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सहारनपुर में जिला प्रशासन की सूझबूझ पूरे देश के लिए माडल बन सकती है
माजिद अली खां राजनीतिक संपादक
उत्तर प्रदेश का हरियाणा और उत्तराखंड सीमा से सटा ज़िला सहारनपुर मुसलमानों के दुनिया में दो बड़े मदरसों के लिए जाना जाता है, एक दारुल उलूम देवबंद, दूसरा मज़ाहिरुल उलूम सहारनपुर. सहारनपुर खुद मुस्लिम बहुल ज़िला माना जाता है, कोरोना महामारी के चलते तबलीगी जमात के शौर के बीच ये बात भी बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद की सुसराल है जबकि वो शामली ज़िला के कांधला कस्बे के रहने वाले हैं.
ये भी बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सबसे पहली जमात कांधला से सहारनपुर आई थी. सही मायने में तबलीगी जमात को बढ़ाने में सहारनपुर ज़िले की अहम भूमिका रही है. हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते कि तबलीगी जमात के निज़ामुद्दीन स्थित केंद्र या मरक़ज़ में कैसे कोरोना फैला उसमें गलती सरकार पुलिस या जमात वालों की है. तबलीगी जमात के लोगों का आना जाना सहारनपुर में भी खूब होता रहा है इसलिए कोरोना से संक्रमित बहुत लोग सहारनपुर में भी पाए गए. बहुत से लोगों को कोरेंटाइन किया गया, कुछ इलाके सील कर दिए गए.
इन सब कार्रवाइयों के बीच जो सबसे अहम बात रही है वो ज़िला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों के रवैये से कोई टकराव पैदा न होना रहा है. कोरोना से पहले जब पूरे देश में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए तब भी मुस्लिम समाज के लिए महत्वपूर्ण ज़िला शांत रहा. अब जब कोरोना महामारी के मामले में भी टकराव की खबरें आ रही हैं तब भी ज़िले में कहीं भी अब तक पुलिस, डाक्टरों से लोगों का झगड़ा नहीं हुआ. इसके लिए ज़िले के प्रशासन को और पुलिस अधिकारियों की सराहना की जानी चाहिए.
जिला प्रशासन ने अब तक किसी मामले में भी बिना जन सहयोग के कोई कदम नहीं उठाया. समाज के प्रबुद्ध लोगों से संवाद कर हर मामले में शांति बनाए रखी. सहारनपुर के अधिकारियों की कार्यकुशलता पूरे देश के अधिकारियों के लिए आदर्श बन सकती है. जहाँ भी टकराव के मामले आए हैं उसमें प्रशासन द्वारा सामाजिक लोगों द्वारा सहयोग न लेना शामिल रहा है. यदि प्रशासन ऐसे ही काम करता रहे तो काफी हद तक शांति स्थापित की जा सकती है