सहारनपुर

सहारनपुर की सियासत में स्वयंभू कयादत का दंभ भरने वाले ग़ायब

Shiv Kumar Mishra
19 Feb 2020 8:52 AM GMT
सहारनपुर की सियासत में स्वयंभू कयादत का दंभ भरने वाले ग़ायब
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तमाम तरह की परेशानियों के बावजूद देवबन्द का धरना प्रदर्शन अपनी सफलता की ओर है आगे क्या होगा क्या षड्यंत्रकारी अपने षड्यंत्र में कामयाब हो पाएँगे या उन्हें मुँह की खानी पड़ेगी यह तो बाद में ही पता चलेगा।

सहारनपुर से तसलीम क़ुरैशी

सहारनपुर। नागरिक संशोधन क़ानून CAA , NRC व NPR को लेकर देश में अफ़रा तफ़री का माहौल है।आसाम में हुई NRC के परिणाम साम्प्रदायिक सियासत करने वाली मोदी की भारतीय जनता पार्टी के विपरीत आए हैं इस लिए नरेंद्र मोदी की भाजपा की केन्द्र सरकार ने नया फ़ार्मूला तैयार किया है पहले CAA (नागरिक संशोधन क़ानून) लाए उसके बाद NPR लागू होना ही था लेकिन केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इसमें भी नागपुर का तड़का लगा दिया कुछ ऐसे कालम बढ़ा दिए जिसके बढ़ जाने से 50% NRC हो जाएगी जिन लोगों को टारगेट किया जाना है उनको कुछ को NPR में संदिग्ध कर दिया जाएगा उसके बाद फिर उनसे उनकी नागरिकता का प्रमाण माँगा जाएगा जिनके पास कोई सबूत नहीं होगा जैसे अधिकतर लोगों के पास नहीं है उनमें हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई सभी है उनको घुसपैठिया घोषित कर दिया जाएगा और वह फिर अपनी नागरिकता के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने को मजबूर होंगे वहाँ भी उनकी कोई मदद न हो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसा आसाम में हुआ है।सरकार कहती है कि क्रोनालोजी यानी इसके क्रमवार को समझना होगा।

जनता ने सरकार की नीयत को भाँप लिया है और लामबंध होकर सरकार की क्रोनालोजी का विरोध करना शुरू कर दिया देश में CAA NPR व NRC का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है सरकार इस विरोध को देश का विरोध करना दर्शाना चाहती थी लेकिन वह यह करने में नाकाम हो गई है उसकी बहुत सी वजह है क्योंकि वर्तमान सरकार का सबसे सरल रास्ता हिन्दू मुसलमान करना होता है इस मामले में वह हिन्दू मुसलमान नहीं कर पायी जिसकी वजह से मोदी की भाजपा सरकार बैकफुट जाती दिख रही है लोगों का मानना है कि वर्तमान सरकार का हर मुद्दे पर हिन्दू मुसलमान करना उसकी कार्य क्षमता पर सवालिया निशान लगाता है सरकार से कोई सवाल करो वह हिन्दू ,मुसलमान ,पाकिस्तान , आतंकवाद ,पंडित जवाहर लाल नेहरू ,गांधी परिवार ये बातें करने लगती हैं और मीडिया जिससे सरकार की ऑंख में आँख डालकर सवाल करने चाहिए वह भी इन्हीं बे फजूल की बातों पर बहस करता व कराता दिखता है क्योंकि सवाल पत्रकारिता का नही अपनी अकूत संपत्ति बनाने का है इस लिए मीडिया के एक बहुत बड़े समूह को गोदी मीडिया के नाम से जाना जाने लगा है।जहाँ यह सब कुछ चल रहा है जनता का विश्वास अपनी कयादत करने वालों पर से भी उठ गया है वह बिना नेतृत्व के ही अपना आंदोलन चला रही है और वह सफल भी है।कल जब चुनाव के दौरान वोट लेने की बारी थी तो वह अपनी चुनावी सभाओं में कहा करते थे कि सहारनपुर वालों अपनी कयादत बचा लो नहीं तो आपके घरों में पुलिस घुसी फिरेगी और आपकी बात करने वाला कोई नहीं होगा जबकि उन दो टके के नेताओं को यह मालूम होना चाहिए कि क्या सब लोग आपराधिक मामलों में लिप्त हैं जो पुलिस उनके घरों घुसी फिरेंगी ऐसे 90 से 95% लोग है जिनका पुलिस से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है और न होगा वह सबको आपराधिक प्रवृत्ति का समझते थे।

आज सहारनपुर की जनता CAA NPR व NRC का विरोध करना चाहती हैं लेकिन वह फ़र्ज़ी कयादत कहीं नज़र नहीं आ रही है और अगर देवबन्द में इसके विरोध में धरना प्रदर्शन चल भी रहा है तो वह इसका अंदर खाने विरोध करा रहे व कर रहे हैं ताकि वहाँ का धरना प्रदर्शन बंद हो जाए क्या उनके इस षड्यंत्र को सही कहा जा सकता है ? हमारे सूत्रों के मुताबिक़ जो लोग इस धरना प्रदर्शन को करा रहे हैं या सहयोग कर रहे हैं उनके ख़िलाफ़ पुलिस प्रशासन से मिलकर संगीन धाराओं में FIR दर्ज कराने की नाकाम कोशिश करा चुकें हैं जिसको FIR कराने में हथियार बनाया जा रहा था उसने मना कर दिया इस लिए नही हो पायी इस फ़र्ज़ी कयादत का दंभ भरने वाले नेता ने उसपर काफ़ी दबाव बनाया कि चाचा मान जाओ लेकिन चाचा थे कि मान के ही नहीं दिए और उनके अरमान धरे के धरे रह गए।

पता चला है कि देवबन्द की सियासत को अपने इर्दगिद घूमाने में माहिर एक नेता को सबक़ सिखाना चाहते थी स्वयंभू कयादत लेकिन उसने इस ख़ानदानी सियासी फ़ैक्ट्री से रोटी खाने वाले को अपने सियासी धोबीपाट से अभी तक कामयाब नहीं होने दिया है तमाम तरह की परेशानियों के बावजूद देवबन्द का धरना प्रदर्शन अपनी सफलता की ओर है आगे क्या होगा क्या षड्यंत्रकारी अपने षड्यंत्र में कामयाब हो पाएँगे या उन्हें मुँह की खानी पड़ेगी यह तो बाद में ही पता चलेगा।

असल में देवबन्द सत्याग्रह से सहारनपुर की सियासत में पिछले चालीस सालों से एक छत्र राज करने वाले परिवार की सियासी ज़मीन खिसक रही है इसलिए वह अपनी घिनौनी सियासी चालों का कुचक्र चल रहे हैं लेकिन वह कामयाब नहीं हो पा रहे हैं नेता अपने सियासी फ़ायदे के लिए किस हद तक गिर जाते हैं इसका अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है।

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