जीव विज्ञान क्षेत्र में अनेक रास्ते खुल जाते हैं, जिसमें देश के शोध संस्थान, वैज्ञानिक संस्थान जहाँ एमबीबीएस और एमडी भी पात्र नहीं हैं कृषि एवं बायोटेक्नोलॉजी संस्थान, सभी युनिवर्सिटीज़ जहाँ जीव विज्ञान पढ़ाया जाता है, फार्मास्यूटिकल्स कंपनी, मैडिकल इक्वीपमेंट इंडस्ट्री, बायोटेक्नोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री व अन्य प्रयोगशालाओं में सहायक जैसे अनेक रोज़गार के अवसर उनके लिए सदैव उपलब्ध हैं. ऐसे में यह कहना कि मैडिकल कालेज में भर्ती सीमा घटाने से इनके रोजगार के अवसर कम होंगे हास्यास्पद ही है.
एमबीबीएस जैसे महत्वपूर्ण विषय को पढाने और प्रशिक्षण में जो सीधे सीधे मानव जीवन से जुड़ा है किसी भी प्रकार की न्यूनता एवं ढील रखना देश की स्वास्थ्य सेवाओं और करोड़ों लोगों के जीवन से खिलवाड़ होगा. अत: नेशनल मैडिकल कमीशन का ये कदम वास्तव में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु मील का पत्थर साबित होगा.
अभी हाल ही में 19 नवंबर को नॉन मैडिकल शिक्षकों द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में नेशनल मैडिकल कमीशन के उक्त नोटिफिकेशन के खिलाफ अपील की गई लेकिन माननीय उच्च न्यायालय ने गहन अध्ययन के बाद अपील को ठुकरा दियादिया और कहा कि एमबीबीएस छात्रों को पढ़ाने के लिए एमबीबीएस डिग्री धारक ही होने चाहिए तभी अच्छे चिकित्सक देश को मिल सकेंगे